बुकर-प्राइज़ की विजेता, लेखिका अरुंधति रॉय के कश्मीर संबंधित विचार उकसाने वाले थे, जिससे भारतीयों को गुस्सा आया, लेकिन इतिहास गवाह है कि वह भारत के लिए खतरा नहीं हैं. उनके शब्द दुखी करते हैं, लेकिन उनसे कोई खास फर्क नहीं पड़ा है. 13 साल बाद अधिकारी उनसे नहीं लड़ सकते. यह जादू-टोना उन्हें एक अयोग्य शहीद करार देगा.
अरुंधति रॉय को नाहक ही शहीद बनाया जा रहा है, उनके शब्दों से फर्क नहीं पड़ा
दिप्रिंट का 50 शब्दों में सबसे तेज़ नज़रिया.
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