जिस तरह से विरोध करने वाले पहलवानों को जंतर-मंतर से निकाला गया, उससे पता चलता है कि खेल के प्रति इस सरकार की प्रतिबद्धता महज एक छलावा है. सरकार ने एक एक महीने से अधिक समय तक उन्हें नजरअंदाज और उनकी उपेक्षा करने के बाद उठाया गया कदम है. यह निराशाजनक है कि सरकार किसकी रक्षा कर रही है और क्यों.