राजनीतिक विश्लेषणों में एक आम गलती ये होती है कि हम अपनी चाहत और उम्मीद में फर्क नहीं करते. उन्हें आपसे में मिलाकर किसी होने जा रही घटना की तस्वीर बनाते हैं. सो, आपको बीजेपी के आलोचक ये कहते हुए मिल जायेंगे कि पार्टी ये चुनाव हार जायेगी जबकि बीजेपी के समर्थक आपको इसका उल्टा बताते मिलेंगे. इसी कारण शनिवार को व्हाट्सएप्प पर घूम रहे एक संदेश में कई दोस्तों ने यकीन कर लिया. व्हाट्सएप्प पर मेरे नाम से एक फर्जी चुनावी पूर्वानुमान (2019) घूम रहा, जिसमें राज्यवार पार्टियों को मिलने जा रही सीटों का ब्यौरा दिया गया था. (अगर आप जानना चाहते हैं कि व्हाट्सएप्प के उस संदेश में लिखा क्या था तो यहां आपकी उत्सुकता के शमन के लिए बताते चलें कि उस फर्जी पूर्वानुमान में बीजेपी को 146 सीटें तथा कांग्रेस को 137 सीटें मिलने की बात कही गई थी). सो मैंने सोचा कि क्यों ना मैं शाम को एग्जिट पोल के आने से पहले यहां चुनावी नतीजों के बारे में अपने आकलन को सार्वजनिक कर दूं.
मैं अब चुनावों के पूर्वानुमान का काम नहीं करता. हां, मैंने छह माह पहले एक विश्लेषण में ये जरुर लिखा था कि बीजेपी को 100 सीटों का घाटा हो सकता है. बालाकोट की घटना के बाद मैंने ये भी लिखा कि स्थिति बदली है. और, इसके बाद पहले चरण के चुनाव के तुरंत पहले लिखा कि एनडीए अभी बढ़त की स्थिति में हैं.
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यहां पहली तालिका में संभावित तस्वीर का एक मिला-जुला निष्कर्ष लिखा गया है : जिन स्थितियों के आगे ‘संभावित’ लिखा गया है, उन सब ही का संकेत है कि बीजेपी नरेन्द्र मोदी फिर से सत्ता में आने वाले हैं. ऐसा होने की तीन संभावित स्थितियां हैं : सबसे ज्यादा संभावना है कि एनडीए (ना कि बीजेपी) 272 का आंकड़ा पार कर जाये, लेकिन हम तयशुदा पर यह नहीं कह सकते कि बीजेपी स्वयं बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंचेगी या फिर एनडीए बहुमत से पीछे रह जाने पर टीआरएस, वायएसआरएस या फिर बीजेडी सरीखे दलों को अपने साथ ना जोड़ पायेगी. बाकी दो स्थितियां (नितिन गडकरी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार का गठन या फिर महागठबंधन की सरकार) अब मुमकिन नहीं जान पड़ रहीं.
दूसरे आरेख में बीजेपी की हासिल होने जा रही सीटों के अनुमान का एक सीधा-सरल तरीका बताया गया है. छह महीने पहले मैंने लिखा था कि बीजेपी को पूरब (पूर्वोत्तर, पश्चिम बंगाल तथा ओड़िशा) में जो सीटों का मामूली फायदा होगा, वो पश्चिम तथा दक्षिणी हिस्से में उसे हो रहे सीटों के नुकसान से बराबर हो जायेगा. लेकिन, अब हमें समीकरण पर फिर से सोचने की जरुरत है: क्या बीजेपी को पूरब में सीटों का जो फायदा होने जा रहा है, वो यूपी को छोड़कर, देश के शेष हिस्से में उसे हो रहे सीटों के नुकसान की भरपायी कर पायेगा ? अगर ऐसा होता है तो फिर बीजेपी को यूपी में जो सीटों का घाटा होने जा रहा है वह राष्ट्रीय फलक पर उसे सीटों के मामले में होने जा रहे कुल घाटे का संकेतक होगा. (सीन 1).
अगर यूपी को छोड़कर शेष भारत में बीजेपी को सीटों का जो घाटा होने जा रहा है वो पूरब के इलाके में उसे हो रहे सीटों के फायदे से कहीं ज्यादा है तो फिर एनडीए बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने में नाकाम रह सकती है.(सीन 3).
लेकिन, हम इस संभावना से भी इनकार नहीं कर सकते कि बीजेपी को पूरब के इलाके में इतनी ज्यादा सीटें मिल जायें कि यूपी समेत शेष भारत में उसे सीटों का जो नुकसान होगा उसकी कमोबेश भरपायी हो जाये, ऐसे में बीजेपी स्वयं भी बहुमत के आंकड़े तक पहुंच सकती है.(सीन 2)
वैधानिक चेतावनी : ये बातें मेरे आकलन पर आधारित हैं, किसी एक्जिट पोल या फिर पोस्ट-पोल सर्वेक्षण पर नहीं. तस्वीर में ज्यादा बेहतर बनाने के लिए हमें एक्जिट पोल की प्रतीक्षा करनी होगी.
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क्या उत्तरप्रदेश को छोड़कर शेष भारत में बीजेपी को जो सीटों का नुकसान होने जा रहा है, उसकी भरपायी पूरब में हो रहे सीटों के फायदे से हो पायेगी ? अगर ऐसा होता है तो फिर बीजेपी को यूपी में जो सीटों का घाटा होने जा रहा है वह राष्ट्रीय फलक पर उसे सीटों के मामले में होने जा रहे कुल घाटे का संकेतक होगा, अन्यथा बीजेपी को सीटों का ज्यादा नुकसान होगा.
(योगेंद्र यादव राजनीतिक दल, स्वराज इंडिया के अध्यक्ष हैं.)
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