नई दिल्लीः 2019 के लोकसभा चुनाव की घोषणा के वक्त आश्चर्य हुआ कि पश्चिम बंगाल की 42 सीटों पर सात चरणों में चुनाव क्यों हो रहे हैं. सोशल मीडिया पर आरोप लगे कि भाजपा को कैंपेन करने के लिए वक्त मिल जाए, इसलिए ये इंतज़ाम किया गया है. उसी वक्त अंदाज़ा लग गया था कि मोदी वर्सेज दीदी की चुनावी जंग तेज़ होने वाली थी. सातों चरणों में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच ज़बर्दस्त झड़पें हुईं और सातवें चरण से ठीक पहले अमित शाह की रैली में भी मार-पीट हुई. अमित शाह ने बयान दिया कि सीआरपीएफ नहीं रहती तो उनकी जान भी जा सकती थी. इसी हिंसा में पुनर्जागरण के नायक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की प्रतिमा भी तोड़ दी गई. माना जाने लगा कि भाजपा बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को टक्कर दे रही है.
अगर एग्ज़िट पोल्स की मानें तो भाजपा ने बंगाल में सेंध लगा ली है. टीवी9- सी-वोटर के एग्ज़िट पोल के मुताबिक बंगाल में भाजपा को 11 सीटें और टीएमसी को 29 सीटें मिलने का अनुमान है. वहीं एनडीटीवी के पोल्स ऑफ पोल्स के मुताबिक पश्चिम बंगाल में बीजेपी को14 सीटें मिल सकती हैं. टाइम्स नाउ- वीवीआर के एग्ज़िट पोल की मानें तो बंगाल में भाजपा को 9 सीटों का फायदा हो सकता है.
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अगर ये एग्ज़िट पोल सही नहीं भी निकलें तो सवाल ये है कि बंगाल में भाजपा इतना समर्थन जुटाने का दम कैसे भर रही है. मुख्य तौर पर इसके ये 7 कारण नज़र आ रहे हैं:
लेफ्ट पार्टी का प्रभाव और ममता-मोदी का उदय
2006 में एक बार फिर पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टी की सरकार बनी थी. टाटा मोटर्स दुनिया की सबसे सस्ती लखटकिया कार नैनो बनाने जा रही थी. लेफ्ट पार्टी ने रोज़गार के मसले को देखते हुए टाटा को बंगाल आमंत्रित किया. मई 2006 में हुगली ज़िले के सिंगूर में इस प्रोजेक्ट के लिए 997 एकड़ ज़मीन देखी गई. बहुत सारे किसान अपनी ज़मीन बेचने के लिए राज़ी हो गए लेकिन बहुत सारे ऐसे थे जिन्होंने ममता बनर्जी की अगुवाई में विरोध कर दिया. वो अपनी ज़मीन नहीं बेचना चाहते थे. इस बात को लेकर काफी हिंसा हुई. एक लड़की तापसी मलिक का रेप और मर्डर हुआ. बाद में एक किसान ने आत्महत्या कर ली जिसके बाद खूब हिंसा हुई. मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की सारी कोशिशें नाकाम रहीं और ममता बनर्जी ने अभूतपूर्व सफलता हासिल कर ली.
उसी वक्त बंगाल के नंदीग्राम में भी इंडोनेशिया की एक कंपनी के प्लांट को लेकर इसी तरह का विरोध हुआ. ममता बनर्जी ने काफी लोकप्रियता हासिल कर ली. 2011 के विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी बहुमत से जीतकर मुख्यमंत्री बन गईं और टाटा मोटर्स को किसानों की ज़मीन वापस करने का फरमान सुना दिया. हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट जाने के बाद टाटा को हार का सामना करना पड़ा. कोर्ट ने भी सरकार के पक्ष में फैसला दिया.
पर नरेंद्र मोदी को भी इसी मामले से सफलता मिली थी. टाटा मोटर्स के सिंगूर में फंसने के बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी ने सानंद में नैनो की फैक्ट्री लगाने का प्रस्ताव दे डाला. यहीं से मोदी की इंडस्ट्री फ्रेंडली, डिसीज़न मेकर और विकास पुरुष की इमेज बनी जो बाद में पीएम पद तक काम आया.
सांस्कृतिक संगठन आरएसएस का अथक परिश्रम
त्रिपुरा की तर्ज पर ही 90 के दशक से ही आरएसएस पश्चिम बंगाल में आदिवासी क्षेत्रों में एकल विद्यालय और स्वास्थ्य के मुद्दों पर काम कर रहा था पर कम्युनिस्ट पार्टी के चलते सफल नहीं हो पा रहा था. वहीं सिंगूर मामले में लेफ्ट के कमज़ोर पड़ने के बाद आरएसएस की पहुंच जनता में बढ़ने लगी. बलरामपुर, मिदनापुर, पुरुलिया इत्यादि जगहों पर आरएसएस ने काफी नाम बना लिया. इनका मुख्य काम शिक्षा, स्वास्थ्य और हिंदू धर्म को बढ़ावा देना था.
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पंचायती चुनाव
2007 के पंचायती चुनावों में लेफ्ट पार्टी के खिलाफ ममता बनर्जी को सफलता मिली थी. जो इनके मुख्यमंत्री बनने के काम आई. 10 साल बाद बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और धर्म के मसले पर यही सफलता भाजपा को 2017 के पंचायती चुनावों में मिली. राज्य की कुल 31,802 ग्राम पंचायत सीटों में से टीएमसी ने 20,848 सीटें जीतीं तो भाजपा ने 5,636 सीटों पर जीत दर्ज की. बलरामपुर में तो भाजपा ने 90% पंचायती सीटें जीत लीं. यही नहीं, म्यूनिसिपल चुनावों में भी भाजपा को बढ़िया सफलता मिली थी. ममता बनर्जी ग्रामीण क्षेत्रों में अपने काम को लेकर आश्वस्त थीं लेकिन उनके मंत्रियों के गढ़ में भी भाजपा ने पंचायती राज की सीटें जीत लीं.
बांग्लादेशी मूल का मुद्दा
2005 में संसद में बोलते हुए ममता बनर्जी ने कहा था कि वोटरलिस्ट में गैरकानूनी तरीके से बांग्लादेशी घुस गये हैं और चुनाव को प्रभावित कर रहे हैं. जब लोकसभा के डिप्टी स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल ने इस पर बहस से मना कर दिया तो ममता बनर्जी वेल में जाकर रो पड़ीं और चिल्लाने लगीं. उन्होंने लोकसभा सदस्यता से त्यागपत्र भी दे दिया जिसे स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि वो ‘प्रॉपर फॉर्मेट’ में नहीं था. पर इस साल भाजपा सरकार के नेशनल रजिस्ट्री ऑफ सिटीज़नशिफ और असम नागरिकता के मुद्दे पर ममता बनर्जी ने अपना रुख बदल दिया. वो बांग्लादेशी लोगों की भारतीय नागरिकता के संदर्भ में भाजपा सरकार की सबसे बड़ी आलोचक बन गईं. भाजपा समर्थित समूहों ने तुरंत इसे मुद्दा बना लिया. चुनाव प्रचार के दौरान ममता बनर्जी के एक नेता ने बांग्लादेशी अभिनेता को भी प्रचार में उतारा था. जिसे इलेक्शन कमीशन ने बैन कर दिया. इसमें भी ममता की काफी किरकिरी हुई.
दुर्गा पूजा और मुहर्रम
अभी चुनाव प्रचार के दौरान बंगाल में योगी आदित्यनाथ ने कहा- ‘यहां पर तो दुर्गा पूजा का वक्त बदल दिया जाता है. लेकिन यूपी में मैंने साफ कह दिया की पूजा तो अपने टाइम पर होगी, वक्त बदलना है तो मुहर्रम के ताजिये का बदलो.’ योगी 2017 के परिप्रेक्ष्य में बोल रहे थे. 2017 में दुर्गा पूजा के वक्त ही मुहर्रम भी था और ममता बनर्जी ने हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद मुहर्रम के दिन दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर प्रतिबंध लगा दिया था. भाजपा ने इस घटना को काफी बड़ा मुद्दा बनाते हुए इसे मुस्लिम तुष्टीकरण और हिंदू विरोधी भावना के रूप में प्रचारित किया. ठीक इसी तरह से अभी चुनाव प्रचार के दौरान जय श्री राम के नारे लगाने पर ममता बनर्जी नाराज़ हो गई थीं. अमित शाह ने मौके को देखते हुए ऐलान कर दिया कि मैं जय श्रीराम के नारे के साथ बंगाल जा रहा हूं, ममता को जो करना है, कर लें. ये अलग बात है कि शाम को उन्होंने पत्रकारों से कहा कि आज मेरी जान भी जा सकती थी.
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2016 धुलागढ़ दंगे
हावड़ा और कोलकाता से कुछ ही दूर धुलागढ़ में दिसंबर 2016 में कथित तौर पर दंगे हुए. फेक न्यूज़ भी खूब फैलीं. रोज़ ही हिंसा की नई वीडियो सामने आती थीं, जो कई बार फेक साबित हुईं. लेकिन धीरे-धीरे ये खबर फैल गई कि वहां की मुस्लिम आबादी ने हिंदुओं के खिलाफ काफी हिंसा की है. ममता बनर्जी ने इस मामले को सांप्रदायिक मानने से इंकार कर दिया और कह दिया कि ये छोटी घटना है. भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस पर ही दंगा भड़काने का आरोप लगा दिया. वॉट्सऐप ग्रुप में ममता बनर्जी को ‘ममता बानो’ कहा जाने लगा. हिंदूवादी समूहों को इस बात से काफी फायदा हुआ. उनकी मुस्लिम तुष्टीकरण वाली इमेज बनने लगी.
अराजकता और गुंडागर्दी
2017 के पंचायत चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने लगभग एक तिहाई सीटों पर निर्विरोध चुनाव जीता था. ये लोकप्रियता की वजह से नहीं था, लोगों ने इसे हिंसा की वजह से बताया. उस दौरान कई लोगों की मौतें भी हुईं. भाजपा ने इसे मुद्दा बना लिया कि लेफ्ट पार्टी की तरह ही तृणमूल कांग्रेस भी हिंसा कर रही है. इस हिंसा की परिणति अभी हो रहे लोकसभा चुनावों में दिख रही है. भाजपा और तृणमूल कांग्रेस दोनों ही एक-दूसरे पर हिंसा के आरोप लगा रही हैं. इस चुनाव में भी झड़पें और मौतें हुई हैं.