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Monday, 23 December, 2024
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राहुल गांधी का सलाहकार, वो लड़का जिसने कभी मनमोहन सिंह को काले झंडे दिखाए थे

उत्तर प्रदेश निवासी संदीप सिंह 2007 में जेएनयू छात्र संघ का प्रमुख चुने गए थे. अब वह आइसा के अपने अनुभवों के सहारे राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा को बढ़त दिलाने का प्रयास कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: अनुमान लगाइए कि आजकल राहुल गांधी का राजनीतिक सलाहकार कौन है? नया सलाहकार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में पढ़ा एक पूर्व वामपंथी युवक है, जिसने 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को काले झंडे दिखाए थे.

संदीप सिंह को अभी कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सलाहकार का पदनाम नहीं मिला है. पर, उनके भाषण आजकल वही लिखते हैं, और माना जाता है कि गठबंधन के मुद्दों पर भी वह राहुल को सलाह देते हैं.

इसलिए, जब राहुल को अपनी बहन कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को उत्तर प्रदेश में गाइड करने की ज़रूरत हुई तो उन्होंने एक बार फिर संदीप सिंह को चुना. और तभी से वह राज्य में प्रियंका के दौरे के साथ हैं, और कहा तो ये जा रहा है कि सारा काम वही संभाल रहे हैं.

किसी को नहीं पता कि कैसे कांग्रेस अध्यक्ष ने सिंह पर इतना अधिक भरोसा करना शुरू किया, पर कांग्रेस सूत्रों के अनुसार 2017 में अचानक से वह गांधी के इर्द-गिर्द देखे जाने लगे थे.

‘आइसा’ का अतीत

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के एक मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले संदीप सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करने के बाद जेएनयू आए थे. वहां वह अतिवामपंथी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की छात्र शाखा ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) के संपर्क में आए.

आरंभ में उन्होंने जेएनयू के हिंदी विभाग में दाखिला लिया था, पर जल्दी ही वह दर्शनशास्त्र की पढ़ाई करने लगे.

नवंबर 2005 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जेएनयू गए तो संदीप सिंह के नेतृत्व में छात्रों के एक समूह ने उनकी सरकार की ‘जनविरोधी नीतियों’ के विरोध में उन्हें काले झंडे दिखाए.

अपने गंवई अंदाज़ और भाषण कला के लिए दोस्तों द्वारा याद किए जाने वाले सिंह 2007 में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे.

उनके एक निकट सहयोगी ने दिप्रिंट को बताया, ‘जेएनयू से निकलने के बाद सिंह ने खुद को वामपंथी राजनीति से अलग कर लिया, और वह अन्ना हज़ारे एवं अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाले लोकपाल आंदोलन से जुड़ गए. हालांकि, जल्दी ही उनका मोहभंग हो गया और अब उनका कांग्रेस की तरफ झुकाव हो गया.’

सिंह के सहयोगी ने आगे बताया, ‘वह पार्टी अध्यक्ष के भाषण लेखक के रूप में कांग्रेस से जुड़े थे, पर शीघ्रता से राजनीतिक गुर सीखते हुए वह पार्टी के रणनीतिकारों में शामिल हो गए.’

पार्टी से जुड़ते वक्त सिंह ने ‘काले झंडे’ वाले विरोध प्रदर्शन के लिए खेद जताया था. हालांकि, बताया जाता है कि कथित रूप से आइसा को सहयोग करना जारी रखने के लिए कांग्रेस के छात्र संगठन नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) से उनकी ठन गई.

2018 में एनएसयूआई के जेएनयू के प्रभारी महासचिव ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी से लिखित शिकायत की कि सिंह कैंपस में पार्टी की ताकत को कमज़ोर कर रहे हैं.

महासचिव ने लिखा, ‘पूर्व में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष और आइसा कार्यकर्ता रहे संदीप सिंह, जो अब राहुल गांधी की टीम के सदस्य हैं, जेएनयू कैंपस में जाकर छात्रों से कहते हैं कि कांग्रेस से जुड़ने के लिए उन्हें एनएसयूआई में शामिल होने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि इसकी बजाय वे वामपंथी संगठनों से जुड़ें और फिर कांग्रेस पार्टी में बड़े पदों पर जाएं. इससे हमारे पार्टी के सदस्य और कार्यकर्ता हतोत्साहित होते हैं और जेएनयू में हमारी टीम कमज़ोर होती है.’

वामपंथी रुझान

कांग्रेस में सिंह का उभार पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की अगुआई में पार्टी की विचारधारा में आए बदलाव के अनुरूप है. जैसा कि दिप्रिंट ने गत सितंबर में लिखा था, राहुल सलाह के लिए अधिकाधिक वामपंथी झुकाव वाले बुद्धिजीवियों का रुख करते दिखते हैं, जबकि अपने कोर ग्रुप में वह वामपंथी विचारों के लिए जाने जाते कार्यकर्ताओं को भर रहे हैं.

हाल के महीनों में ऐसे कई कार्यकर्ताओं को पार्टी में निचले स्तरों पर शामिल किया गया है- उदाहरण के लिए, पिछले साल दो सितंबर को लखनऊ में वामपंथी झुकाव वाले करीब 100 कार्यकर्ता, छात्र नेता और थियेटर से जुड़े लोग कांग्रेस पार्टी में शामिल किए गए थे.

कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि राहुल और प्रियंका के भाषणों और सोशल मीडिया पोस्टों में देखे जा रहे कॉरपोरेट विरोधी और गरीब समर्थक रुझान के पीछे सिंह का ही दिमाग है. उदाहरण के लिए, पिछले दिनों वाराणसी में सिंधोरा घाट में अपने संबोधन में प्रियंका ने कहा, ‘राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार आने के बाद किसानों के कर्ज़ माफ कर दिए गए. पर इस सरकार के राज में सिर्फ उद्योगपति और व्यवसायी ही खुश हैं.’

पार्टी के एक सूत्र के अनुसार, गंगा यात्रा के दौरान प्रियंका के बगल में भाजपा से कांग्रेस में आई पूर्व सांसद सावित्रीबाई फुले की मौजूदगी सिंह की योजना के तहत ही थी. इसी तरह प्रियंका के भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद से मिलने जाने के पीछे भी उन्हीं का दिमाग था.

कांग्रेस पार्टी के अंदरूनी समीकरण को जानने वाले एक शख्स ने बताया, ‘संदीप कांग्रेस अध्यक्ष का भाषण-लेखक होने के साथ-साथ एक प्रमुख रणनीतिकार भी हैं. प्रियंका की टीम अभी बन ही रही है, और संदीप से जनसंपर्क कार्यक्रमों और भाषण तैयार करने में मदद के लिए कहा गया है. संदीप को भाषण कला का ज्ञान है और उन्हें भाषा एवं भारतीय समाज की गहरी समझ है.’

पार्टी सूत्र ने कहा, ‘आइसा का नेता रहने के दौरान संदीप संगठन की जेएनयू इकाई के रहस्यमय प्रभारी ‘तापस दा’ के शागिर्द थे. उन्होंने मार्क्सवादी शब्दावली उनसे ही सीखी थी, जिसे उन्होंने हिंदी पट्टी की ज़मीनी राजनीति से जोड़ दिया है.’

‘उन्होंने जेएनयू में आइसा में रहते हुए लोकलुभावन भाषण और नारेबाज़ी की कला सीखी थी. अब राहुल गांधी और प्रियंका के भाषण लिखते समय वह इस कौशल को काम में ला रहे होंगे.’

ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस की विचारधारा वामपंथी झुकाव वाली रही है, और यह इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल के शुरुआती दिनों में सर्वाधिक स्पष्ट थी. और, इसी रुझान के कारण कांग्रेस ने बैंकों और कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया था, और ‘गरीबी हटाओ’ कांग्रेस का नारा बन गया था.

पर 1990 के दशक में कांग्रेस ने उदारीकरण को अपनाकर आर्थिक दक्षिणपंथ की राह पकड़ ली. ये तो भविष्य ही बताएगा कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के हालिया बयान पार्टी के अपनी जड़ों की ओर लौटने की निशानी हैं, या ये मात्र सिंह के प्रभाव का परिणाम है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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