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Friday, 22 November, 2024
होम2019 लोकसभा चुनावमेवात: भारत का सबसे पिछड़ा इलाका, जहां नेता वोट मांगने तक नहीं जा रहे

मेवात: भारत का सबसे पिछड़ा इलाका, जहां नेता वोट मांगने तक नहीं जा रहे

हरियाणा के सबसे पिछड़े मेवात इलाके में लोकसभा चुनाव को लेकर उदासीनता फैली हुई है. गुरुग्राम लोकसभा सीट के तहत इस इलाके में भाजपा से राव इंद्रजीत सिंह और कांग्रेस से कैप्टन अजय सिंह यादव टक्कर में हैं.

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मेवात: नीति आयोग ने पिछले साल विकास के लिए 101 ज़िले चुने थे जो देश के सबसे पिछड़े क्षेत्र थे जहां मूल भूत सुविधाओं का भारी अभाव था. हरियाणा का मेवात (अब नूह) इन सारे चुने गए ज़िलों में सबसे पिछड़ा था. आयोग के मुताबिक नक्सल प्रभावित एरिया बस्तर और गढ़चिरौली से भी ज़्यादा पिछड़ा है नूह. यानी देश का सबसे पिछड़ा एरिया.

मेवात इलाके में लोकसभा चुनाव को लेकर उदासीनता फैली हुई है. यह क्षेत्र गुरुग्राम लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है. यहां भाजपा से राव इंद्रजीत सिंह और कांग्रेस से कैप्टन अजय सिंह यादव एक दूसरे के आमने-सामने हैं. विकास की बात करने वाली दोनों ही पार्टियों के नेताओं ने अब तक यहां आने की जरूरत भी नहीं समझी है. कम से कम मेवात के फिरोज़पुर झिरका के ग्रामीण इलाके के लोगों की बातों से तो ऐसा ही लग रहा है. देश की राजधानी दिल्ली के सबसे नज़दीक इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों की समस्याएं इतनी बड़ी है कि चुनावी प्रचार उनके सामने छोटा नज़र आने लगता है. वोटर उदासीन है और नेताओं का जमावड़ा भी यहां से कोसों दूर है जो नज़र भी नहीं आता. दिप्रिंट ने यहां के प्रमुख मुद्दें और चुनौतियां को जानने की कोशिश की है .

मॉब लिंचिंग 

पिछले साल कोलगांव के रकबर खान की राजस्थान के अलवर ज़िले में एक भीड़ ने गो तस्करी के शक में पीट-पीट कर हत्या कर दी थी. रकबर खान शाम के अंधेरे में दो बयाने वाली गायों को ला रहे थे. उनके साथ उनके गांव के ही असलम भी थे. इस हमले में असलम तो बच गए. लेकिन रकबर खान की जान चली गई. गांव वालों का कहना है कि हरियाणा की भाजपा सरकार ने मुआवजे के तौर पर रकबर के परिवार को पांच लाख रुपये दिये. पर सारे दोषी पकड़े नहीं गये. उनका कहना है कि गो-रक्षकों का आतंक मूलतः पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा के क्षेत्र में ही था. ज़्यादातर लोग इस बात को मानते है कि हिंदू-मुस्लिम मुद्दा ही नहीं हैं यहां, क्योंकि मेव संप्रदाय शुरू से ही मिक्स कल्चर का रहा है. पर गोरक्षा के नाम पर जो हिंसा हुई उसने यहां चिंता बढ़ाई है और इसे चुनावी मुद्दा भी बनाया. यहां पर लगभग 11 लाख लोग हैं जिनमें से लगभग 70 फीसदी मुस्लिम आबादी है.

शिक्षा का स्तर बहुत बुरा, लड़कियां आठवीं से ज़्यादा नहीं पढ़ पा रही हैं

इस इलाके के आस-पास के गांवों में ज़्यादातर लोग स्कूलों की ‘माड़ी हालत’ (खराब हालत) पर बार-बार बोलते हैं. स्कूलों में टीचर नहीं हैं. जहां टीचर हैं वहां वो बच्चों की सुध नहीं लेते. बच्चे अपने मन से स्कूल से घूमकर आ जाते हैं. यहां लड़कियों की साक्षरता दर न के बराबर है. 2011 जनगणना के मुताबिक यहां पर महिलाओं की साक्षरता दर 36 फीसदी थी, जबकि हरियाणा में महिला साक्षरता 67 फीसदी थी. हरियाणा में सेक्स रेशियो 871/1000 है जबकि मेवात में 932/1000 हैं.

इस बारे में फिरोज़पुर झिरका के एसडीएम रीगन कुमार कई कारणों को इसका दोषी पाते हैं. उनके मुताबिक धार्मिक अंधविश्वास इसका एक कारण है. हालांकि ये बात भी पूर्णतया सत्य नहीं है. ग्रामीण क्षेत्र मुस्लिम बाहुल्य ज़रूर है, लेकिन वहां हिंदू भी एक अच्छी खासी संख्या में रहते हैं. हिंदुओं की लड़कियां भी उसी क्लास में स्कूल जाना छोड़ देती हैं जिस क्लास में मुस्लिम समुदाय की लड़कियां बंद कर देती हैं.

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मेवात में स्कूल का हाल बेहाल है/फोटो- ज्योति यादव

इस इलाके में पथराली गांव का सरकारी स्कूल ऐसा मिला जिसके बारे में गांव वाले संतुष्ट दिखे. स्कूल प्राइमरी तक है लेकिन तीन कमरे मिडिल तक किये हुए हैं. मिडिल के लिए सिर्फ एक ही टीचर है यानि 108 बच्चों को पढ़ाने के लिए सिर्फ एक टीचर. ऐसे में प्राइमरी स्कूल के तीन टीचर्स को भी मिडिल वालों को पढ़ाने की ड्यूटी लगाई गई है. स्कूल के रिकॉर्ड के बारे में टीचर्स का कहना है कि आसपास के प्राइवेट स्कूलों को कॉम्पिटिशन देता इकलौता सरकारी स्कूल है ये. बाकी स्कूलों की खराब हालत पर यहां के प्राइमरी हेड मोहम्मद मुस्ताक़ का कहना है, ‘ये उस स्कूल के हेड पर निर्भर करता है कि बच्चों को कैसे पढ़ाया जाए. ज्यादातर हेड काम ही नहीं करना चाहते.’ एसडीएम वाली बात से इत्तेफाक रखते हुए उन्होंने कहा, ‘यहां के लोगों की एक सोच है कि एक बार लड़की स्याणी हो गई तो फिर क्या पढ़ाना. उसके बाद शादी कर देते हैं.’

इस स्कूल में प्राइमरी में 205 बच्चे हैं और सात टीचर. लेकिन सात में से तीन अब मिडिल को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी ले चुके हैं. महिला टीचर्स ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि लड़कियां पढ़ना तो चाहती हैं लेकिन मां-बाप स्कूल छुड़वा देते हैं. इस स्कूल में मिडिल में 48 लड़के और 59 लड़कियां हैं. इतनी विषमताओं के बावजूद लड़कियां ही ज़्यादा पढ़ने की कोशिश कर रही हैं. एक और समस्या है कम उम्र में लड़कियों की शादी हो जाए. कुछ की तो अभी भी दस साल की उम्र में शादी कर गौना बाद में किया जा रहा है.

लेकिन दोहा गांव के निवासियों का इसपर कुछ अलग मत है. उनका मानना है कि वो चाहते हैं कि उनकी बेटियां पढ़ें लेकिन एक तो इलाके में एक ही कॉलेज है. वहां तक पहुंचने के लिए वाहनों का न ढंग का प्रबंधन है ना किसी और चीज़ की सुविधा. टैंपो में ही लटकर जैसे-तैसे जाना होता है. दूसरा यहां हर गांव में दसवीं-बाहरवीं तक स्कूल ही नहीं है. उसके लिए भी सात-आठ किलोमीटर दूर जाना होता है. अशिक्षा ने इस इलाके को और पिछड़ा बना दिया है. कुछ लड़कों की स्कूल छोड़ने की मजबूरी होती है तो कुछ लड़के पैशन में ड्राइविंग करने के लिए पढ़ाई छोड़ देते हैं. बाकी हरियाणा की तरह यहां ना फौज में जाने का क्रेज है और ना ही पुलिस में भर्ती होने का.

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टीचर बनना चाहती हैं इस गांव की बच्चियां/ ज्योति यादव

अंगान गांव की मनीषा, पूनम, संजना और सपना से स्कूल आती हुई मिलीं. चारों ने ही बताया कि वे बड़ी होकर टीचर बनना चाहती हैं. हिंदी पढ़ाना चाहती हैं. इसी गांव के आदिल और तौफी ने स्कूल छोड़ दिया है. दोनों ही लड़कों को ड्राइवर बनना है. वहीं, अंगान गांव के इमरत का कहना है कि अच्छी पढ़ाई की सुविधा नहीं होने से बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाती. कुछ लोग ड्राइविंग को लेकर गर्व भी महसूस करते हैं कि इस इलाके के ड्राइवर पूरे देशभर में प्रसिद्ध हैं. इस इलाके ने देश को ड्राइवर दिए हैं.

पानी ढोते ढोते लड़कियां हो रही हैं कमज़ोर और छोटी

इस इलाके की लड़कियों का स्कूल छोड़ने का एक मुख्य कारण यह भी है कि जब वे छह-सात साल की होती हैं तबसे ही इन्हें सिर पर मटका ढोना पड़ता है. कुछ गांवों में पीने के पानी की व्यवस्था तो है, लेकिन कुछ में बिलकुल भी नहीं है. जिन गांवों में नहीं है वहां कि लड़कियां दिन में करीब 10-11 चक्कर कुएं के काटती हैं.

दोहा गांव की महिलाओं ने बताया, ‘जबसे सूरज देखना शुरू किया था तबसे ढो रही हैं. याद भी नही. हर उम्र की महिला आपको कुएं से पानी खींचती नज़र आ जाएगी.’ सदा-मदा(हमेशा) से पानी भर रही इन महिलाओं ने अपनी समस्या तक को खुद कैमरे पर बोलने से मना कर दिया. उनका मानना है कि अगर उनकी आवाज़ घर के मर्दों ने सुन ली तो डांट पड़ेगी. जच्चा-बच्चा से लेकर सिर पर पानी ढोने की सारी समस्याएं सिर्फ आदमी ही बताते हुए नज़र आए. दोहा गांव की कुएं पर तो साल में चार-पांच महिलाएं कुएं में गिर भी जाती हैं लेकिन उन्हें आदत हो गई है और वो तैर कर आ जाती हैं.

दोहा गांव में अभी हो रही है जच्चा-बच्चा की मौत

आज के समय में किसी जच्चा-बच्चा की अस्पताल ना पहुंचने से मौत हो जाना अविश्वसनीय लगता है, लेकिन मेवात के अति पिछड़े इलाकों में ऐसा है. दोहा गांव में करीब तीन-चार हज़ार घर हैं. ये एक बड़ा गांव है. यहां पिछले कुछ सालों में करीब दस जच्चा-बच्चा के मरने के केस सामने आ चुके हैं. ज़्यादातर डिलीवरी गांव की ही दाइयों द्वारा की जा रही हैं. किसी इमरजेंसी में झिरका जाना पड़ता है. और अगर मामला ज्यादा गंभीर हो तो अलवर. झिरका यहां से बीस किलोमीटर दूर है और अलवर 82 किलोमीटर.

गांव में पशुओं का अस्पताल भी है और आदमियों का भी. दोनों के लिए ही बिल्डिंग तो बढ़िया बनाई गई है लेकिन डॉक्टर नहीं हैं. इस इलाके के लोग झोलाछाप डॉक्टरों की दवाइयों से इलाज करवाते हैं. पत्रकार अख्तर अलवी कहते हैं कि झिरका में पिछले दस साल से महिला डॉक्टर नहीं है. जनानी, मर्द डॉक्टर को अपनी बीमारी बताने में शर्माती हैं. ऐसे में वो खुद से इलाज कर मुसीबत में भी फंस जाती हैं.

सरकारी योजनाएं यहां दम तोड़ती नज़र आती हैं

मेवात इलाके के चार मुख्य कस्बे हैं- नूंह, फिरोज़पुर झिरका, तावड़ू, उन्हाणा. झिरका की सीमा राजस्थान से मिलती है. इसी इलाके के लोग अलवर के भैंसों और गायों की खरीद-फरोख्त करते हैं. दूध के दाम भी यहां कम हैं. गाय का दूध बीस रूपए लीटर और भैंस का पच्चीस रूपए लीटर.

दोहा गांव में ही स्थानीय नेता अमन अहमद और यहूदा खान मिल गए. इस इलाके के पिछड़ेपन के सवाल पर उन्होंने कहा कि ‘कांग्रेस सरकार ने तो बढ़िया योजनाएं चलाई थीं लेकिन भाजपा ने कुछ नहीं किया. हम आए तो फिर से विकास करेंगे.’

गांवों का दौरा करने पर एक बात ज़ाहिर हुई कि मुस्लिम समुदाय का वोट कांग्रेस की तरफ है और हिंदू समुदाय का भाजपा की तरफ. भाजपा से खुश लोग योजनाओं के बारे में नहीं बता सके लेकिन ये ज़रूर कहा कि अच्छा काम किया है. गैस सिलेंडर आने लगा है. हालांकि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गांवों के लोगों ने आरोप लगाए कि एक-दो किश्तों के भुगतान के बाद उन्हें कोई पैसा नहीं मिला. इसलिए उनके मकान भी आधे-अधूरे पड़े हैं. कुछ लोगों ने शौचालय अपने पैसों से बनवाए लेकिन उन्हें सरकार की तरफ से कोई पैसा नहीं मिला.

वही, एसडीएम का कहना है कि इस इलाके में केंद्र और राज्य की तरफ से करीब 345 योजनाएं लागू की गई हैं. जिनका असर आगे देखने को मिलेगा.

ना ही नहर आई ना रेल

हरियाणा में सिंचाई के लिए बाकी ज़िलों में नहरों की व्यवस्था है, पर इस क्षेत्र में नहरें न के बराबर हैं. यह क्षेत्र रेल से भी कनेक्टेड नहीं है. मेवात के लोग ट्रेन पकड़ने के लिए अलवर, दिल्ली, रेवाड़ी जाते हैं.

एनएच248 ए से यहां पर रोड कनेक्टिविटी बढ़ने की संभावना थी. 2014 में इसे राष्ट्रीय मार्ग घोषित किया गया था लेकिन चार लेन का अभी नहीं किया गया है. लोगों का कहना है कि यहां ट्रैफिक ज़्यादा है इसलिए हर तीसरे दिन एक्सीडेंट में लोगों की मौत होती है. सालभर में तकरीबन 700 लोग मारे गए थे. इस बाबत लोग धरने पर भी बैठे हैं.

पानी भरती महिलाएं | ज्योति यादव

लोगों का कहना है कि नेता यहां पर विधानसभा चुनावों में सक्रिय हो जाते हैं. लोकसभा चुनाव के लिए ये क्षेत्र कोई मायने नहीं रखता. गुरुग्राम से वर्तमान सांसद राव इंदरजीत सिंह के बारे में लोगों ने कहा कि जब वो कांग्रेस में थे, तब भी नहीं आते थे. भाजपा में हैं, तब भी नहीं आते हैं. जिनसे बात हुई, उन लोगों ने राव इंदरजीत को इस बार वोट देने से साफ मना किया है. आश्चर्य की बात है कि इस क्षेत्र में पार्टियां और नेता वोट के लिए सक्रिय भी नहीं दिखे. ऐसा लग ही नहीं रहा है कि चुनाव होने वाले हैं.

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