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Sunday, 22 December, 2024
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देश की राजधानी दिल्ली में किस करवट बैठेगा पूर्वांचली वोटों का ‘ऊंट’

जहां भी पूर्वांचली वोटर को अपने क्षेत्र का उम्मीदवार पूर्वांचल से दिखता है तो उसका थोड़ा झुकाव उसके प्रति होता ही है. और इसी पर राजनीतिक दलों की नज़र है.

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नई दिल्ली: लोकसभा चुनावों के लिए सभी दलों ने दिल्ली के मतदाताओं का साधना शुरु कर दिया है. भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का पूरा फोकस राज्य के 33 प्रतिशत पूर्वांचल मतदाताओं पर है. सातों लोकसभा सीटों पर पूर्वांचली मतदाता पश्चिमी दिल्ली और उत्तर पूर्वी दिल्ली में है. राजनीतिक दलों ने इसी को देखते हुए दोनों सीटों पर बिहार और उत्तर प्रदेश से जुड़े उम्मीदवारों ही मैदान में खड़ा किया है. इसके पीछे की वजह साफ है कि वह पूर्वांचल वोट बैंक को अपने कब्जे में कर सके. और लोकसभा सीट पर अपनी पार्टी का परचम फहरा सके.

पश्चिमी दिल्ली सीट से कांग्रेस ने महाबल मिश्रा को उम्मीदवार बनाया है. मिश्रा बिहार से आते है. उन्होंने हमेशा से पार्टी के लिए यहीं से राजनीति की है. इसके अलावा उनका पूर्वांचल के मतदाताओं में अच्छी खासी पैठ मानी जाती है.

वहीं दूसरी ओर उत्तर पूर्वी दिल्ली की सीट से भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी दोबारा मैदान में उतरे हैं. तिवारी भी बिहार से ही आते हैं. वे हमेशा से बिहारी वोटर्स के साथ खड़े हुए नजर आते हैं. तिवारी के सांसद बनने के बाद से ही उनके लोकसभा क्षेत्र में बिहारी कार्यकर्ता उनके लिए काम करते रहे हैं. जमीनी स्तर पर वोटर्स को जोड़ने की जिम्मेदारी भी इन्हीं के कंधे पर सौंपी गई है.

वहीं मनोज तिवारी के खिलाफ आम आदमी पार्टी से दिलीप पांडे मैदान में उतरे हैं. पांडे उत्तर प्रदेश के जमनिया आते हैं. आप ने उन्हें यहां से टिकट पूर्वांचल मतदाताओं को देखते हुए दिया है. पार्टी को उम्मीद है कि पांडे तिवारी के वोट बैंक में सेंध लगाएंगे. और उनसे नाखुश लोगों को वोट अपने पाले में ले आएंगे.

लिट्टी-चोखा और भोजपुरी गायन के सहारे पूर्वांचल की प्रतीकात्मक राजनीति

पूर्वांचली वोटों को अपनी ओर खींचने के लिए दल तरह-तरह की तरीके अपना रही है. पूर्वांचल क्षेत्र से जुड़े तीनों प्रत्याशी मतदाताओं को रिझाने के लिए लिट्टी चोखा और भोजपुरी गाने तक का प्रयोग कर रहे है. आप के दिलीप पांडे अपने कैंपेन में लिट्टी चोखा के भोज का आयोजन कर रहे है. वहीं पश्चिमी दिल्ली से कांग्रेस उम्मीदवार महाबल मिश्रा लिट्टी चोखा की ता​कत समझते है.वहीं मनोज तिवारी रोड शो में भोजपुरी गाने के तड़के से वोटरों को रिझाने की कोशिश होती है. राष्ट्रवादी गानों के अलावा तिवारी के रोड शो में ‘जिय हो बिहार के लाला’ सुनने को भी मिल रहा है.

2014 से पहले कांग्रेस, उसके बाद भाजपा और फिर आप का हो गया पूर्वांचल

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर पूर्वी दिल्ली की सीट पर लगभग 40% से अधिक पूर्वांचली वोट हैं. इसमें से ज़्यादातर आबादी अवैध कॉलनियों में रहती है. 2014 से पहले इनका वोट कांग्रेस के पास था.

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पश्चिमी दिल्ली में चुनाव प्रचार की तैयारी करते कांग्रेस के उम्मीदवार महाबल मिश्रा | फोटो- तरुण कृष्णा

2009 में यहां से कांग्रेस के जयप्रकाश अग्रवाल लोकसभा चुनाव जीते थे. हालांकि, अग्रवाल दिल्ली के ही हैं. 2014 के चुनाव में ये सीट भाजपा के मनोज तिवारी ने जीत ली. उनकी जीत के पीछे पूर्वांचली वोटों को बड़ा कारण माना गया और इसी वजह से ये भी कहा जाता है कि भाजपा ने उन्हें दिल्ली का अध्यक्ष बना दिया. लेकिन दिल्ली के पूर्वांचली वोटों में बड़ा फेरबदल 2015 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला जब आप 70 विधानसभा सीटों में 67 सीटें हासिल करने में सफल रही. पार्टी ने इस चुनाव में एक दर्जन से अधिक पूर्वांचली उम्मीदवार खड़े किए थे.

महाबल मिश्रा के क्षेत्र में मिली-जुली राय

दिप्रिंट ने जब कांग्रेस के महाबल मिश्रा से यही सवाल पूछा कि 2019 में ये वोट किधर जाएंगे तो वो अपने साथ आए लोगों की भीड़ को दिखाते हुए कहते हैं कि सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं बल्कि सर्वांचल का वोट उनको मिलने वाला है. हालांकि, महाबल मिश्रा के रोड शो का दल-बल मनोज तिवारी के रोड शो की तुलना में थोड़ा फीका था. मिश्रा का दावा है कि सिर्फ पूर्वांचली वोट ही नहीं बल्कि बाकी के वोट भी उनके लिए चमत्कारी साबित होंगे क्योंकि उन्होंने लोगों के लिए काम किया है. लेकिन मिश्रा के विधानसभा क्षेत्र में आने वाली जनकपुरी वेस्ट के सीतापुरी से वोटर 45 साल के शैलेन्द्र कहते हैं, ‘इधर का वोट तो मोदी को मिल रहा है. हमारे बीच मिश्रा का कोई व्यक्तिगत विरोध नहीं है. लेकिन वो ग़लत पार्टी में हैं.’ शैलेन्द्र उत्तर प्रदेश के निवासी हैं.

बिहार से आने वाले दिल्ली के सीतापुरी के ही 47 साल के राकेश चौरसिया का कहना है, ‘सारा वोट महाबल मिश्रा को जा रहा है.’ चौरसिया का तर्क है कि मिश्रा से मिलना आसान है. वो आगे कहते हैं कि बीजेपी वाले भी ठीक हैं. लेकिन उनसे मिलना मुश्किल है. इसी इलाके से अंडे की दुकान चलाने वाली एक बिहारी महिला ने नाम तो नहीं बताया लेकिन कहा, ‘मोदी ने देश की शान बढ़ाई है.’ देखने से 50 से अधिक की ये महिला बिना पठानकोट, अभिनंदन या बालाकोट का ज़िक्र किए ये सवाल उठाती हैं कि राहुल में है इतना दम?

कांग्रेस के एक कार्यकर्ता के अनुमान के मुताबिक 23 लाख़ से अधिक वोटरों वाली पश्चिमी दिल्ली में पूर्वांचली वोटरों की संख्या 8 लाख़ से ज़्यादा है. टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 से पहले यहां के सांसद रहे महाबल मिश्रा भाजपा के प्रवेश वर्मा से 4,58,129 वोटों से हार गए थे. इसके पीछे मोदी लहर से पूर्वांचली वोटों में हुए स्विंग को एक बड़ी वजह माना जाता है. पांच साल राजनीति के मैदान से ग़याब रहे मिश्रा के मामले में पूर्वांचली वोटों की वापसी ज़िंदगी और मौत जैसा मसला होगा. इस सीट से उनके ख़िलाफ़ भाजपा के प्रवेश वर्मा के अलावा आप के बलवीर सिंह जाखड़ लड़ रहे हैं. दोनों ही जाट समुदाय से आते हैं.


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क्या आप ने की पूर्वांचल विरोधी राजनीति?

मनोज तिवारी की सीट पर दिल्ली की पूर्व सीएम और कांग्रेस उम्मीदवार शीला दीक्षित के अलावा यूपी के जमनिया यानी पूर्वांचल के दिलीप पांडे हैं. दिल्ली में उनकी पार्टी पूर्ण राज्य की राजनीति कर रही है और पार्टी का दावा है कि पूर्ण राज्य बनने के बाद पार्टी 85% दिल्ली वालों को स्कूल-कॉलेज में दाखिले से नौकरी तक में प्राथमिकता देगी.

इस पर जब दिप्रिंट ने पांडे से पूछा कि क्या ये राजनीति पूर्वांचलियों के ख़िलाफ़ नहीं है तो जवाब में उन्होंने कहा कि दिल्ली वाले से उनकी पार्टी का मतलब हर उस व्यक्ति से है जिसके पास दिल्ली वाला होने का प्रमाण है. ऐसे में अगर किसी व्यक्ति के पास पहचान साबित करने का ऐसा कोई भी जरिया है तो पार्टी उसे दिल्ली वाला मानेगी. ज़ाहिर सी बात है कि पूर्वांचल बहुल सीट से लड़ रहे पांडे के पास अपनी पार्टी की ‘दिल्ली फर्स्ट’ की नीति का बचाव करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. वैसे इस सीट पर पिछले चुनाव में मोदी लहर के अलावा मनोज तिवारी को बिहारी होने का भी फायदा हुआ था.

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उत्तर पूर्वी दिल्ली में चुनाव प्रचार करते भाजपा प्रत्याशी मनोज तिवारी | फोटो- तरुण कृष्णा

क्या है पूर्वांचल पर नज़र रखने वालों की राय

दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर और पूर्वांचली राजनीति पर नज़र रखने वाले वियन झा ने दिप्रिंट को बताया कि पूर्वांचली वोटों का झुकाव आम आदमी पार्टी की ओर है.

2014 के आम चुनाव से पहले ये वोट कांग्रेस के पास था. लेकिन मोदी लहर ने पूरे खेल बदल दिया. 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी बिजली और पानी के मुद्दे को अच्छे से भुनाने में सफल रही. झा का कहना है कि आप का कैंपेन शुरू से ज़ोरों पर था. उन्होंने इस चुनाव में बिजली, पानी के अलावा शिक्षा के मुद्दे पर ज़ोर दिया.

झा का कहना है कि पूर्वांचली वोटर्स पहले आप और कांग्रेस गठबंधन की वजह से दुविधा में थे. वहीं, कांग्रेस ने जब शीला दीक्षित जैसे लोगों के साथ अपने सात उम्मीदवारों का एलान किया तो शुरू में एक माहौल बना. लेकिन कांग्रेस इसे भुना नहीं पाई. इन वोटरों के बीच 20 दिनों तक समय बिताने की बात बताते हुए झा ने कहा, ‘राष्ट्रवाद की समझ इन लोगों को नहीं है. हां, पूर्वांचल से आने वाले जो मध्यम वर्ग के या सांभ्रांत लोग हैं वो ज़रूर भाजपा के पक्ष में हैं. लेकिन ये संख्या बहुत बड़ी नहीं है.’ उनका मानना है कि अगर कांग्रेस ने आप के साथ गठबंधन किया होता तो दोनों पार्टियां मिलकर दिल्ली की सातों सीटें जीत सकती थीं.

पूर्वांचल में शादियों का मौसम, खटाई में पड़ सकता है पार्टियों का गणित

नेटवर्क 18 की एक रिपोर्ट का अनुमान है कि बिहार में शादियों के मौसम की वजह से दिल्ली में 12 मई को होने वाली वोटिंग के दौरान पार्टियों के पूर्वांचली वोट के गणित में खटाई पड़ सकती है. इसी रिपोर्ट में एक अनुमान का हवाला देकर ये भी बताया गया है कि दिल्ली की कुल 1.36 करोड़ की आबादी का लगभग 33.5% हिस्सा पूर्वांचलियों का है. आपको बता दें कि पहले पूर्वांचलियों में सिर्फ यूपी और बिहार वालों को जोड़ते थे. लेकिन अब इसमें झारखंड के लोगों को भी शामिल किया जाना लगा है. सन् 2000 के नवंबर में अलग राज्य बनने के पहले झारखंड बिहार का हिस्सा था.

वोटों पर जितने मुंह उतनी बातें, किस करवट बैठेगा पूर्वांचली वोटों का ऊंट?

पश्चिमी दिल्ली के इलाके में बिहार के मिथिलेश ने दिप्रिंट को बताया कि वो जनकपुरी के महावीर एनक्लेव में रहते हैं और मज़दूरी करते हैं. वोट किसे देने के सवाल पर मि​थिलेश ने कहा कि ‘वोट तो मैं मोदी जी को दूंगा. महाबल मिश्रा बिहारी हैं लेकिन हमारे लिए ज़्यादा काम मोदी जी ने किया है. हमलोगों को गैस, बाथरूम, घर सब मिला.’

दिल्ली में लोकसभा चुनावों के दौरान पूर्वांचल के उम्मीदवारों को अपने क्षेत्र से होने का फायदा तो मिला है. लेकिन भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच त्रिशंकु हुई दिल्ली में राष्ट्रवाद बनाम जनहित के मुद्दों के बीच तस्वीर साफ नहीं कि पूर्वांचल का ऊंट किस करवट बैठेगा.

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