रामपुर: रामपुर का शहजाद नगर इलाका. अल्पसंख्यक बाहुल्य इस इलाके में दोपहर को जया प्रदा की जनसभा शुरू होने वाली है. स्टेज पर जया प्रदा आती हैं. रामपुर से अपने पुराने नाते का जिक्र करती हैं. अपने कार्यकाल के दौरान रामपुर के लिए किए गए विकास कार्यों को गिनाती हैं. उनके साथ कुछ सोशल मीडिया वाॅलंटियर्स भी मौजूद रहते हैं जो ‘आई एम चौकीदार’ की टी-शर्ट पहने हुए हैं और लगातार सोशल मीडिया पर पोस्ट करते जा हैं. नारे लगते हैं ‘जय-जय- जय-जया प्रदा.’ जया प्रदा स्टेज से कहती हैं, ‘बाप-बेटे (आजम और उनके पुत्र अब्दुल्लाह) ने यहां कोई काम नहीं किया है, बीजेपी को वोट दें, नरेंद्र मोदी जिंदाबाद.’ और मंच से उतरकर अगली जनसभा की ओर चल देती हैं.
दरअसल रामपुर की लड़ाई बीजेपी बनाम महागठबंधन से ज्यादा ‘आजम खान बनाम जया प्रदा’ है. ये लड़ाई चुनावी लड़ाई से कहीं ज्यादा है. यहां के गली मोहल्लों से लेकर चौराहों पर भी पार्टी से ज्यादा दोनों प्रत्याशियों की चर्चा है. ये चर्चा राजनीति से ज्यादा दोनों की दुश्मनी की है. दोनों के राजनीति के इतिहास में जाएं तो इसे आसानी से समझा जा सकता है.
यहां मुकाबला पार्टी से बढ़कर दो कट्टर विरोधियों का
दरअसल 2004 में रामपुर में जया प्रदा को खुद आजम खान लाए थे. उस दौर में आजम खान रामपुर के नवाब खानदान के खिलाफ लड़ रहे थे. उन्होंने मुलायम सिंह यादव से कहकर जया प्रदा को बेगम नूर बानो के खिलाफ चुनाव लड़वाया था. उस चुनाव में आजम ने जया प्रदा को बहन बताया था तो जया प्रदा ने उन्हें अपना बड़ा भाई करार दिया था. आजम समर्थक उन्हें जया प्रदा का गुरू भी बताते थे.
2004 लोकसभा चुनाव में रामपुरवालों के सिर ग्लैमर सिर चढ़कर बोला. जया प्रदा ने नूरबानो को हराकर आजम खान की तमन्ना पूरी कर दी. लेकिन कुछ महीनों बाद आजम और जया प्रदा के संबंध खराब होने लगे. बात इतनी बढ़ती गई कि आजम को पार्टी से बाहर का रास्ता देखना पड़ा. 2009 के चुनाव में जया प्रदा फिर से रामपुर से चुनाव मैदान में थीं, लेकिन आजम सपा से बाहर थे और किसी भी कीमत पर जया प्रदा को हारते हुए देखना चाहते थे. कहा जाता है कि पर्दे के पीछे से आजम खान की पूरी कोशिश जयाप्रदा के मुकाबले नूरबानो को जिताने की थी. इसी बीच कथित तौर पर जयाप्रदा से जुड़ी एक सीडी बाजार में आई.
अमर सिंह ने इस प्रकरण को एक हिंदू महिला की अस्मिता से जोड़ा और आजम-नूरबानो की दोस्ती के तड़के ने वहां के चुनाव को धार्मिक आधार पर पोलराइज किया. जया प्रदा फिर से जीत गईं. यह आजम खान के राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा झटका था. 2012 आते-आते आजम ने सपा में वापसी की और अपना हिसाब चुकता करने को अमर सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. वहीं दूसरी ओर अमर सिंह और अखिलेश के संबंधों में भी खटास आ गई. इस बार अमर सिंह के कहने पर ही बीजेपी ने जया प्रदा को टिकट दिया.
कांग्रेस ने बदले सीट के समीकरण
दरअसल रामपुर सीट पर कांग्रेस ने नूरबानो को न उतारकर समीकरण बदल दिए हैं. संजय कपूर को कांग्रेस प्रत्याशी बनाया गया है. माना जाता है कि अगर नूरबानो चुनाव रामपुर से लड़तीं तो इससे आजम खान को नुकसान होता, क्योंकि मुस्लिम वोटों का एक बड़ा हिस्सा उन्हें मिलता. अब मुस्लिम वोटों के विभाजन की संभावनाएं कम हैं.
आजम-अब्दुल्लाह से त्रस्त है जनता:जया प्रदा
दिप्रिंट से बातचीत में जया प्रदा ने दावा किया कि वह बड़े अंतर से चुनाव जीत रही हैं. जनता आजम व उनके पुत्र से त्रस्त है. जया प्रदा ने अपने 2004 व 2009 के कार्यकाल के दौरान किए गए विकास कार्यों को गिनाया. उन्होंने काॅलेज व पुल का जिक्र किया. जब उनसे पूछा गया, ‘क्या कांग्रेस ने नूर बानो के बजाए संजय कपूर को टिकट देकर आजम खान की मदद की है?’ इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस यहां फाइट में नहीं है. मुकाबला सपा से है. जनता मेरे साथ है. आजम खान को यहां कोई जीतते हुए नहीं देखना चाहता. गांव-गांव में बच्चा-बच्चा मोदी-मोदी कह रहा है. मायावती बड़ी नेता हैं लेकिन अखिलेश संग गठबंधन करना उनकी राजनीतिक मजबूरी है.’
पिता-पुत्र दोनों जुटे, लगातार कर रहे जनसंपर्क
वहीं जब हमने आजम खान व उनके पुत्र अब्दुल्लाह से जया प्रदा के बयान पर टिप्पणी लेने की कोशिश की तो संपर्क नहीं हो पाया. रामपुर में मिले आजम समर्थकों ने बताया कि उनके नेता ये चुनाव जरूर जीतेंगे. इसका कारण उनका लोगों से कनेक्ट है. पिता-पुत्र दोनों जनता की समस्या सुलझाने का पूरा प्रयास करते हैं. दोनों लगातार जनसभाएं कर रहे हैं.
दनियापुर के मोहम्मद असलम की मानें तो मुकाबला टक्कर का है. इस बार अंतिम राउंड तक नजदीकी मुकाबला देखने को मिलेगा. लेकिन उन्हें यकीन है कि आजम खान चुनाव जीत जाएंगे. उनके मुताबिक आजम ने रामपुर के लिए काफी काम किया है. उनकी मेहनत व्यर्थ नहीं जाएगी. वहीं आगापुर के शमशेर ने हमें बताया कि जब जया प्रदा सांसद थीं तो उन्होंने यहां काफी काम किया था. जनता उन्हें फिर चुनेगी. रामपुर में इसी तरह वोटर बंटे हुए हैं जिससे मामला और रोचक दिखता है.
बीजेपी की तैयारी भी कम नहीं
इस मुकाबले के लिए बीजेपी ने भी खास तैयारी की है. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता व रामपुर जिला प्रभारी डाॅ. चंद्रमोहन ने बताया ‘डूर-टू-डोर’ कैंपेनिंग से लेकर रोड शो तक पूरी तैयारी के साथ किए जा रहे हैं. आजम खान इस सीट पर फंस चुके हैं. उनके लिए भी नतीजे चौंकाने वाले होने वाले हैं. वह दूसरी सीटों पर भी प्रचार करने नहीं जा पा रहे.
क्या हैं सियासी समीकरण
रामपुर लोकसभा सीट को मुस्लिम बहुल्य माना जाता है. यहां की कुल आबादी 23,35,819 है. इसमें हिंदू 10,73,890 (45.97%) और मुस्लिम 11,81,337 (50.57%) हैं. हिंदू आबादी में भी 13.18 आबादी अनुसूचित जाति की है. एससी वोटर परंपरागत रूप से मायावती के साथ रहा है. साल 2014 के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि एसपी-बीएसपी के महागठबंधन और कांग्रेस के हिंदू प्रत्याशी उतार देने के बाद जया प्रदा के लिए आजम खान की चुनौती से पार पाना आसान नहीं होगा.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेपाल सिंह को 3,58,616 वोट, एसपी के नसीर अहमद को 3,35,181 वोट, कांग्रेस के नवाब काजिम अली खान को 1,56,466 वोट और बीएसपी के अकबर हुसैन को 81,006 वोट मिले थे. इस तरह से अगर एसपी और बीएसपी के वोट मिला दिए जाएं तो आजम आसानी से जीत सकते हैं लेकिन जयप्रदा भी उलटफेर में माहिर हैं. हालांकि, कांग्रेस ने हिंदू उम्मीदवार उतारकर जयाप्रदा की राह मुश्किल कर दी है.