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Monday, 23 December, 2024
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अब क्यों आया अखिलेश को कांग्रेस पर गुस्सा

चुनाव शुरू होने से लेकर तीन चरणों तक तो कांग्रेस और सपा अलग-अलग खेल खेल रहे थे लेकिन इधर यूपी में सपा और कांग्रेस के बीच तू तू मैं मैं कुछ बढ़ती दिख रही है.

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चुनाव शुरू होने से लेकर तीन चरणों तक तो कांग्रेस और सपा दोनों अलग-अलग खेल खेल रहे थे लेकिन इधर यूपी में सपा और कांग्रेस के बीच तू तू मैं मैं कुछ बढ़ती दिख रही है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव बार बार कांग्रेस पर धोखा देने का आरोप लगा रहे हैं. उनका कहना है कि कांग्रेस ने उनके खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति के मामले को ऐन चुनाव के वक्त हवा देना शुरू कर दिया है. समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव पर ये मामला 2005 से चल रहा है.

हाल में ही सुप्रीम कोर्ट vs इस मामले की जांच कर रही सीबीआई से केस का स्टेटस मांगा है. तभी से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कांग्रेस पर धोखा देने का आरोप भी लगाना शुरू किया है. अब यहां ये जानना भी ज़रूरी है कि 14 साल से चल रहे इस केस में ताज़ा हलचल से कांग्रेस का क्या संबंध? तो इस केस के कुछ पहलुओं के साथ पिछले 14 साल के कई महत्वपूर्ण राजनीतिक मोड़ों पर नज़र डालना ज़रूरी है.


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ये मामला दिसंबर 2005 में उत्तर प्रदेश के एक कांग्रेसी नेता विश्वनाथ चतुर्वेदी मोहन ने जनहित याचिका के ज़रिये सुप्रीम कोर्ट में दायर किया था. उन्होंने समाजवादी पार्टी के पूर्व मुखिया मुलायम सिंह और मौजूदा मुखिया अखिलेश यादव ही नहीं बल्कि पूरे परिवार की तमाम संपत्तियों का ब्यौरा सुप्राम कोर्ट में देते हुए दावा किया था कि उस समय के बाज़ार मूल्य के हिसाब से उत्तर प्रदेश के इस सबसे रसूख वाले यादव परिवार ने सौ करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति जोड़ रखी है जो उनकी आय के स्रोतों को दिखते हुए बहुत ज्यादा है. परिवार के जिन लोगों की संपत्ति इस याचिका में जोड़ी गयी उनमें समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव, उनके बेटे अखिलेश यादव, प्रतीक यादव और अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव शामिल थे.

सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2007 में सीबीआई को इस मामले में जांच के लिए कहा. उसी साल अक्टूबर में सीबीआई ने कोर्ट को बताया कि प्रथमदृष्टया केस बनता है. अदालत ने जांच रिपोर्ट सरकार को देने के निर्देश दिए पर सीबीआई ने अनुरोध किया कि जांच रिपोर्ट अदालत को ही देना बेहतर होगा.

इस बीच देश के राजनीतिक घटनाक्रम में भी कई मोड़ आये. मसलन 2007 के आखिर में तत्कालीन कांग्रेस सरकार न्यूक्लीयर डील पर संसद में समर्थन के लिए संघर्ष कर रही थी. मनमोहन सरकार को समर्थन दे रहा वाम मोर्चा इस मुद्दे पर अलग खड़ा था. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस डील को आगे बढ़ाने पर अडिग थे. जुलाई 2008 में वामपंथियों ने जब सरकार के लिए संकट खड़ा किया तब मुलायम सिंह यादव आगे आये और अपने 39 सांसदों के साथ सरकार के साथ खड़े हो गये. इसी महीने डिम्पल यादव की तरफ से प्रधानमंत्री को एक पत्र भेजा गया जिसमें कहा गया कि उन पर लगाए गये आरोप गलत हैं.

यहां ये जानना दिलचस्प होगा कि मनमोहन सरकार को न्यूकलीयर डील पर जुलाई 2008 के समाजवादी समर्थन के बाद इस केस में दो बड़े मोड़ आये. पहला- सॉलिसिटर जनरल ने डिम्पल यादव को राहत देने वाले तर्क अदालत के सामने रखे और दूसरा – सीबीआई ने यू-टर्न लिया और अपना सामान्य केस दर्ज करने और रिपोर्ट अदालत को देने का अनुरोध वापस लेना चाहा.

मामला दायर करने वाले विश्वनाथ चतुर्वेदी की इस पर आपत्ति पर फरवरी 2009 में कोर्ट ने फिर सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रख लिया. इस बीच ये खबरें भी आयीं कि सीबीआई ने मुलायम सिंह और अखिलेश यादव को क्लीन चिट दे दी है. इस बीच एक पुनर्विचार यचिका भी दायर हुई, पर मामला कछुआ गति से ही चलता रहा, सीबीआई की जांच में कोई प्रगति नहीं हुई और अगले करीब चार साल यूं ही कट गये.

दिसम्बर 2012 में आखिर पुनर्विचार यचिका पर फैसला आया जिसमें डिम्पल यादव को राहत मिली पर सीबीआई से बाकी लोगों के खिलाफ जांच जारी रखने को कहा गया.

अब ज़रा इन तमाम सालों के राजनीतिक घटनाक्रम पर नज़र डालें. मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी 2008 से लगातार मनमोहन सरकार के साथ खड़ी रही, चाहे वह फूड गारंटी बिल हो या राष्ट्रपति चुनाव या ऐसे ही दूसरे अहम मसले.

वैसे 2012 के बाद भी आय से ज्यादा सम्पत्ति वाले इस मामले में लगभग न के बराबर प्रगति हुई. फिर 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार आयी पर इस दौरान भी इस मामले पर कोई खास प्रगति नहीं हुई. हालांकि मामला दायर करने वाले विश्वनाथ चतुर्वेदी लगातार सक्रिय रहे और अदालत से जांच आगे बढ़वाने का अनुरोध करते रहे. पर हुआ कुछ नहीं.

आपको याद होगा कि कुछ महीनों पहले ही (फरवरी 2019 में) लोकसभा में मुलायम सिंह यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शुभकामनाएं देते हुए कहा था कि मोदी को वे फिर प्रधानमंत्री देखना पसंद करेंगे. इससे पहले 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के शपथग्रहण के वक्त मुलायम सिंह प्रधानमंत्री मोदी के कान में कुछ फुसफुसाये थे जिसे वहां आसपास मौजूद रहे लोग अखिलेश यादव का ध्यान रखने का अनुरोध बताते हैं.


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तो समाजवादी पार्टी का मुखिया परिवार अचानक लोकसभा चुनाव के ऐन बीच में, 14 साल पुराने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के नये निर्देश से परेशान तो दिख रहा है. पर सवाल ये है कि अखिलेश यादव पहले इस बात पर कांग्रेस से खफा क्यों नहीं थे. पहले तो कांग्रेस के साथ जोड़ी बना कर चुनाव भी लड़ लिया और इस लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के सामने अपने उम्मीदवार भी नहीं खड़े किये. ये भी सबको मालूम है कि सुप्रीम कोर्ट में उनके खिलाफ जनहित याचिका दायर करने वाले विश्वनाथ चतुर्वेदी जाने-माने कांग्रेसी हैं. वह उत्तर प्रदेश कांग्रेस में पदाधिकारी तो रहे ही, 2002 में कांग्रेस के टिकट पर हैदरगढ़ से बीजेपी के दिग्गज नेता और आज भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के खिलाफ चुनाव भी लड़ चुके हैं. तो ये नाराज़गी कहीं चुनाव बाद नये समीकरण बनने का संकेत तो नहीं. सोचना चाहिये.

(अरुण अस्थाना वरिष्ठ पत्रकार है.)

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