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Saturday, 21 December, 2024
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बीजेपी अब जम्मू-कश्मीर में नेताओं की सुरक्षा हटाने का कर रही है विरोध

बीजेपी पहले राज्य में कई बड़े नेताओं की सुरक्षा हटाने के आदेश की तारीफ कर रही थी, अब जब उसके नेताओं पर हमले शुरू हुए तो विरोध शुरू कर दिया है.

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जम्मू: जम्मू कश्मीर में लोकसभा चुनाव के सभी चरणों के लिए मतदान संपन्न होते ही भारतीय जनता पार्टी ने हाल ही में हुईं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की हत्या को एक बड़ा मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है और राज्यपाल शासन पर आरोप लगाया है कि राजनीतिक लोगों की सुरक्षा करने में प्रशासन विफल रहा है.

प्रदेश बीजेपी राज्यपाल शासन से खुश नहीं है, खासकर राज्यपाल शासन के उस निर्णय से जिसके अंतर्गत कई राजनीतिक और अन्य महत्वपूर्ण लोगों की सुरक्षा वापस ले ली गई थी. भाजपा ने हाल ही में हुई पार्टी नेताओं की हत्याओं को लेकर राज्यपाल शासन द्वारा सुरक्षा हटाने के फैसले को ही जिम्मेवार ठहराया है और इसके लिए राज्यपाल शासन की कड़ी आलोचना की है. इस आलोचना को परोक्ष रूप से केंद्रीय गृह मंत्रालय के खिलाफ भी माना जा रहा है, हालांकि प्रदेश भाजपा नेता सीधे तौर पर केंद्रीय गृह मंत्रालय के विरुद्ध कुछ भी बोलने से बच रहे हैं और राज्यपाल शासन पर ही निशाना साधे हुए हैं.


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उल्लेखनीय है कि इस साल 14 फरवरी को हुए पुलवामा हमले के बाद एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिश पर लगभग 900 लोगों की सुरक्षा हटा ली गई थी या कम कर दी गई थी. केंद्रीय गृह मंत्रालय की भी इस फैसले में रज़ामंदी थी. हालांकि, बाद में कई राजनीतिक दलों और अन्य लोगों की आपत्ति के बाद 400 लोगों की सुरक्षा बहाल कर दी गई थी लेकिन करीब 500 अन्य लोगों की सुरक्षा पूरी तरह से हटा दी गई थी, उनमें भारतीय जनता पार्टी के भी कई नेता शामिल थे.

भाजपा बनाना चाहती है बड़ा मुद्दा

भले ही केंद्र में अपनी सरकार और राज्य में राष्ट्रपति शासन होने के कारण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और  पार्टी नेताओं की हत्या को लेकर पार्टी के लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा है, पर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी ने जिस ढंग से अपने नेताओं की हत्या को लेकर सख्त तेवर अपनाया है उससे साफ है कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाना चाहती है. आगामी विधानसभा चुनाव से पहले यह मुद्दा गरमा सकता है.

दरअसल, अपने नेताओं की हत्या से पैदा हुए हालात को देखते हुए प्रदेश भारतीय जनता पार्टी राज्य के आतंकवादग्रस्त इलाकों में अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटने नहीं देना चाहती है. पार्टी की नज़र आगामी विधानसभा चुनाव पर है, इसे देखते हुए पार्टी ऐसा कोई संकेत नहीं देना चाहती कि पार्टी के साथ जुड़ना किसी भी तरह से असुरक्षित है, खास तौर पर कश्मीर घाटी में पार्टी यह भी दिखाना चाहती है कि अन्य राजनीतिक दलों के मुक़ाबले उसे अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं की सुरक्षा की अधिक चिंता है. बता दें कि घाटी में आतंकवादी हमलों में अन्य दलो के नेता व कार्यकर्ता भी मारे गए हैं पर अन्य दल इस मुद्दे को ज़ोरदार ढंग से उठा सकने में विफल रहे हैं.

हाल के कुछ वर्षों के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने कश्मीर घाटी में अपनी गतिविधियां बढ़ाई है और पार्टी कश्मीर घाटी पर काफी ध्यान दे रही है. पार्टी के वरिष्ठ नेता व प्रदेश महासचिव युद्धवीर सेठी का कहना है कि घाटी में गत कुछ वर्षों से पार्टी का आधार बढ़ा है. इस समय पार्टी से लगभग दो लाख लोग जुड़े हैं.

लेकिन, यह भी एक सच्चाई रही है कि कश्मीर घाटी में भारतीय जनता पार्टी से जुड़ने वाले लोगों के लिए हर समय खतरा रहता है. आतंकवादियों के कारण घाटी में पार्टी नेताओं की निजी सुरक्षा हमेशा खतरे में रहती है. आतंकवादियों के हमलों की आशंका को देखते हुए ही पार्टी से जुड़े अधिकतर लोग परिवार के साथ श्रीनगर में ही रहते हैं और अपने पैतृक इलाकों में नहीं जा पाते हैं.


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हत्याओं को लेकर भाजपा के सख्त तेवर

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की पिछले दिनों हुई हत्याओं को लेकर पार्टी ने राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर के साथ-साथ जम्मू संभाग के किश्तवाड़ में प्रदर्शन किए हैं. पार्टी के संगठन मंत्री अशोक कौल ने श्रीनगर जाकर खुद राज्यपाल शासन के खिलाफ प्रदर्शन किया, जबकि जम्मू में बकायदा प्रेस कान्फ्रेंस कर पार्टी ने हत्याओं को लेकर राज्यपाल शासन की आलोचना की है और पार्टी नेताओं को सुरक्षा मुहैया कराने की मांग की है. प्रदेश संगठन मंत्री अशोक कौल ने पार्टी नेताओं पर हुए हमलों के विरोध में अपनी सुरक्षा भी छोड़ देने का ऐलान कर दिया है.

यहां यह उल्लेखनीय है कि कश्मीर घाटी के वरिष्ठ भारतीय जनता पार्टी नेता गुल मोहम्मद मीर ‘अटल’ की गत 4 मई को आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी. इससे पहले जम्मू संभाग के किश्तवाड़ कस्बे में गत 9 अप्रैल को स्थानीय अस्पताल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ नेता चंद्रकांत की दिन दहाड़े हत्या कर दी गई थी.

इन दोनों हत्याओं से पहले गत 1 नवम्बर 2018 को भी किश्तवाड़ में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश सचिव अनिल परिहार और उनके भाई अजीत परिहार की निर्मम हत्या कर दी गई थी. दोनों भाईयों की हत्याओं की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी कर रही है पर अभी तक हत्याकांड का कोई सुराग पता नही चला है.

राष्ट्रपति शासन के दौरान हुई इन हत्याओं से भारतीय जनता पार्टी की जबर्दस्त किरकिरी हुई है और पार्टी कार्यकर्ता ही सवाल उठा रहे हैं कि केंद्र में पार्टी की सरकार के रहते और राज्य में राज्यपाल शासन के बावजूद पार्टी के लोग सुरक्षित नही हैं.

हालांकि, राष्ट्रपति शासन के दौरान हुई हत्या की इन ताज़ा घटनाओं से पहले भी भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं को कश्मीर घाटी और किश्तवाड़ में आतंकवादी अपना निशाना बना चुके हैं. केवल घाटी में ही गत तीन वर्षों के दौरान भारतीय जनता पार्टी के 13 कार्यकर्ता व नेताओं की आतंकवादियों द्वारा हत्या की जा चुकी है.

कई राजनीतिक दलों के नेताओं को गंवानी पड़ी है जान

लगभग तीन दशकों से कश्मीर में जारी आतंकवाद के दौरान कई राजनीतिक दलों के नेताओं को जान से हाथ गंवाना पड़ा है. कई नेताओं पर जानलेवा हमले हो चुके हैं.

नेशनल कांफ्रेस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और कांग्रेस को अपने कई नेता खोने पड़े हैं. कश्मीर की सबसे पुरानी पार्टी नेशनल कान्फ्रेंस को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा है, पार्टी के अभी तक 100 से अधिक छोटे-बड़े नेता आतंकवादियों के हाथों मारे जा चुके हैं.

आतंकवादियों ने न सिर्फ मुख्यधारा के राजनीतिक दलों को बल्कि अलगाववादी नेताओं को भी समय-समय पर अपना निशाना बनाया है. प्रमुख अलगाववादी नेता मीरवायज़ फारूक को आतंकवादियों ने 1990 और प्रोफेसर अब्दुल गनी लोन को 2002 में मार डाला था.

लेकिन कश्मीर में यह विडंबना ही रही है कि अलगाववादी खेमे ने तो दूर मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने भी राजनीतिक हत्याओं को कभी बड़ा मुद्दा नहीं बनाया. मुख्यधारा के राजनीतिक दलों की तरफ से राजनीतिक हत्याओं की दबी ज़ुबान में ही निंदा की जाती रही है, जबकि अलगाववादी तो यह मानने तक को तैयार नहीं होते कि उनके नेताओं को मारने के पीछे आतंकवादियों का हाथ है.


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प्रशासन करेगा समीक्षा

अपने नेताओं की आतंकवादियों द्वारा की गई हत्याओं के बाद भारतीय जनता पार्टी द्वारा अपनाए गए सख्त रुख को देखते हुए राज्यपाल शासन ने विभिन्न राजनीतिक नेताओं की सुरक्षा की समीक्षा करने का फैसला लिया है.

यहां गौरतलब है कि राज्यपाल शासन ने कुछ महीने पहले ही कई राजनीतिक नेताओं की सुरक्षा हटा ली थी या कम कर दी थी. गत दिनों मारे गए बीजेपी के नेता गुल मोहम्मद मीर ‘अटल’ भी उन नेताओं में शामिल थे जिनकी सुरक्षा हटा ली गई थी. राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने हाल ही में हुईं हत्याओं के जांच के आदेश भी दिए हैं.

(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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