बेगूसराय: बेगूसराय की धरती राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि है. यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला होने वाला है. राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर महागठबंधन से तनवीर हसन, सीपीआई से कन्हैया कुमार और भाजपा से गिरिराज सिंह चुनावी लड़ाई में आमने-सामने हैं. यह केवल चुनाव ही नहीं है, बल्कि विचारधाराओं की लड़ाई है.
आम चुनाव का बुख़ार सिर चढ़कर बोल रहा है और इसका असर ज़मीन पर कैसा है यह देखने दिप्रिंट बिहार के बेगूसराय पहुंचा.
राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे तनवीर हसन से बातचीत हुई तो उन्होंने कहा कि मीडिया में जैसी तस्वीर पेश की जा रही है मामला वैसा नहीं है. दरसअल, राष्ट्रीय मीडिया में इस सीट की कहानी को सीपीआई के कन्हैया कुमार बनाम भाजपा का गिरिराज सिंह का बना दिया गया है. इसी से जुड़ा सवाल जब हसन से पूछा गया तो उन्होंने शालीनता से कहा कि जो उन्हें तीसरे नंबर पर बता रहे हैं उनका गणित ग़लत है या वो प्रोपोगेंडा कर रहे हैं.
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जब उनसे पूछा गया कि उनकी असली लड़ाई कन्हैया के साथ है या गिरिराज सिंह के साथ तो उन्होंने कहा, ‘मेरी किसी व्यक्ति से कोई लड़ाई नहीं है.’ वो आगे कहते हैं कि लड़ाई महागठबंधन बनाम एनडीए की है. यानी उनका इशारा यही था कि उनकी लड़ाई गिरिराज सिंह से है. वहीं, महागठबंधन के बेगूसराय सीट पर मुकाबले में होने वाले सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि महागठबंधन सिर्फ इस सीट पर ही नहीं बल्कि पूरे राज्य में मुक़ाबले में है.
इसके बाद वो कन्हैया कुमार पर अप्रत्यक्ष हमला करते हुए कहते हैं कि इस सीट पर उसे जीतता हुआ दिखाया जा रहा है जो कि पूरे राज्य में सिर्फ एक सीट पर लड़ रहा है. कन्हैया के उन पर हमले के बारे में हसन कहते हैं कि अगर कन्हैया ये लड़ाई अपनी बनाम गिरिराज सिंह से बात रहे हैं तो ये ग़लत है. फिर वे सवाल उठाते हैं कि क्या ऐसा कहने के लिए उनके पास पूरा जनादेश है? फिर वो इस बात पर ज़ोर देते हुए कहते हैं कि पूरे बिहार में महागठबंधन का जनाधार है ऐसे में हर जगह लड़ाई में वो रहेंगे और वो तीसरे स्थान पर तो बिल्कुल ही नहीं हैं.
राजद अध्यक्ष लालू के इस चुनाव में नहीं होने की बात पर वो कहते हैं कि लालू की सारी टीम है, उनकी पार्टी है और उनका बेटा (तेजस्वी यादव) है जो कि नेतृत्व देने में पूरी तरह से सक्षम है. फिर वो ये भी कहते हैं कि लालू चाहे कहीं भी रहेंगे, उनका जनाधार वहीं रहेगा. पटना के राजनीतिक हलक मे ये चर्चा है आरा की सीट पर राजद ने माले को वॉक ओवर दे दिया है. ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि पिछली बार मीसा भारती जितने वोटों से चुनाव हारी थीं उतने वोट माले को मिले थे. इससे जुड़े सवाल के जवाब में हसन कहते हैं, ‘हमने माले को इस सीट पर वॉक ओवर नहीं दिया है.’ उन्होंने कहा कि हमने उन्हें ये सीट ऑफर की. वहां से कई बार आरजेडी के एमपी रह चुके हैं. वो कहते हैं कि हमने उनके लिए ये सीट छोड़ दी. हालांकि, इस सवाल का जवाब देते हुए हसन मीडिया पर मनगढ़ंत बातें गढ़ने का जो आरोप लगाते हैं जिससे लगता है कि वाकई सीट पर माले को वॉक ओवर दिया गया है.
लंबे समय तक चली उन अटकलों को भी हसन मीडिया की उपज बताते हैं जिसके अनुसार महागठबंधन कन्हैया को सीट देने की चर्चा कर रहे थे, वो यहां तक कहते हैं कि इस सीट को लेकर कभी आरजेडी और सीपीआई के बीच बातचीत हुई ही नहीं थी और कन्हैया के पक्ष ने ये बात आगे बढ़ा दी कि सीट उनके लिए छोड़ दी गई है. राजनीतिक और मीडिया हलको में ये चर्चा है कि तेजस्वी ने सीट कन्हैया के लिए इसलिए नहीं छोड़ी क्योंकि उनके भीतर असुरक्षा का भाव है. उन्हें लगता है कि अगर कन्हैया बड़े नेता बन गए तो कहीं फिर से बिहार की राजनीति में वहीं बाइनरी न आ जाए और उनकी स्थिति अपने पिता लालू और कन्हैया की नितीश कुमार सी न हो जाए. इससे जुड़े सवाल को हसन ने गाइडेड बताकर ख़ारिज कर दिया. इस मोड़ पर जब उनसे कहा गया कि गिरिराज सिंह इस सीट पर आने से डर रहे थे तो इसे ख़ारिज करते हुए वो कहते हैं, ‘ऐसा कहना ग़लत है, मेरी लड़ाई उन्हीं से है.’
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बेगूसराय चुनाव से जुड़े मुद्दों की बात करते हुए वो कहते हैं कि ये राष्ट्रीय चुनाव है और इसे लोकल मुद्दों पर नहीं लड़ा जा रहा है. वो कहते हैं कि राष्ट्रीय सवाल संविधान की रक्षा, लोकतंत्र की रक्षा का है. संविधान से छेड़-छाड़ हो रहा है और दलितों, शोषितों और वंचितों को जो अधिकार दिए गए हैं उन्हें उन अधिकारों से वंचित करने की साज़िश हो रही है. इन सवालों को वो अपने सवाल बताते हुए कहते हैं कि इन्हीं सवालों पर देश भर में चुनाव लड़ा जा रहा है.
एक और सवाल में जब उनसे पूछा गया कि अगर महागठबंधन से वो या कन्हैया अकेले उम्मीदवार होते तो क्या ये लड़ाई बीजेपी के गिरिराज सिंह के लिए मुमकिन रह जाती तो उन्होंने कहा कि वो इस सवाल का जवाब नहीं देंगे. वहीं, दिप्रिंट ने जब ज़मीनी हक़कीत जानने के लिए बेगूसराय के लोगों और तमाम पार्टियों के कैंपेन में लगे लोगों से बाती की तो सबका एक मत था कि अभी साफ नहीं कि कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है.
इस सीट से एक और बात निकलकर ये आई कि जनता का मानना है कि प्रचार के अंतिम तीन से चार दिनों में जब पैसे और शराब को ज़ोर चलेगा तो असली खेल तय होगा. वहीं, तमाम लोगों ने एक सुर में कहा कि कुछ भी हो लेकिन हसन फाइट से बाहर तो कतई नहीं हैं.