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Sunday, 22 December, 2024
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क्यों नीतीश और लालू को बिहार में गठबंधन राजनीति का बड़ा खामियाजा चुकाना पड़ सकता है

गठबंधन धर्म ने कई पुराने नेताओं को उनके गढ़ों से बाहर कर दिया है, जिससे इस चुनावी मौसम में राज्य के विभिन्न हिस्सों में रोष व बगावत दिख रही है.

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पटना: एक हैं पांच बार के सांसद. दूसरी एक पूर्व सांसद हैं जिन्हें वो सीट नहीं दी गई जहां से उनके स्वर्गीय पति तीन बार जीते थे. एक और पूर्व सांसद हैं जिन्हें न तो चार बार जीती उनकी सीट दी गई, न ही वो दूसरी सीट जिसका कि उनसे वादा किया गया था.

इस चुनावी मौसम में गठबंधन धर्म के दबाव के कारण अपने राजनीतिक गढ़ों से बाहर कर दिए गए बिहार के कुछ नेता क्रुद्ध और बगावत की मुद्रा में हैं.

और, इसे लेकर पार्टियों में बेचैनी है क्योंकि नाराज़ नेताओं में कई ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मुकाबले में उतरने का इरादा जताया है, जिससे नाजुक चुनावी समीकरणों के गड़बड़ाने का खतरा है. इन असंतुष्टों को मनाने की कोशिशें भी हो रही हैं, लेकिन अभी तक इसका उतना असर पड़ता नहीं दिख रहा.

‘अपने पति की विरासत के लिए’

60-वर्षीया पुतुल सिंह ने पिछले सप्ताह निर्दलीय के रूप में अपना नामांकन पत्र भर दिया. भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें उनकी ‘पारिवारिक सीट’ बांका से टिकट नहीं दिया था. भाजपा ने यह सीट गठबंधन सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) को सौंप दी है.

पुतुल 2010 में हुए उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर बांका सीट पर जीती थीं. उपचुनाव उनके पति दिग्विजय सिंह के निधन के बाद कराया गया था. सिंह बांका से तीन बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे.

हालांकि, 2014 में मोदी लहर के बावजूद पुतुल पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव के करीबी जयप्रकाश नारायण यादव से बहुत कम मतों के अंतर से हार गईं थीं.

पुतुल के चुनाव प्रभारी महेंद्र सिंह के अनुसार वह अपने पति की विरासत के लिए चुनाव लड़ रही हैं.

महेंद्र सिंह कहते हैं, ‘भाभी (पुतुल) के पार्टी में शामिल होने से पहले भाजपा कभी बांका सीट जीत नहीं पाई थी. दादा (दिग्विजय) बांका से जद(यू) उम्मीदवार के रूप में जीता करते थे. 2009 में जब नीतीश कुमार ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वे स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में जीते थे.’

नीतीश और दिग्विजय सिंह के संबंधों में इसलिए खटास आ गई थी क्योंकि कहते हैं नीतीश को संदेह था कि सिंह ही उनके और उनके राजनीतिक गुरू जॉर्ज फर्नांडिस के बीच गलतफहमी पैदा करने के लिए ज़िम्मेदार हैं. इसी साल शुरू में लंबी बीमारी के बाद फर्नांडिस का निधन हो गया था.

वैसे, 2009 में नीतीश ने दिग्विजय सिंह को इस बिना पर टिकट नहीं दिया था कि 2008 में चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन के कारण बांका में राजपूत उम्मीदवार का जीतना संभव नहीं होगा. पर राजपूत उम्मीदवार दिग्विजय फिर भी निर्दलीय के रूप में जीत गए थे.

महेंद्र सिंह कहते हैं, ‘दादा ने रेलवे लाने समेत बांका के लिए बहुत कुछ किया था. इसी विरासत के लिए भाभी लड़ रही हैं. 2014 में भी वह मात्र 5,000 वोटों के अंतर से पराजित हुई थीं.’

पुतुल निर्दलीय के रूप में जीतकर अपने पति के करिश्मे को दोहराना चाहती हैं. उनके प्रचार अभियान में उनकी 27-वर्षीया पुत्री श्रेयसी सिंह साथ हैं. चैंपियन निशानेबाज़ श्रेयसी ने 2018 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता था.

पुतुल सिंह के एक समर्थक ने दिप्रिंट को बताया, ‘इसे विडंबना ही कहेंगे कि जदयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर श्रेयसी को एक स्टार प्रचारक के रूप में चुनाव अभियान से जोड़ना चाहते थे क्योंकि वह बिहार के युवाओं के लिए एक आदर्श शख्सियत हैं. दूसरी ओर, नीतीश कुमार ने ये सुनिश्चित किया कि पुतुल भाजपा टिकट पर नहीं लड़ पाएं.’

जब पुतुल निर्दलीय के रूप में चुनाव में खड़ी हो गईं तो भाजपा ने उनसे अपना नामांकन वापस लेने को कहा. उनके ऐसा नहीं करने पर उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. पर भाजपा को पता है कि वह बांका में एनडीए गठबंधन को कड़ी टक्कर देंगी. जैसा कि भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा भी, ‘देखा जाए तो बांका में पूरी पार्टी ही उनके साथ चली गई है.’

पुतुल सिंह का मुकाबला इस बार राजद के जयप्रकाश नारायण यादव और जद(यू) के गिरिधारी यादव से है.

भाजपा के लिए कटिहार में भी बांका जैसी ही स्थिति बन रही थी पर समय रहते उसे संभाल लिया गया. कटिहार की सीट भाजपा के गठबंधन सहयोगी जद(यू) को दिए जाने के बाद कटिहार से पार्टी टिकट की उम्मीद लगाए स्थानीय विधायक अशोक अग्रवाल ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने की धमकी दे डाली थी.

असंतुष्ट नेता को मनाने के लिए भाजपा के राज्य प्रमुख नित्यानंद राय को खुद कटिहार जाना पड़ा. आखिरकार अग्रवाल को मना लिया गया, पर राय को उनके खिलाफ नारे लगाते स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं का सामना करना पड़ा.

राजद की परेशानियां

बिहार के विपक्षी महागठबंधन के भीतर भी काफी असंतोष है. कांग्रेस-राजद की अगुआई वाले महागठबंधन में चार अन्य पार्टियां भी शामिल हैं.

जब राजद नेता लालू के उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव ने पिछले हफ्ते सीटों के बंटवारे की घोषणा की तो उसे सुनकर पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता एमएए फातमी भौंचक्के रह गए.

पूर्व सांसद जानते थे कि उन्हें अपनी पसंदीदा सीट दरभंगा से टिकट नहीं मिलेगा. इस सीट से फातमी चार बार जीत चुके हैं, हालांकि 2009 और 2014 में उन्हें पूर्व क्रिकेटर और तब भाजपा के उम्मीदवार कीर्ति आज़ाद से पराजित होना पड़ा था. आज़ाद भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आ गए हैं.

दरभंगा से टिकट के लिए कई दावेदार होने के कारण फातमी को पड़ोस की मधुबनी सीट का प्रस्ताव किया गया था. पर महागठबंधन में सीटों के बंटवारे के तहत ये सीट सहयोगी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को दे दी गई है.

नाराज़ फातमी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं पिछले तीन महीनों से मधुबनी में कैंप किए हुए था क्योंकि मुझे वहां से टिकट दिए जाने का भरोसा दिलाया गया था.’

अब सीट वीआईपी पार्टी को दिए जाने के बाद फातमी ने कहा कि वह दरभंगा और मधुबनी दोनों ही सीटों से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने के बारे में अपने समर्थकों से विचार-विमर्श कर रहे हैं.

उनकी धमकी से राजद खेमे में घबराहट देखी जा रही है क्योंकि मुसलमान मतदाताओं का एक वर्ग फातमी के साथ जा सकता है. पूर्व मंत्री और दरभंगा से राजद के उम्मीदवार अब्दुल बारी सिद्दिक़ी ने कहा, ‘मैं उन्हें ये कदम नहीं उठाने के लिए राज़ी करने का प्रयास करूंगा.’

परेशानी वाली एक और सीट खगड़िया की है, जहां राजद की 2014 की उम्मीदवार कृष्णा यादव ने वीआईपी पार्टी के संस्थापक मुकेश साहनी के खिलाफ निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने का इरादा व्यक्त किया है. यादव पिछले चुनाव में भाजपा की गठबंधन सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी के चौधरी महबूब अली कैसर से पराजित हुई थीं. कृष्णा क्षेत्र के बाहुबली रणवीर यादव की पत्नी हैं.

खगड़िया से 100 किलोमीटर दूर मधेपुरा में भी मामला उलझा हुआ है. राजद को यहां मौजूदा सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव से चुनौती मिल रही है. पांच बार के सांसद पप्पू यादव को 2015 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में राजद से निलंबित कर दिया गया था.

महागठबंधन ने मधेपुरा से जद(यू) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और सात बार सांसद रह चुके शरद यादव को उतारा है. शरद यादव मधेपुरा से विगत में चार बार जीत दर्ज करा चुके हैं. 2014 में उन्हें पप्पू यादव ने पराजित किया था, जो इस बार भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मधेपुरा सीट से खड़ा होने का इरादा व्यक्त कर चुके हैं.

पप्पू की घोषणा से क्रुद्ध राजद नेतृत्व ने अपना उम्मीदवार उतार उनकी पत्नी कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन के लिए उनके चुनाव क्षेत्र सुपौल में स्थिति मुश्किल बना देने की धमकी दे दी थी. पर, कांग्रेस पार्टी ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए राजद पर दबाव डाला है कि वह धमकी पर अमल नहीं करे.

एक स्थानीय नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘यदि पप्पू चुनाव लड़ते हैं तो इसका शरद यादव की जीत की संभावनाओं पर असर पड़ सकता है, क्योंकि यादवों में पप्पू का अच्छा समर्थन आधार है.’

राजद के लिए चिंता का एक और सबब लालू प्रसाद के बेटे तेज प्रताप की बगावत भी है. तेज प्रताप ने अपने एक समर्थक से जहानाबाद सीट से नामांकन दाखिल करने को कहा है, जहां विपक्षी महागठबंधन ने राजद का उम्मीदवार उतारा है.

राजद के एक अन्य विधायक ने कहा, ‘मामला इतना भर ही नहीं है, क्योंकि इस बात की अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि तेज प्रताप स्वयं भी सारण सीट पर निर्दलीय के रूप में अपने ससुर चंद्रिका राय के खिलाफ चुनाव लड़ सकते हैं.’

तेज प्रताप अपनी पत्नी ऐश्वर्या, जो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा राय की पौत्री हैं, से तलाक की कानूनी कार्यवाही में लगे हुए हैं. माना जाता है कि राजद के प्रभाव वाली सारण सीट से वरिष्ठ नेता चंद्रिका राय को उम्मीदवार बनाए जाने पर तेज प्रताप बुरी तरह बिफरे हुए हैं.

राजद विधायक ने कहा, ‘तेज प्रताप भले ही राजद वोटों में सेंध नहीं लगा पाएं, पर उनके चुनाव लड़ने से राजद समर्थकों का मनोबल गिरेगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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