राहुल गांधी का ‘जितनी आबादी, उतना हक’ नारा आत्मघाती है. नीतिगत अनिवार्यताओं के लिए जाति जनगणना एक बुराई हो सकती है लेकिन अधिकारों को जनसंख्या से जोड़ना एक खतरनाक बहुसंख्यकवादी विचार है. कांशीराम का जनसंख्या आधारित भागीदारी का नारा एक अलग सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में था. कांग्रेस द्वारा आज इसे दोहराना राजनीतिक कल्पना के दिवालियेपन को उजागर करता है.