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Wednesday, 24 April, 2024
होम2019 लोकसभा चुनाववोटर राष्ट्र हित में वोट डालता है, परिवार और जाति की राजनीति के दिन लद गए : अरुण जेटली

वोटर राष्ट्र हित में वोट डालता है, परिवार और जाति की राजनीति के दिन लद गए : अरुण जेटली

राजनीतिक विश्लेषकों में चाहे जो कंफ्यूज़न हो पर वोटर के मन में कोई संशय नहीं. वे त्रिशंकु संसद नहीं चुनना चाहते जिसमें काम न करने वाले गठबंधनों की भूमिका अहम होती है.

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नई दिल्ली: एग्ज़िट पोल के आने के बाद केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि विपक्ष दीवार पर लिखी इबारत को नहीं पढ़ पा रहा है. उनका कहना था कि चाहे लोग एग्ज़िट पोल के सही होने न होने पर लड़ ले पर यथार्थ यही है कि कई एग्ज़िट पोल एक तरह की बात कर रहे हैं और नतीजा भी उसी दिशा में आयेगा, और अगर यह नतीजों में तब्दील होते हैं तो विपक्ष की ईवीएम पर झूठी बहस भी खत्म हो जायेगी.

उनका कहना है कि अगर ये पोल सही है तो यह दिखाता है कि भारतीय लोकतंत्र परिपक्व हो रहा है और राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रख लोगों ने मत का प्रयोग किया है. उनके अनुसार मतदाता ने जो संदेश भेजा है वो इस प्रकार है:

– वंशवादी दल, जातिवादी दल और रोड़े अटकाने वाले वाम विचारधारा वालों को 2014 में धक्का पहुंचा था.

– ‘विरोधी सोच वालों का गठबंधन’ ऐसा गठबंधन है जिनपर वोटर अब विश्वास नहीं करना चाहता. राजनीतिक विश्लेषकों में चाहे कोई कंफ्यूज़न हो पर वोटर के मन में कोई संशय नहीं. वे त्रिशंकु संसद नहीं चुनना चाहते जिसमें काम न करने वाले, भद्दे गठबंधनों की भूमिका होती है.

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-जातिवादी गठबंधनों का गणित, ज़मीन पर जीतने वाले से केमिस्ट्री के हाथों हार जाता. ये केमिस्ट्री जनता के राष्ट्रीय हित की सोच के अनुरूप होने के कारण विकसित हुई है.

– नकली मुद्दे केवल ‘ झूठ गढ़ने वालों’ को संतुष्ट करता है. मतदाता उसे नहीं स्वीकार करता.

– मोदी के खिलाफ निजी हमलों को 2014 में लोगों ने स्वीकार नहीं किया था और शायद ये 2019 में भी कारगर साबित न हों. नेताओं को उनकी मेरिट पर आंका जाता है न कि जाति और परिवार के नाम पर. इसलिए प्रधानमंत्री का जात से ऊपर उठ कर कामपर ज़ोर देने को जनता ने ज्यादा पसंद किया है.

– मैंने पहले जो कहा था कि कांग्रेस के लिए उसका प्रमुख परिवार एक ताकत होने की बजाए पार्टी के गले का फंदा बन गया है. परिवार के बिना भीड़ नहीं जुटती, परिवार के साथ वोट नहीं मिलते.

कई राजनेताओं को लगता है कि सारा ज्ञान उन्हीं के पास है इसलिए कोई उग्र सुधारवादी समाधान नहीं ढ़ूढ़ते. बदलता ‘ नया भारत’ उन पार्टियों को और हुनर को पहचानता है जिसके पास वैचारिक स्पष्टता है जो काम पर केंद्रित है. अगर राजनीतिक दल 2014 के संदेश को ग्रहण नहीं करना चाहते, और शायद 2019 के संदेश को भी, तो वे मतदाताओं से और ज्यादा कटते जायेंगे.

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