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Thursday, 21 November, 2024
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नेशनल कांफ्रेंस ने ले लिया 2014 चुनाव की हार का बदला

2014 में पीडीपी ने घाटी की तीनों सीटों पर नेशनल कांफ्रेस को हराया था. यहां तक कि पार्टी प्रधान डॉ फ़ारूक अब्दुल्ला भी पीडीपी आंधी में हार गए थे,

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जम्मू कश्मीर में 2014 के लोकसभा चुनाव में जो हाल नेशनल कांफ्रेंस का हुआ था वही कहानी इस बार पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ दोहरायी गई है. पीडीपी को लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है. कश्मीर घाटी की तीनों सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है. खुद पार्टी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती भी अनंतनाग लोकसभा सीट से बुरी तरह चुनाव हार गई हैं और तीसरे स्थान पर आईं हैं.

पहले से ही संभावना व्यक्त की जा रही थी कि पीडीपी अपना पिछला प्रदर्शन दोहरा नहीं पाएगी और इस बार लोक सभा चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ेगा, और हुआ भी ठीक वैसा ही. उल्लेखनीय है कि 2014 में पीडीपी ने घाटी की तीनों सीटों पर नेशनल कांफ्रेस को हराया था. यहां तक कि पार्टी प्रधान डॉ फ़ारूक अब्दुल्ला भी पीडीपी आंधी में हार गए थे, मगर इस बार सब उलटा हो गया और नेशनल कांफ्रेस के आगे पीडीपी तीनों सीटें हार गई.

राज्य की छह में से तीन सीटों पर पीडीपी चुनाव लड़ रही थी.जम्मू संभाग की दो लोकसभा सीटों पर पीडीपी ने कोई उम्मीदवार खड़ा नही किया था जबकि लद्दाख लोकसभा सीट से पार्टी ने निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन दिया हुआ था.


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पार्टी के संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद की मृत्यु के बाद पहला चुनाव लड़ रही पार्टी के लिए यह हार एक बड़ा झटका है, खुद पार्टी अध्यक्ष महबूबा सईद का चुनाव हारना साफ बताता है कि पार्टी किस स्थिति से गुज़र रही है. महबूबा की हार इतनी बड़ी है कि शायद ही पार्टी इस हार से जल्द ही उभर सके. पहले से ही बुरी तरह से बिखराव की ओर जा रही अपनी पार्टी को संभाले रखना महबूबा के लिए आने वाले दिनों में बेहद मुश्किल हो होगा.

उल्लेखनीय है कि पार्टी संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद की मृत्यु के बाद से पार्टी गहरे संकट से गुज़र रही है.पार्टी के कईं नेता पार्टी छोड़ चुके हैं और कईं अन्य पार्टी छोड़ने की तैयारी में हैं. इन परिस्थितियों में लोकसभा चुनाव के ताज़ा परिणाम पार्टी नेतृत्व के लिए नईं परेशानियां खड़ी कर सकता है और महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व पर सवाल उठ सकते हैं.

पीडीपी की हार के पीछे पार्टी द्वारा भारतीय जनता पार्टी के साथ हाथ मिलाने को मुख्य वजह माना जा रहा है. देश के कईं हिस्सों में भले ही विभिन्न क्षेत्रीय दलो का भारतीय जनता पार्टी के साथ हाथ मिलाना फायदेमंद रहा हो पर जम्मू कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी(पीडीपी) को भारतीय जनता पार्टी के साथ हाथ मिलाने का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा है. पीडीपी और भारतीय जनता पार्टी के रास्ते भले ही आज अलग-अलग हों पर कश्मीर घाटी की तीनों लोकसभा सीटों के परिणाम साफ बता रहे हैं कि आम लोग पीडीपी द्वारा भाजपा के साथ दोस्ती करने को अभी भी भुला नही पाएं हैं.

एक कैडर आधारित मज़बूत पार्टी होने के कारण नेशनल कांफ्रेस 2014 की हार के सदमें से जल्दी ही बाहर निकल आई है,मगर क्या पीडीपी अपनी ताज़ा हार से उभर पाएगी यह एक बड़ा सवाल बन कर ऊभरा है? पहले से ही गहरे संकट से जूझ रही पीडीपी का अस्तित्व ही ख़तरे में दिखाई दे रहा है.

नेशनल कांफ्रेस की शानदार वापसी

नेशनल कांफ्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव में शानदार वापसी की है.पार्टी ने 2014 की अपनी हार का बदला लेते हुए घाटी की सभी तीन सीटों पर कब्जा जमाया है. श्रीनगर लोकसभा सीट से पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ फ़ारूक अब्दुल्ला की जीत ने पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया है.

उल्लेखनीय है कि पीडीपी की तरह नेशनल कांफ्रेस ने भी जम्मू संभाग की दोनों लोकसभा सीटों पर अपना उम्मीदवार खड़ा नही किया था और कांग्रेस को अपना समर्थन दिया था. इसी तरह से लद्दाख लोकसभा सीट से पार्टी ने निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन दिया था.

कांग्रेस को फिर झटका

जम्मू संभाग की दोनों लोकसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी की शानदार जीत ने एक बार फिर कांग्रेस को सोचने पर मजबूर कर दिया है. किसी समय इन दोनों लोकसभा सीटों पर कांग्रेस की मजबूत स्थिति थी मगर 2014 की हार के बाद कांग्रेस अभी तक अपने को संभाल नही पाई है. कांग्रेस ने इस बार उधमपुर लोकसभा सीट से पूर्व डोगरा राज परिवार के वशंज और जम्मू कश्मीर के अंतिम महाराजा स्वर्गीय हरि सिंह के पौत्र व डॉ कर्ण सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह को चुनाव मैदान में उतारा था मगर डूबती कांग्रेस को डोगरा राज परिवार का सहारा भी बचा नही सका. अपनी ज़िन्दगी का पहला चुनाव लड़ रहे विक्रमादित्य सिंह को प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री जितेन्द्र सिंह ने हराया है. उल्लेखनीय है कि 2014 में जितेन्द्र सिंह ने दिग्गज कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद को हराया था.

विक्रमादित्य सिंह का हारना पूर्व डोगरा राज परिवार के लिए भी एक बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है.विक्रमादित्य की हार से यह भी साफ हुआ है कि पूर्व डोगरा राज परिवार की जम्मू कश्मीर की राजनीति में पकड़ अब खत्म हो चुकी है. अपने पुत्र, विक्रमादित्य की जीत के लिए खुद डॉ कर्ण सिंह ने क्षेत्र का व्यापक दौरा भी किया था लेकिन भाजपा उम्मीदवार जितेन्द्र सिंह के आगे विक्रमादित्य सिंह ठहर नही पाए.


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जम्मू कश्मीर में कांग्रेस की हार शुरू से ही निश्चित मानी जा रही थी, हालत यह थी कि पार्टी को चुनाव में उतारने के लिए उम्मीदवार तक नही मिल रहे थे. बाद में जो उम्मीदवार मिले भी उन्होंने आधे-अधूरे मन से चुनाव लड़ा. पार्टी उम्मीदवारों के हाव-भाव से साफ दिखाई दे रहा था कि उन्हें ज़बरदस्ती चुनाव मैदान में उतारा गया है. कमजोर पार्टी संगठन के कारण कांग्रेस चुनाव मैदान में जाने से पहले ही हार मान चुके थे.

भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने रैलियां की वहीं कांग्रेस उम्मीदवार भगवान भरोसे ही चुनाव लड़ते नज़र आए और कोई भी बड़ा नेता प्रचार के लिए नही आया.

(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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