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Thursday, 19 December, 2024
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लालू के गंवई अंदाज को मिस कर रहा है बिहार, खुला खत लिख कार्यकर्ताओं में भरा जोश

आम चुनाव में राजद की कमान तेजस्वी प्रसाद यादव ने संभाल रखी है. लेकिन लालू की अनुपस्थिति में तेजस्वी को न केवल टिकट बंटवारे में परेशानी हुई, बल्कि सीट बंटवारे में भी उन्हें उलझनों से दो-चार होना पड़ा है.

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नई दिल्ली/ पटना: चारा घोटाले में दोषी पाए जाने के बाद पिछले डेढ साल से राजद प्रमुख और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव जेल में हैं. गंवई अंदाज, करिश्माई व्यक्तित्व के धनी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद के जीवन का यह पहला आम चुनाव है, जब वह चुनाव में सक्रिय भूमिका में नजर नहीं आ रहे हैं. लेकिन उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) उन्हें किसी न किसी रूप में चुनाव के साथ जोड़े हुए है.

पिछले दिनों लालू के पुत्र तेजस्वी ने कहा कि उन्हें उनके बीमार पिता से मिलने नहीं दिया जा रहा है. वहीं किसी न किसी रूप में पार्टी अपने मुखिया को याद कर ही रही है.

तस्वीर गले से लगाए पहुंची मीसा

पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र से महागठबंधन की प्रत्याशी और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की पुत्री मीसा भारती अपना नामांकन-पत्र दाखिल करते समय पूरे वक्त लालू की तस्वीर गले से लगाए रहीं.

मीसा कहती हैं कि पिताजी की कमी इस मौके पर खल रही है. हालांकि वह यह भी कहती हैं कि उनके विचार आज भी कार्यकर्ता से लेकर मतदाताओं तक पहुंच रहे हैं.

खुला खत लिख कर कार्यकर्ताओं में भरा जोश

हालांकि लालू ने खुद को इस चुनाव में जोड़े रखने के लिए तथा कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए मतदान के पूर्व ही एक खुला पत्र लिखकर अपना संदेश दिया था.

लालू सोशल मीडिया के जरिए भी खुद को चुनाव से जोड़ रहे हैं. वह ट्विटर के जरिए विरोधियों की कमियां गिना रहे हैं तो कई मौकों पर उन पर निशाना साध रहे हैं.

चुनाव से ठीक पहले लालू प्रसाद की लिखी पुस्तक ‘गोपालगंज से रायसीना’ के कई अंश प्रकाश में आने के बाद भी लालू चर्चा में रहे.

लालू प्रसाद की आत्मकथा ‘गोपालगंज से रायसीना’ के सहायक लेखक और पत्रकार नलिन वर्मा कहते हैं, “लालू समय की अहमियत को समझते हैं. उनके जेल में रहने के बाद राजद में ऐसा कोई धाकड़ नेता नहीं है. इस पुस्तक में वे सारी बातें हैं, जो किसी भी राजनीतिक दल को चुनाव में चाहिए.”

वर्मा कहते हैं, ‘आज भले ही राजद के लोग उनके संदेशों को मतदाताओं तक पहुंचाने में जुटे हैं, परंतु यह कितना असरकारक होगा यह देखने वाली बात होगी. मतदाताओं में लालू की गहरी पैठ रही है, जिसे कोई नकार नहीं सकता. इस चुनाव में पार्टी के लोगों को यह कमी खल रही है और इसका नुकसान भी पार्टी को उठाना पड़ सकता है.’

राजद की रणनीति भी लालू प्रसाद को इस चुनाव में जोड़े रखने को लेकर स्पष्ट नजर आती है. तेजस्वी और राबड़ी देवी ने कई ट्वीट में लालू के नाम पर सहानुभूति बटोरने की कोशिश की हैं.

राबड़ी देवी एक ट्वीट में लिखती हैं, ‘भाजपा सरकार लालू जी को अस्पताल में जहर देकर मारना चाहती है. परिवार के किसी भी सदस्य को उनसे महीनों से मिलने नहीं दिया जा रहा है. भारत सरकार पगला गई है. नियमों को दरकिनार कर उपचाराधीन लालू जी के साथ तानाशाही सलूक किया जा रहा है. बिहार की जनता सड़क पर उतर आई तो अंजाम बहुत बुरा होगा.’

चुनावों में अपनी पार्टी के प्रत्याशियों से लेकर चुनाव प्रचार अभियान, कार्यकर्ताओं से मिलने और खुद चुनाव प्रचार करने में जुटे रहने वाले लालू इस चुनाव में यहां से करीब 300 किलोमीटर दूर जेल में बंद हैं.

आम चुनाव में राजद की कमान तेजस्वी प्रसाद यादव ने संभाल रखी है. लेकिन लालू की अनुपस्थिति में तेजस्वी को न केवल टिकट बंटवारे में परेशानी हुई, बल्कि सीट बंटवारे में भी उन्हें उलझनों से दो-चार होना पड़ा है.

हालांकि यह भी कहा जाता है कि पटना के 10 सर्कुलर रोड स्थित पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर भले ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक हुई, परंतु प्रत्याशियों के नामों पर अंतिम मुहर लालू प्रसाद ने ही लगाई.

पार्टी ही नहीं पूरा बिहार मिस कर रहा है लालू को

राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, ‘लालू प्रसाद की कमी पार्टी को ही नहीं, पूरे बिहार को खल रही है. लालूजी को गांव से लेकर कस्बे तक के कार्यकर्ताओं के नाम याद हैं. कई युवा कार्यकर्ताओं के पिताजी तक का नाम वह याद रखते हैं. आज इस वक्त उनका जेल में होना हम सब के लिए रणनीतिक लिहाज से एक बड़ा नुकसान है.’

विरोधी हालांकि लालू के उस पुराने जादू को अब नकारते हैं. जनता दल (युनाइटेड) के प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं, ‘राजद भले ही जेल में बंद लालू को इस चुनाव में जोड़े रखने का प्रयास कर रहा हैं, परंतु अब बिहार की राजनीति में परिवर्तन आ गया है.’

वह कहते हैं, ‘नब्बे के दशक से अब तक राजनीति में बहुत परिवर्तन हो गया है. लालू किस मामले में जेल गए हैं, यहां के मतदाता जानते हैं. ऐसे में राजद भले ही उनके नाम पर सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इसका लाभ नहीं मिलने वाला है.’

(आईएएनएस के इनपुट्स के साथ)

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