जिस तरह ज़ेरक्स ने उनकी आज्ञा न मानने के लिए समुद्र को कोड़े मारे, उसी तरह गुजरात दंगों में पीएम की भूमिका की आलोचना करने वाली बीबीसी डॉक्यूमेंट्री तक पहुंच को रोकने के लिए सरकार की कोशिश बेकार है. आरोप-सही या कुछ और-लंबे समय से चलने वाली सार्वजनिक बहस रही है. घुटने के बल चलने वाली सेंसरशिप केवल पीएम के आलोचकों को हथियार देती है.