श्रीनगरः अपने चुनाव अभियान की तैयारियों में जुटे 55 वर्ष के सोफी यूसुफ़ अपने कई कार्यकर्ताओं के साथ ज़िला अनंतनाग की खनबल हाउसिंग कॉलोनी में सुरक्षा की संगीनियों में अपने पार्टी दफ्तर में गर्मजोशी से हर एक कार्यकर्ता के विचारों को सुन रहे थे. 1996 से सोफी इसी तरह, जैसे वो आज नज़र आ रहे हैं, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के चुनाव अभियान में काफी सक्रिय नज़र आते रहे हैं. बीते 22 वर्षों से वह बीजेपी के झंडे को कश्मीर में लहरा रहे हैं. वह छठी बार चुनाव लड़ रहे हैं. हालांकि उन्हें आज तक चुनाव में कामयाबी हासिल नहीं हुई.
1986 से लेकर 1996 तक सोफी जम्मू-कश्मीर पुलिस में कांस्टेबल की नौकरी करते थे. 1996 में उन्होंने पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गये. ये उस समय की बात है जब कश्मीर में बीजेपी में शामिल होने के लिए कोई तैयार नहीं होता था.
सोफी कहते हैं ‘बीजेपी में शामिल होने से पहले मैंने कश्मीर कि राजनीति को समझने की पूरी कोशिश की. मैंने पाया कि यहां नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और कांग्रेस ने बहुत बेड़ा गर्क करके रखा था. मुझे लगा कि मैं ऐसी राजनीति नहीं करूंगा, जिसे लोगों की परेशानियों में इज़ाफ़ा हो. जब 1987 में यहां चुनाव हुए तो कांग्रेस और एनसी ने उन चुनावों में धांधली की. लोग चाहते थे कि यहां नए चेहरे सामने आये और खानदानी राज से हमें मुक्ति मिले. उस समय उन चुनावों में यहां श्रीनगर के अमीर कदल से मोहमद यूसुफ़ शाह भी चुनाव लड़ रहे थे, जो जीत रहे थे. लेकिन उनको हरवाया गया और वही यूसुफ़ शाह बाद में सईद सलाउद्दीन (हिज़बुल मुजाहिदीन प्रमुख) बन गये. जब ये सब मैंने देखा और पाया की बीजेपी में खानदानी राज नहीं है. इस तरह से बीजेपी के साथ मेरे सफर की शुरुआत हो गई. मैं कश्मीर में बीजेपी के नब्बे के दशक के दस्ते का एक सिपाही हूं.’
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सोफी इस बार अनंतनाग से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. 1996 से अब तक उनका ये छठा चुनाव है. 1999 में उन्होंने पहला चुनाव विधानसभा के लिए ज़िला अनंतनाग की बिजबिहाड़ा सीट से लड़ा था और तब उन्होंने 700 के क़रीब वोट हासिल किए थे. सोफी इस समय जम्मू- कश्मीर बीजेपी के उपाध्यक्ष हैं. 2015 में सोफी बीजेपी के पहले कश्मीरी एमएलसी बन गए थे.
बीते वर्षों में सोफी पर पांच बार आतंकी हमले हो चुके हैं, जिन हमलों में उनके कई कार्यकर्ता मारे गए और कुछ घायल हुए. वे खुद भी घायल हो गए थे. उन पर पहला हमला 1996 में हुआ था, जिसमें, सोफी के मुताबिक़, वो गंभीर रूप से घायल हो गये थे और छह महीने तक अस्पताल में रहे. दूसरा हमला अनंतनाग में 1999 में उनके काफिले पर हुआ जिसमें बीजेपी का एक उमीदवार हैदर नूरानी मारा गया था और अन्य तीन कार्यकर्ता भी. उस हमले में वह घायल हो गये थे.
2002 में ज़िला पुलवामा में सोफी के काफिले पर हैंड ग्रेनेड से हमला किया गया था और उसमें उनके तीन कार्यकर्ता घायल हो गये थे. 2004 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर उनकी चुनाव रैली पर हमला किया गया था और वहां भी उनके चार कार्यकर्ता घायल हो गये थे. 2006 में उनकी सरकारी रिहाइश पर आतंकी हमला हुआ था.
ये पूछने पर कि आतंकियों के इतने हमलों के बाद भी आप बीजेपी से अलग क्यों नहीं हुए, सोफी कहते हैं ‘आतंकियों को बनाने वाली यही गन्दी राजनीति है. मैं उनको ये कहना चाहता था कि जिन लोगों ने आपको बंदूक दी है, वो आतंकी बेगुनाह थे, मासूम थे. उन्हें नहीं मालूम था कि उन्होंने बंदूक क्यों उठायी है? आज सियासतदानों ने यहां के नौजवनों के हाथों में पत्थर थमा दिए हैं. मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं हैं. जो हुआ सो हुआ. जो आतंकी यहां मरे, मैं यहां उनके परिवार वालों के लिए खड़ा हूं. मुझे मालूम है कि आतंकी को मारने वाला और आतंकी बनाने वाले गन्दी सियासत करने वालों का दोष है, उनका (आतंकियों) का उसमें कोई दोष नहीं है. दरअसल मैं आतंकियों तक ये संदेश देना चाहता था कि मैं उनका दुश्मन नहीं हूं, बल्कि मैं उनका दोस्त हूं.’
सोफी कहते हैं कि एक समय लोगों ने उनके बहिष्कार करने का ऐलान मस्जिदों में किया था और लोगों से अपील की थी कि जो सोफी यूसुफ़ को वोट डालेगा, उसका हम जनाज़ा नहीं पढ़ेंगे.’ जब 2014 में मैंने पहलगाम से विधानसभा का चुनाव लड़ा तो वोटिंग से पहले कुछ लोगों ने मस्जिदों में ऐलान कर लोगों से अपील की थी कि जो सोफी यूसुफ़ को वोट देंगे, उनका जनाज़ा नहीं पढ़ेंगे. जो सोफी यूसफ़ को वोट देगा, वो हिन्दू धर्म अपनाएगा, सोफी यूसुफ़ ने हिन्दू धर्म अपना लिया है. मैंने फिर भी दो हज़ार वोट हासिल किए थे. उसके बाद पार्टी ने मुझे एमएलसी बनाया. नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के लोगों में बात फैलायी गई थी कि बीजेपी मुसलमानों की दुश्मन है.’
इस सवाल के जवाब में कि अगर आपने बीजेपी की जगह दूसरे दल से चुनाव लड़ा होता, तो क्या आप जीत गए होते? तो सोफी इस बात को मानते हैं कि जिस तरह उन्होंने बीजेपी के लिए पांच चुनाव लड़े, अगर उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस या पीडीपी के टिकट पर पांच चुनाव लड़े होते तो उन्होंने कब का चुनाव जीत लिया होता.
वे कहते हैं ‘मैने कब का चुनाव जीता होता. लेकिन मुझे जीतने की चिंता नहीं है. मुझे लोगों को जागृत करने की फ़िक्र है. मैं बताना चाहता था और बताना चाहता हूं कि बीजेपी सबको साथ लेकर चलने वाली जमात है.’
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सोफी अनंतनाग के श्रीगुफवारा नाम के इलाके के रहने वाले हैं. अनंतनाग लोकसभा चुनाव तीन चरणों में हो रहे हैं. अभी तक एक चरण का चुनाव हो चुका है. दूसरे चरण के लिए 29 अप्रैल को मतदान है और तीसरा चरण 6 मई को होगा.
यहां अनंतनाग लोकसभा से पीडीपी, कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस में कड़ा मुक़ाबला है. अनंतनाग से पूर्व मख्यमंत्री और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती, जम्मू -कश्मीर कांग्रेस के अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर और नेशनल कॉन्फ्रेंस के रिटायर्ड जस्टिस मसूद हसनेन मैदान में हैं. यहां कुल 18 उम्मीदवार मैदान में हैं.
अनंतनाग लोकसभा सीट 2017 से खाली पड़ी है. 2016 में मुख्यमंत्री बनने के बाद मुफ़्ती को सीट से इस्तीफा देना पड़ा था. दक्षिणी कश्मीर में ख़राब हालात के चलते इस सीट पर चुनाव नहीं कराया जा सका था.
जब मैंने सोफी यूसुफ़ से पूछा कि अगर आप इस बार भी चुनाव हार गए तो क्या आप फिर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे, तो वे बोले ‘आप अपने ये अल्फ़ाज़ वापस लीजिए. इस बार सोफी यूसुफ़ हारने वाले नहीं हैं. इस बार अनंतनाग लोकसभा सीट बीजेपी को जीत मिलकर ही रहेगी.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)