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Friday, 22 November, 2024
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क्या कांग्रेस-एनसीपी अभी भी 1993 मुंबई दंगा पीड़ितों को न्याय देने में दिलचस्पी रखती है ?

महाराष्ट्र का मुसलमान आज भी 1993 मुंबई दंगे प्रकरण में न्याय की उम्मीद लगाए बैठा है कि कोई सरकार आएगी और उन्हें न्याय देगी.

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राजनीति की पुरानी कहावत है कि दिल्ली की सत्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरती है, क्योंकि वहां सबसे ज़्यादा यानी 80 लोकसभा सीट हैं, लेकिन यह भी सत्य है कि महाराष्ट्र के बगैर सत्ता अधूरी है. महाराष्ट्र में 48 लोकसभा सीट हैं, जो राज्यों की संख्या के आधार पर लोकसभा सीटों के मामले में दूसरे नंबर पर है. चुनाव के दौरान बहुत सारे मुद्दों पर चर्चा हो रही है, लेकिन महाराष्ट्र का मुसलमान आज भी 1993 मुंबई दंगे प्रकरण में न्याय की उम्मीद लगाए बैठा है. सत्ता बदलती चली गई, लेकिन वे आज ही इसी उम्मीद में हैं कि कोई सरकार आएगी और उन्हें न्याय देगी.

छह दिसंबर को बाबरी विध्वंस के बाद मुंबई में भीषण दंगे हुए, जिसमें 900 से ज़्यादा लोग मारे गए और उनमें सबसे ज़्यादा संख्या मुसलमानों की थी. दंगों में 2000 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे. बाकी माल का नुकसान का कोई आंकड़ा ही नहीं है.

दंगों के बाद सरकार ने श्री कृष्णा कमीशन आयोग का गठन किया, जिसमें हजारों बयानों के साथ हजारों पन्ने की रिपोर्ट ने कई महत्वपूर्ण बिंदु को सामने लाने का काम किया. रिपोर्ट में कई नेताओं के नामों के साथ दंगों में भूमिका निभाने में पुलिस का नाम भी सामने आया. रिपोर्ट में 31 पुलिस कर्मियों का भी नाम आया, लेकिन 20 सालों के बाद भी एक भी पुलिस वाले को सज़ा नहीं हुई.

रिपोर्ट में कहा गया कि दंगों में शिवसेना,विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल की अहम भूमिका है. निष्कर्ष में यह भी निकला कि शिवसेना मुख पत्र ‘सामना’ में लगातार ऐसे लेख छपे जो हिंदुओं के भीतर ऐसी नफ़रत का संचार किया, जो इतने बड़े नरसंहार के लिए ज़िम्मेदार हुआ. हालांकि रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि दंगों में किसी भी मुस्लिम तंजीम या संगठन की कोई भूमिका नहीं है.

रिपोर्ट को सामने आए 20 साल हो चुके हैं और 1999 विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और एनसीपी ने वादा किया था कि अगर सत्ता में आए, तो आयोग की सिफारिश को लागू करेंगे. क्योंकि शिवसेना-भाजपा ने खुले तौर पर आयोग की मुख़ालफ़त कर चुकी है.

शिवसेना नेता और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने अपने कार्यकाल के दौरान खुले तौर पर कहा था कि वो इस रिपोर्ट को बेबुनियाद मानते हैं और अगर उन्हें आयोग की सिफारिश लागू करने को मजबूर किया जाएगा, तो वो मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे देंगे, लेकिन इस रिपोर्ट को नहीं मानेंगे.

इंडिया टीवी के कार्यक्रम आपकी अदालत में भी बालासाहेब कह चुके हैं कि मुंबई दंगों में उनका हाथ नहीं बल्कि पैर भी था. इतनी बड़ी स्वीकारिता के बावजूद भी आजतक दंगों में किसी को सज़ा नहीं मिली.

शिवसेना के नेता अतुल सरपोतदार को 2008 में महज भड़काऊ भाषण के लिए एक साल की सज़ा हुई, लेकिन ज़मानत मिल गई, हालांकि 2010 में सरपोतदार की मौत हो गई. बालासाहेब को भी भड़काऊ भाषण के लिए दोषी पाया गया, लेकिन बाद में मामला रफा-दफ़ा कर दिया गया. सरपोतदार मुंबई उत्तर पश्चिम सीट से दो बार सांसद रहे थे.

रिपोर्ट में शिवसेना के एक और नेता जिक्र था, जिनका नाम है गजानन कीर्तिकर जो अभी मुंबई उत्तर पश्चिम सीट से लोकसभा संसद हैं.

दंगों के निशान आज भी मुंबई में देखे जा सकते हैं. मुंबई के मुसलमानों का मानना है कि 1999-2014 की कांग्रेस और एनसीपी सरकार ने मुसलमानों को धोखा दिया और कभी भी न्याय देने की नीयत नहीं दिखाई.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार ने अपने घोषणापत्र में कहा था कि अगर वो सत्ता में आए, तो तीन महीने के भीतर रिपोर्ट को लागू करेंगे, लेकिन सत्ता मिलते ही उसके क़ानूनी पहलू पर चर्चा करते रहे. लेकिन जब इतने साल बीत गए हैं, तो पवार अपना वादा भी भूल गए हैं. न सत्ता में रहते बोले और अब न विपक्ष में रहते बोल रहे हैं.

महाराष्ट्र सरकार के पूर्व अल्पसंख्यक और गृह राज्य मंत्री नसीम खान ने आयोग की सिफारिश को लागू करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गए. उन्होंने एक हलफ़नामा दायर किया. उसके बाद सरकार ने अपना लचर नियत दिखाया और कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए वे इसपर कोई फैसला नहीं ले सकते.

सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि 1999 विधायक बने खान ने कभी भी सिफारिश को लागू करने की कोशिश नहीं की. अपने 15 साल के कार्यकाल में खान सिफारिश लागू करवाने की कोशिश नहीं कि.

नसीम खान उन नेताओं में से है, जिन्होंने 1999 विधानसभा चुनाव में चिल्ला-चिल्लाकर मंचो से कहा था कि उनकी सरकार बनी, तो आयोग की सिफारिशों को लागू करवाया जायेगा. हालांकि सत्ता सुख की चादर ओढ़कर वो भी अन्य नेताओं की तरह सो गए.

रिपोर्ट में आरोपी बताये गए पुलिस वालों को सज़ा तो दूर की बात है बल्कि उनको प्रमोशन देने का काम कांग्रेस और एनसीपी सरकार ने किया. शिवसेना-भजपा सरकार ने भी प्रमोशन दिया और ज्वाइंट कमिश्नर  रामदेव त्यागी को मुंबई आयुक्त पद का इनाम दिया.

हालांकि कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने पांच कांस्टेबल को निलंबित किया था, लेकिन किसी भी बड़े अधिकारी के ख़िलाफ़ कोई ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई.

मुंबई कांग्रेस प्रमुख संजय निरूपम ने द वायर को दिए एक साक्षात्कार में श्री कृष्णा आयोग की रिपोर्ट पर कहा, ‘इतने सालों बाद रिपोर्ट पर बात करना सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने जैसा है.’

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी इस चुनाव में श्री कृष्णा आयोग की रिपोर्ट पर चर्चा भी नहीं कर रही है. सेकुलरिज्म (धर्म निरपेक्षता) का दम भरने वाली महाराष्ट्र की एक भी राजनीतिक दल आयोग पर चर्चा करने को तैयार नहीं है.

मुंबई दंगों में 575 मुसलमान और लगभग 275 हिन्दुओं की मौत हुई थी. इस दंगे ने मुंबई का सामाजिक सौहार्द ऐसे बिगाड़ा कि उसके ज़ख्म अभी भी देखने को मिलते हैं. मुसलमानों की हितैषी बनाने का दावा करने वाली क्या कोई भी पार्टी 1993 दंगे में मारे गए और बर्बाद हुए लोगों को न्याय नहीं दिलवाना चाहती. पार्टियों को लगता है कि समय के साथ घाव भर जाते हैं, लेकिन पीड़ित की आंखे आज भी न्याय की उम्मीद में बैठी है.

यह वक़्त है कि उन मुसलमानों को संदेश देने का की संविधान पर भरोसा रखो और इसके तहत न्याय मिलेगा. भले ही देर क्यों न हो लेकिन न्याय मिलेगा. इस तरह इतने बड़े नरसहांर को नज़रअंदाज़ करना प्राकृतिक न्याय का अपमान और संविधान का अपमान है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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