रायपुर : छत्तीसगढ़ की 11 में से 9 सीटों पर भाजपा की शानदार जीत यह बताने के लिए काफी है कि मतदाता किसी राजनीतिक दल की स्थाई बपौती नही हैं. नवंबर 2018 में राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को तीन चौथाई बहुमत देने वाली छत्तीसगढ़ की जनता ने पांच महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को ज़मीन दिखा दी. यहां मीमांसा इस बात की होनी चाहिए कि राज्य में इस जनादेश के मायने क्या है. किसानों का कर्जा माफ बिजली बिल हाफ और पूर्ववर्ती रमन सरकार के खिलाफ सत्ताविरोधी लहर पर सवार होकर 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस 6 महीने में मतदाताओं को रूख को भांप नही पाई.
सबसे बड़ी बात तो यह कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गृह क्षेत्र से कांग्रेस की बुरी तरह हार प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है. क्योंकि दुर्ग लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले 9 में 8 विधानसभा क्षेत्रों में न केवल कांग्रेस के विधायक थे. बल्कि यह मुख्यमंत्री समेत चार मंत्री भी थे. गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ,गुरू रूद्र कुमार के अलावा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महामंत्री मोतीलाल वोरा भी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. इसके बावजूद यहा भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल 3 लाख 91 हज़ार वोटों से जीते जो प्रदेश में जीत का सबसे बड़ा अन्तर हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजनीतिक गुरू वासुदेव चन्द्राकर की पुत्री प्रतिमा चन्द्राकर को हराया.
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राज्य में कांग्रेस ने सिर्फ दो सीटे बस्तर और कोरबा जीती हैं. विधानसभा स्पीकर डॉ. चरणदास महन्त की पत्नी ज्योत्सना महंत कोरबा से और और विधायक दीपक बैज बस्तर से जीते हैं. भाजपा ने अपने मौजूदा सभी 10 सासंदों का टिकट काटकर नए चेहरों को उतारा था इसके बावजूद 9 सीटें न केवल भाजपा जीती बल्कि भारी वोटों के अन्तर से जीती. शिक्षा विद और समाजशास्त्री प्रो. देवेन्द्रनाथ शर्मा की यदि माने तो देश व राज्य का वोटर इतना परिपक्व हो गया है कि वह राजनीतिक दलों की ज़रूरत से ज़्यादा वह अपनी ज़रूरतों को समझने लगा हैं. बहुत थोड़े अन्तराल में ही मतदाताओं का मूड बदल जाना इस बात का द्योतक हैं.
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मसलन चार महीने पहले छत्तीसगढ़ के मतदाताओं ने जो वोट दिए थे. वो राज्य सरकार की वादा खिलाफी के खिलाफ स्थानीय मुद्दों को लेकर थे. किसानों से धान का बोनस का वादा भाजपा की सरकार ने पूरा नही किया था. कई ऐसे मुद्दे थे जिसको लेकर पूर्व रमन सिंह सरकार खिलाफ गुस्सा था. परिणामों से जनादेश के मायने बदल गए हैं. मतदाता अब अपने साथ देश के बारे में सोचने लगा हैं.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पूर्व चुनाव आयुक्त डॉ. सुशील कुमार त्रिवेदी का कहना है देश के साथ छत्तीसगढ़ का मतदाता संसदीय लोकतंत्र के अलग-अलग प्लेटफार्म पर अलग-अलग जनादेश देता है. इससे मतदाता की परिपक्वता झलकती हैं. विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने स्थानीय मुद्दों को लेकर बम्पर वोट देकर पुरानी सरकार को बाहर कर दिया कमोबेश उसी तरह लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर वोट दिया इस परिणाम के मायने यही है राजनीतिक दल मतदाताओ को अपरिपक्व समझने की भूल न करे.
(लेखक छत्तीसगढ़ में वरिष्ठ पत्रकार हैं)