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Saturday, 2 November, 2024
होम2019 लोकसभा चुनावसिद्धू ने सिद्ध कर दिया है कि राजनीति यदि बदजुबानी की पाठशाला है तो वो उसके नंबर 1 छात्र

सिद्धू ने सिद्ध कर दिया है कि राजनीति यदि बदजुबानी की पाठशाला है तो वो उसके नंबर 1 छात्र

नवजोत सिंह सिद्धू बदजुबान तो पहले से ही थे, वे अब पूरी तरह बेलगाम भी हो चुके हैं. वे कांग्रेस के पक्ष में वोट मांगने के नाम पर समाज को तोड़ रहे हैं.

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नवजोत सिंह सिद्धू बदजुबान तो पहले से ही थे, वे अब पूरी तरह बेलगाम भी हो चुके हैं. वे कांग्रेस के पक्ष में वोट मांगने के नाम पर समाज को तोड़ रहे हैं. वे एक भयानक खेल खेल रहे हैं. उन्हें शायद खुद ही मालूम नहीं है कि वे अपनी गैर-जिम्मेदाराना बयानबाजी से समाज और देश को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं. अपने हालिया बिहार के दौरे के समय वे मुसलमानों से खुलेआम कह रहे थे कि इस क्षेत्र में उनकी’आबादी 64 फीसद है’ और यदि वे’मिल जाएं’ तो मोदी को’ हरा सकते’ हैं.

बसपा नेत्री मायावती ने भी सहारनपुर की सभा में इस तरह का आह्वान किया है . पर सिद्धू तो बार-बार मुसलमानों को गोलबंद होने के लिए कह रहे हैं. याद नहीं आता कि कभी किसी ने इस तरह से, किसी धर्म विशेष के मतदाताओं का आह्वान किया हो. वे उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में जाकर इमरान प्रतापगढ़ी के हक में भी मुसलमानों को वही सलाह देते हैं,जो बिहार के कटिहार में जाकर दे आए थे. आखिर क्या वजह है कि क्रिकेटर से सियासत करने लगे सिद्धू मुसलमानों को भड़का रहे हैं? वे चाहते क्या हैं?

हैरानी इसलिए खासतौर पर हो रही है कि सिद्धू बोले ही चले जा रहे हैं. उन्हें कोई रोकने वाला ही नहीं है. लगता तो यही है, उन्हें कांग्रेस आला कमान से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उपर्युक्त मिजाज की भाषणबाजी देने की अनुमति प्राप्त है? बिहार के कटिहार के आम अवाम ने नवजोत सिंह सिद्धू के विवादित बयान की निंदा की है. उसका मानना है कि सिद्धू को मज़हब के नाम पर राजनीति करने से बचना चाहिए. निश्चित रूप से धर्म के नाम पर राजनीति करना या वोट मांगना शर्मनाक है. यह संविधान निर्माताओं के ख्वाबों को चकनाचूर करने जैसा है. मैं बिहार की राजनीति को पिछले 50 सालों से देख रहा हूं, उसकी रिपोर्टिंग कर रहा हूं. मैं कह सकता हूं कि बिहारी वोटर उन नेताओं को खारिज करते हैं, जो समाज को तोड़ने वाली सियासत में यकीन रखते हैं. उनके लिए देश ही प्रथम है.


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इस बीच, मुसलमानों को भी विचार करना होगा कि उनके अलावा और किसी समाज को इस तरह का आहवान कोई क्यों नहीं कर पाता? स्पष्ट है कि बाकी किसी भी तबके ने अपने को इतना दीन-हीन नहीं बनाया हुआ है. कहना न होगा कि हरेक चुनाव में मुस्लिम समाज अपनी घोर अशिक्षा के कारण खुद अपना मजाक बनाते हैं. इन्हें अपनी आधुनिक शिक्षा पर फोकस तो करना ही होगा. नहीं तो सिद्धू सरीखे सियासी रहनुमा उनका शोषण करते ही रहेंगे. जिस दिन उनके पास शिक्षा की ताकत होगी उस दिन मुस्लिम युवाओं को भी जीवन के किसी भी क्षेत्र से आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकेगा. मुसलमानों में पिछड़ेपन के मूल में अशिक्षा ही है.

सिर्फ मदरसे से काम नहीं चलेगा, एक बार शैयद शहाबुद्दीन और मैं एक ही कूपे में दिल्ली से पटना सफ़र कर रहे थे, मैंने उनसे पूछा ‘शहाब साहब, आपके परिवार में और आपके दामाद के परिवार में जहां आप जा रहे हैं, यदि सारे बच्चे कॉलेज में पढ़कर बिना मदरसा गए हुए ‘सच्चा मुसलमान’ बने रह सकते हैं तो गरीबों को मदरसा जाना शरियत के मुताबिक जरुरी क्यों बताते हैं, आपलोग?’ शहाबुद्दीन साहब एक क्षण चुप हो गए. फिर बोले, ‘सिन्हा साहब , यदि गरीब मुसलमान भी पढ़-लिख गए तो हमारी कौमी सियासत कैसे चलेगी?’

बहरहाल सिद्धू ने यह सिद्ध कर दिया है कि राजनीति यदि बदजुबानी और बेअदबी की पाठशाला है तो वे उसके नंबर एक उद्दंड छात्र हैं. राजनीति यदि बदचलन है तो सिद्धू उसके सबसे बड़े सौदागर हैं. राजनीति यदि विदूषकों की रंगशाला है तो सिद्धू से बड़ा रंगकर्मी इस रंगशाला में भी कोई नहीं हो सकता. आप उनकी लगभग एक वर्ष की बयानबाजी को देखिए-सुनिए. वो इमरान खान के प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए इस्लामबाद गए थे. यहां तक सब ठीक है. वहां पर वे भारत के खिलाफ जहर उगलने का कोई भी मौका नहीं छोड़ने वाले सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा के साथ गले मिल रहे थे.

उस वक्त नवजोत सिंह सिद्धू के स्वदेश आते ही उनके मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी उनकी क्लास ली थी. अमरिंदर सिंह ने साफ-साफ शब्दों में कहा था कि ‘नवजोत सिद्धू ने पाकिस्तान के आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा से गले मिलकर गलत किया है और वे इसके खिलाफ हैं’. यानी भाजपा ही नहीं कांग्रेस के भीतर भी सिद्धू का विरोध हुआ था. इमरान खान के शपथ ग्रहण के दौरान सिद्धू का बाजवा से गले मिलना किसी भी राजनेता को रास नहीं आया था.

आजकल कांग्रेस में रहते हुए सोनिया गांधी- राहुल गांधी की स्तुति करने वाले सिद्धू ने भाजपा में रहते हुये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चंद सालों के शासनकाल को कांग्रेस के लंबे शासनकाल से श्रेष्ठ बताया था और कहा था कि ‘मोदी जी देश को सोने की चिड़िया बनाना चाहते हैं, जबकि कांग्रेस देश को सोनिया की चिड़िया बनाना चाहती है. मनमोहन सिंह के लिए सिद्धू ने कहा था, ‘आगे-आगे मनमोहन सिंह पीछे-पीछे चोरों की बारात है.’ कांग्रेस में शिफ्ट करने के बाद सिद्धू की जुबान और तेवर तत्काल बदल गये. नवजोत सिंह सिद्धू को समझना चाहिए कि वो पंजाब के वरिष्ठ मंत्री भी हैं. उन्हें देशहित को देखते हुए बयानबाजी करनी चाहिए. सिद्धू ने जब राजनीति में कदम रखा था तब उनकी वाकपटुता से आम जन प्रभावित होता था. पर उनकी जुबान फिसलती रही और उनकी खुद की प्रतिष्ठा तार-तार होती गई.

अब उन्हें कोई सीरियसली नहीं लेता. हां, वे मदारी के अंदाज में कुछ समय तक के लिए जोश का माहौल अवश्य बना देते हैं. सिद्धू से नफरत और बेपनाह मोहब्बत करने वाले भी कम नहीं हैं. यदि सिद्धू किसी कॉलेज के प्रोफेसर होते तो अपनी नौकरी खो चुके होते, सरकारी बाबू होते तो निलंबित कर दिए जाते, सेना में होते तो उनका कोर्ट मार्शल हो चुका होता. लेकिन, वे राजनीति में है, इसलिए उन्हें सात खून भी माफ हैं. सिद्धू मेरे साथ कुछ दिन राज्य सभा में रहे थे, मेरा आदर करते थे, भाई साहब कहते थे, मैंने उनसे पूछा कि आखिर वह ऐसी वैसी हरकते क्यों करते रहते हैं?’ उन्होंने कहा, ‘भाईसाहब मोदी जी अच्छे हैं, पार्टी अच्छी है, आप लोग अच्छे है और मैं खुंदक निकाल रहा हू.’ उस समय वे कुछ दक्षिण भारतीय क्रिकेटरों से शायद खुंदक निकाल रहे होंगे. ऐसा तो खेल में भी नहीं होना चाहिए . वे खुले आम राजनीति में यह कर रहे हैं. दुर्भाग्य ही है देश का और देशभक्त जनता का कि यह सब हो रहा है.


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अब तो नवजोत सिंह सिद्धू को भारत की विविधता का आनादर करने में भी लज्जा नहीं आती तनिक . उन्होंने कुछ साल पहले कहा था कि उन्हें भारत के दक्षिणी सूबे के किसी भाग में जाने की अपेक्षा पाकिस्तान के पंजाब में जाकर अधिक अपनत्व का भाव महसूस होता है. उन्होंने ये राय कसौली में आयोजित हुए खुशवंत सिंह लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान कही थी. इतना ओछा बयान देते वक्त वे भूल गए कि भारत की शक्ति उसकी धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषाई और तमाम अन्य स्तरों में दिखाई देने वाली विविधताओं में ही निहित हैं. इस तथ्य के कारण भारत का सारा विश्व सम्मान करता है क्योंकि, भारतीय संस्कृति ही ऐसी संस्कृति है, जो विविधता में एकता का अद्भुत नजारा पेश करती है. समस्त विविध संस्कृतियां बात एक ही करती हैं. यही तो है कमाल हमारी सनातन संस्कृति का.

बहरहाल, एक बात तो समझ से परे है कि चुनाव आते ही शालीनता और संयम जैसे शब्द अपने अर्थ क्यों खोने लगते हैं? मां-बहन-बेटी कहकर वोट मांगने वाले मां-बहन की गालियों से लेकर अन्तर्वस्त्रों तक पर आक्षेप करने लगते हैं. इन बिन्दुओं पर हो सके तो सिद्धू भी विचार कर लें. नहीं तो आम जनता तो विचार कर रही है.

(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं और यह लेख उनके निजी विचार हैं)

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