देवास: गोडसे को लेकर साध्वी प्रज्ञा का बयान सुर्खियों में छाया हुआ है. प्रज्ञा को भोपाल से उम्मीदवार बनाने के पीछे भाजपा की रणनीति शुरू से ही चुनाव में ध्रुवीकरण कर बहुंसख्यक वोटों को साधने की मानी जा रही है. प्रज्ञा ने गोडसे वाला बयान मध्य प्रदेश के जिस लोकसभा प्रचार के दौरान दिया, उसी लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने कबीर के भजन गाने वाले को उम्मीदवार बनाया है. इस सीट पर भाजपा के मुकाबले कांग्रेस आस्था और धर्म के कहीं ज़्यादा करीब पहुंचने में कामयाब होती नज़र आ रही है.
देवास लोकसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी के प्रचार के दौरान साध्वी प्रज्ञा गोडसे को देशभक्त बताने वाला बयान देकर उलझ गईं हैं लेकिन कांग्रेसी उम्मीदवार मंच से भाषण देने के बजाए सीधे भजन गा रहे हैं और तालियां भी बंटोर रहे हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि यह वोटों में तब्दील हो सकेंगी. इस लोकसभा सीट से कांग्रेस ने प्रह्लाद सिंह टिपानिया को प्रत्याशी बनाया है. टिपानिया की मध्य प्रदेश में कबीर के भजन गाने वाले एक लोकनायक के रूप में पहचान रही है. राजनीति में भले ही वो नया चेहरा हों लेकिन भारत सरकार भजन गायिकी के आधार पर ही उन्हें पद्मश्री से सम्मानित कर चुकी है.
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अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट का बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों वाला है. गांव गांव में टिपानिया को पहले से सुना जाता रहा है. ग्रामिणवासियों के मन में टिपानिया की छवि किसी साधु की तरह है. वे प्रचार के मंच पर जाते हैं तो वहां भी भजन की मांग कर दी जाती है. तानपुरे पर मालवी बोली में भजन गाने वाले टिपानिया राजनीति में नए होते हुए भी मैदान में पूरा दम दिखा रहे हैं.
इसी क्षेत्र के एक छोटे से गांव के कच्चे पक्के मकान में रहने वाले टिपानियां अपना खाना भी खुद बनाते हैं और सरल जीवन जीते हैं.
उनके सामने खड़े भाजपा के उम्मीदवार भी राजनीति में नए हैं. टिपानिया से बिल्कुल उलट वे खासे पढ़े-लिखे और न्यायाधीश की सरकारी नौकरी छोड़कर सांसद बनने के लिए राजनीति के अखाड़े में कूद पड़े हैं. टिपानिया से मुकाबले के लिए धर्म का चुनावी मैदान में फायदा लेने की गरज से भाजपा उम्मीदवार महेंद्र सिंह सोलंकी की ही संगठन से विशेष मांग कर क्षेत्र में प्रज्ञा सिंह ठाकुर के प्रचार की इच्छा जताई थी. हालांकि इसी प्रचार में गोडसे पर उन्होंने बयान दे दिया और भाजपा ने प्रज्ञा के प्रचार पर रोक लगा दी.
देवास लोकसभा सीट पर मुकाबला रोचक है. यहां दोनों ही दलों ने गैर राजनीतिक चेहरों को अपना उम्मीदवार बनाया है. न्यायाधीश की नौकरी छोड़कर आए महेंद्र सिंह सोलंकी भाजपा के प्रत्याशी हैं. वहीं कांग्रेस ने ख्यात कबीर भजन गायक प्रह्लाद टिपानिया को टिकट दिया है. यह दोनों ही उम्मीदवार बलाई समाज से आते हैं. सोलंकी संघ के कोटे से टिकट लाए हैं तो टिपानिया मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के मार्फत. सोलंकी जज बनने से पूर्व संघ, अभाविप, भाजयुमों और भाजपा के कार्यकर्ता के तौर पर सक्रिय रहे हैं. टिपानियां के लिए राजनीति नई है.
घर, खेत से अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया कबीर गीत
2011 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित प्रह्लाद सिंह टिपानिया का जन्म 1954 में उज्जैन ज़िले की लूनियाखेड़ी गांव में हुआ. टिपानिया बचपन से ही संतों के भजन गाते थे. कबीर के दोहे और वाणी में छिपे सत्य से प्रभावित होकर वे उनके भजनों को घर, खेत और गांव में दिन रात गाते रहते. मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र स्थित देवास ज़िले में हर वर्ष होने वाले कबीर महोत्सव में टिपानिया अपने भजनों से श्रोताओं का मन मोह लेते हैं. स्कूल में कभी बच्चों को विज्ञान पढ़ाने वाले प्रह्लाद जैसे ही मंच पर तम्बूरे के तार को झंकृत करते हैं, देखने और सुनने वालों की आत्मा के तार बज उठते हैं. टिपानिया स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय, अमेरिका की प्रो. लिंडा हैस के संत कबीर पर किए गए शोध और शबनम विरमानी द्वारा कबीर पर बनाई गई फिल्मों में भूमिका भी निभा चुके हैं. राजनीति से टिपानिया का नजदीक का रिश्ता नहीं है. पिता कांग्रेस से जुड़े रहे हैं. उनके एक भाई जनपद में प्रतिनिधि रह चुके हैं. उनका बेटा कांग्रेस आईटी सेल का ब्लॉक का अध्यक्ष रह चुका है.
कोई एकतारी ला देता है धुन रमाने लगाते हैं टिपानिया
अपने चुनावी प्रचार के दौरान टिपानिया अपना फेमस भजन ज़रा धीरे-धीरे गाड़ी हांको मेरे राम गाड़ी वाले…गाड़ी मारी रंग-रंगीली पहिया है लाल-गुलाल गा रहे हैं. इस भजन के माध्यम से उन्होंने एक गाड़ी के दो पहियों का ज़िक्र किया है. इसमें उन्होंने प्रदेश सरकार को एक पहिया बता रहे तो दूसरा पहिया केंद्र में कांग्रेस सरकार को. कांग्रेसी उम्मीदवार अपने भजन मंडली के साथ गांव गांव जाकर वोट बंटोर रहे हैं. वहीं जनसभा में लोगों की फरमाइश पर पहले कबीर भजन गाते हैं और फिर सभा को संबोधित करते हैं. गैर राजनीतिक यह उनके प्रचार का अनूठा तरीका है. टिपानिया के ज़मीनी जुड़ाव के असर से भाजपा खेमे में भी बेचैनी का महौल है. इसी के चलते भाजपा ने भी भजन मंडलियों वाले हिंदूवादी साधु महंतों से भाजपा के लिए भी माहौल बनाने की कोशिश की है. टिपानिया के लिए सीट जीतना कड़ी चुनौती रहेगी. पिछले 30 साल में इस सीट पर कांग्रेस सिर्फ एक बार 2009 में जीती थी. तब जीतने वाले सज्जन सिंह वर्मा भी 2014 में मोदी लहर में ढाई लाख से ज्यादा वोटों से हारे थे.
टिपानिया का राजनीतिक अनुभव शून्य, सोलंकी की संघ में है मजबूत पकड़
बलाई समाज के प्रमुख लोगों में शुमार टिपानिया शाजापुर और देवास जिले में भजन गायक के रूप में पहचाना नाम हैं. टिपानिया ने एमए इतिहास की पढ़ाई की है. इनकी कबीर भजन गायक के रूप में वैश्विक पहचान है. इनके साथ युवा वर्ग के साथ क्षेत्रीय लोगों की अच्छी टीम है. सरल और सहज स्वभाव के टिपानिया का राजनीतिक अनुभव शून्य है. पार्टी में स्थानीय स्तर पर गुटबाज़ी है. समाज के वोटबैंक का कांग्रेस के साथ होने की धारणा रही है. कार्यकर्ताओं से पहचान नहीं होना एक चुनौती है. टिपानिया ने दिप्रिंट हिंदी से चर्चा में कहा कि राजनीति में सेवा के लिए आया हूं. युवाओं को रोजगार और देवास क्षेत्र में मुलभूम सुविधा मुहैया कराना फोकस रहेगा.
महेंद्र सिंह सोलंकी ने बीए, एलएलबी की पढ़ाई की है. न्यायाधीश जैसे गरिमामयी पद पर रहकर राजनीति के मैदान में उतरे हैं. स्थानीय उम्मीदवार होने के साथ संघ में पकड़ रखते हैं. जनता से सीधा संपर्क नहीं होना परेशानी का कारण है. सक्रिय भाजपा कार्यकर्ताओं को मौका नहीं मिल पाने के कारण अंसतोष की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. सोलंकी ने दिप्रिंट हिंदी से बातचीत में बताया कि न्यायालय में रहकर भी सेवा मेरी पहली प्राथमिकता थी. वहां दायरा बहुत ही सीमित था. क्षेत्र में औद्योगिक विकास को गति मिले यह मेरा पहला प्रयास होगा.
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दोनों दलों की नज़र प्रदेश के 37 फीसदी वोट बैंक पर
देवास—शाजापुर लोकसभा सीट एससी वर्ग के लिए आरक्षित है. इस पर केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत जैसे नेता सांसद रहे चुके हैं. बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा सांसद मनोहर ऊंटवाल दो लाख से ज्यादा मतों से जीते थे. कांग्रेस पार्टी इस सीट पर अपना कब्ज़ा चाहती है. इसलिए उन्होंने पद्मश्री टिपानिया को मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने टिपानिया को चुनाव लड़वा कर एक तरह से प्रदेश की एससी एसटी वर्ग की 10 आरक्षित सीटों को प्रभावित करने का प्रयास किया है. पूरे प्रदेश में इस वर्ग का 37 फीसदी वोट बैंक है. देवास लोकसभा क्षेत्र में 17.50 लाख मतदाता हैं. इनमें आधे वोटर्स एससी—एसटी वर्ग के हैं.
इस संसदीय क्षेत्र में हर बार भाजपा ने बाहरी उम्मीदवार को ही मौका दिया है. भाजपा का गढ़ रही लोकसभा सीट में 2018 के विधानसभा चुनाव ने गणित बिगाड़ दिया है. यहां की आठ विधानसभा सीट में से चार पर कांग्रेस का कब्ज़ा हो गया है. ग्रामीणों का 70 फीसदी वोट कांग्रेस के पक्ष में है तो शहर का 30 फीसदी क्षेत्रों में भाजपा मजबूत है. 2014 के पिछले लोकसभा चुनावों में देवास सीट से भाजपा के मनोहर ऊंटवाल सांसद निर्वाचित हुए थे. पिछले साल नवंबर में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान ऊंटवाल आगर सीट से चुनाव लड़ कर पार्टी के विधायक चुने गए थे. इसके बाद बतौर सांसद अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.
हाथों में तंबूरा लेकर कबीर भजन गाने वाले टिपानिया और जज पद छोड़कर राजनीति में कदम रखने वाले सोलंकी कितने कामयाब होंगे यह तो परिणाम ही बताएगा लेकन देवास संसदीय क्षेत्र को नया नेतृत्व मिलेगा.