झांसी: बुंदेलखंड का नाम आते ही सिर पर घड़ा उठाए महिलाओं और पानी के लिए त्राही-त्राही करते किसानों की तस्वीरें ही सामने आती हैं. जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है वैसे-वैसे बुंदेलखंड का पानी सूखता जा रहा है और वहां के लोग और महिलाएं अब सड़कों पर उतरने की तैयारी में हैं. मज़ेदार बात यह है कि बुंदेलखंड से एक दो नहीं बल्कि चार-चार नदियां गुज़र रही हैं जिसमें चंबल, नर्मदा, यमुना और टोंस प्रमुख है. उसके बाद भी बुंदेलखंड का पानी के लिए तरसना विडंबना ही है.
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फिलहाल देश में लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं और बुदेलखंड में 29 अप्रैल को मतदान होगा. इस चुनावी मौसम में यहां की महिलाओं ने अपनी मांगे राजनीतिक पार्टियों के सामने रखने का अनोखा तरीका निकाला है. बुंदेलखंड की प्रमुख समस्या पीने का साफ पानी है, महिलाएं इसी मुद्दे के साथ देश के सामने आ गई हैं. इसबार यहां कि महिलाओं ने पानी की मांग से जुड़ा छह पन्नों का मेनिफेस्टो तैयार किया है. जिसमें पानी से जुड़ी हर समस्या और इसके समाधान की बात भी कही गई है. इस मेनिफेस्टो को बनाने में झांसी के कई गांवों की महिलाएं शामिल हैं उन्होंने एक स्वयं सेवी संस्था की सहायता से इसे तैयार किया है. उनका कहना है कि अब जब यहां कोई नेता और पार्टी के लोग वोट मांगने आएंगें तो वो हमें अपना नहीं, हम उन्हें अपना मेनिफेस्टो देंगे और इसी के आधार पर ही हम मतदान भी करेंगे. महिलाएं सिर्फ झांसी तक सीमित नहीं है बल्कि बुदेलखंड के पानी से तरसते गांवों में इस मेनिफेस्टो के साथ पहुंच रही हैं. महिलाओं के इस समूह का नाम ‘जल सहेली’ है और जो मेनिफेस्टो इन्होंने तैयार किया है उसका नाम ‘बुंदलेखंड जल घोषणा पत्र’ रखा है.
कौन है जल सहेलियां जिन्होंने तैयार किया घोषणापत्र
बुंदेलखंड जल घोषणापत्र को यहां कि 176 जल सहेलियों ने मिलकर तैयार किया है. ये वो जल सहेलियां हैं जो यहां लंबे समय से पानी को लेकर मुहिम चला रही हैं. पानी पंचायत संगठन व पर्मार्थ संस्था की मदद से ये जल सहेलियां बुंदेलखंड की पानी से जुड़ी तमाम समस्याएं देश और नीति निर्माताओं के संज्ञान में लाने के काम में जुटी हैं. फिलहाल बुंदेलखंड का (जो हिस्सा यूपी में है) में 886 जल सहेलियां है जो अलग-अलग गांव में काम कर रही हैं और यही महिलाएं एकजुट होकर अपने प्रयासों से सूखा, जलसंकट और पलायन के लिए चर्चित बुंदेलखंड की तस्वीर बदलने की कोशिश कर रही हैं.
इस मेनिफेस्टो को तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाली मानपुर की गीता कुमारी के मुताबिक गांव की महिलाओं (जल सहेलियों) ने तीन महीने तक पानी से जुड़ी हर पड़ताल की है. इस दौरान उन्होंने एक-एक समस्या का मुआयना किया, जल संसाधनों के लिए जगह की भी खोज की है. मेनिफेस्टो तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाली एक अन्य महिला तारा देवी बताती हैं कि स्वंयसेवी संस्थाओं की मदद से इसके 5 हज़ार प्रिंट निकालकर गांव में बांटे गए हैं. वहीं हमारी समस्या से शहर वाले भी अवगत हों इसके लिए शहरी इलाकों में भी ये घोषणापत्र पहुंचाने का काम किया गया है साथ ही लॉन्चिंग कार्यक्रम भी कराए गए हैं.
इन महिलाओं का कहना है कि इस बार चुनाव लड़ रहा जो भी प्रत्याशी उनसे वोट मांगने आएगा वे सभी उसे घोषणापत्र दिखाएंगी और जब उनकी मांगें पूरी होने का आश्वासन मिलेगा तभी वोट दिया जाएगा. गांव के पुरुष भी महिलाओं के साथ हैं. बता दें कि 16वीं लोकसभा में बुंदेलखंड की आवाज़ बनीं थी उमा भारती, जो मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहीं लेकिन इसबार वह चुनाव नहीं लड़ रही हैं.
तीन महिलाओं ने कैसे जागरुक किया पूरे गांव को
पानी के मामले में झांसी के बबीना ब्लाॅक के मानपुर गांव की स्थिति अन्य गांव की तुलना में थोड़ी बेहतर है. इसका श्रेय गीता, तारा औ विद्या देवी की कोशिशों को जाता है.पहले कई किलोमीटर दूर साफ पानी के लिए जाना पड़ता था. फिर स्वंय सेवी संस्थाओं की मदद से तीनों महिलाओं ने गांव भर में मुहिम चलाई. नए हैंडपंप, पानी की टंकी, तालाब की सफाई के साथ – साथ पानी बचाने के तौर-तरीके भी बताए और धीरे-धीरे यहां पीने के पानी की समस्या कम हुई. अब जो बाकि समस्याएं हैं उन्हें वह जल घोषणापत्र के ज़रिए नेताओं तक पहुंचाना चाहती हैं.
क्या है मेनिफेस्टो में
बुंदेलखंड जल घोषणा पत्र छह पन्नों का है. इसके पहले पन्ने पर बताया गया है कि इसे बुंदेलखंड में जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तैयार किया गया है. ये जल सहेली और पानी पंचायत का सामूहिक प्रयास है. इसमें पानी से संबंधित समस्याएं और समाधान दिए गए हैं. मेनिफेस्टो में पानी की कमी, सूखे तालाब, गंदा पानी, जल संरक्षण का अभाव, तालाब पर अतिक्रमण, गांव में हैंडपंप की कमी, जलस्तर में गिरावट, पीने योग्य पानी का अभाव, पाइपलाइन की कमी, पाइपलाइन टूटना, पानी की टंकी की कमी, नदियों का सूखना, मोटर की मरम्मत की व्यवस्था न होना, कुओं की घटती संख्या, दूषित और गंदा पानी जैसी कई समस्याएं उठाई हैं. और आगे क्या है समाधान यह भी समझाया गया है.
अन्य गांव में भी तेज़ी से बढ़ रहा अभियान
बुंदलेखंड के कई गांव में भी जल सहेलियां अपने गांव में पानी की समस्या का समाधान करने में जुटी हैं. परमार्थ संस्था के फाउंडर संजय सिंह ने बताया, जल सहेलियों का काॅन्सेप्ट बुंदेलखंड की महिलाओं से बात करके निकला. कई साल पहले वह और उनके साथी गांव-गांव जाकर जब महिलाओं से बात कर रहे थे तब पता चला कि यहां महिलाओं का अधिकतर समय पानी लाने में ही बीत जाता है. कई घरों में कलह की वजह ही पानी है तो फिर दिमाग में आया की महिला और पानी को लेकर एक मुहिम शुरू की जाए जो बाद में जल सहेली और पानी पंचायत का काॅन्सेप्ट बन गया.
उनके मुताबिक आज बुंदेलखंड के कई गांव में पानी पंचायत सक्रिय हैं. वहीं 100 से अधिक गांवों में जल सहेलियों हैं जो अपने गांव को पानीदार बना रही हैं और वहां के लोगों को भी जागरुक कर रही हैं. अब इस जल घोषणापत्र को लेकर जल सहेलियां गांव गांव जाकर राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के साथ चर्चा करने को बोल रही हैं. हर उम्र के ग्रामीणों के बीच इस घोषणा पत्र को पहुंचाने की कोशिश है. बुंदेलखंड की झांसी, जालौन व हमीरपुर सीट पर 29 अप्रैल को चुनाव है.
इन गांवों में पानी की है ज़्यादा कमी
बुंदलेखंड में पानी की स्थिति किसी से छुपी नहीं है. अधिकतर गांव में लोग दो-दो किलोमीटर दूर पानी लेने जाते हैं. ये मुद्दा कई बार यहां के निवासियों ने उठाया लेकिन कोई भी सरकार इसका समाधान नहीं कर पाई है. वैसे तो यहां पानी की कमी हर जगह है लेकिन बुंदेलखंड के सखा, खजराहा, किल्चवारा, बैदोरा, चमरुआ, मथुरापुरा, दुर्गापुर, कोटी, मुरारी, अमरपुर, बरुआपुरा, मह, गुढ़ा, बाजना, रक्सा, बमेर, छतपुर, परासई बछौनी, खैरा, इमिलिया, भागौनी, गजगांव, बदनपुर, बसाई, पुनावली, खुर्द, डगरवाहा, नया खेड़ा, डोमागोर, कोरा, ढिकौली, पलींदा, मवई, शिवगढ़ , काशीनगर
गांव में पानी की समस्या सबसे अधिक है. अब देखना ये है कि यहां के नेता इस घोषणा पत्र को कितनी सीरियस लेते हैं. उन्हें इन गांव के वोट चाहिए तो ग्रामीणों की मांगें भी माननी होंगी. लेकिन हर बार की तरह कहीं वे इस बार भी ‘चुनावी वादे’ करके न चले जाएं इसकी शंका भी है.
पानी की कमी के कारण पलायन बढ़ा
बुंदेलखंड में पानी की कमी और रोज़गार की कमी के कारण लोग लगातार पलायन करते जा रहे हैं. सरकार के पल्स पोलियो अभियान के आंकड़ों पर गौर करें तो यूपी के हिस्से के बुंदेलखंड की करीब एक करोड़ की आबादी वाले इस प्रदेश से पिछले एक दशक में करीब 45 लाख से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं. वहीं यहां से प्रकाशित होने वाले हिंदी दैनिक अमर उजाला के मुताबिक बुंदेलखंड में जो हिस्सा यूपी में है उससे 22 लाख से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं. लोग अपने भूखे बच्चों की भूख मिटाने के लिए रोज़ी-रोटी की तलाश मे बड़े शहरों का रुख कर रहे हैं. झांसी से दिल्ली, पंजाब, हरियाणा की ओर जाने वाली ट्रेनों में सबसे अधिक भीड़ होती है.
पानी से जुड़ी समस्याएं अधिक
बुंदेलखंड में पानी से जुड़ी समस्याएं सबसे अधिक हैं. यहां भूजल का स्तर साल दर साल गिर रहा है. खेत और पेट दोनों के लिए ही पानी का संकट गहराता जा रहा है. सिंचाई और पीने के पानी के लिए कारगर योजनाओं की तत्काल ज़रूरत है. बुंदेलखंड में बिजली का संकट भी अहम मुद्दा है. कटौती मुक्त घोषित होने के बाद भी यहां जमकर बिजली की कटौती होती है.
अवैध खनन भी है बड़ी समस्या
यहां का जो हाल है उसकी प्रमुख वजहों में से एक खनन भी है. वैध और अवैध खनन की वजह से बुंदेलखंड की नदियों का अस्तित्व खतरे में बना हुआ है. पिछले कुछ सालों में बुंदेलखंड की नदियों से अंधाधुंध तरीके से बालू निकाला जा रहा है, वह यहा की नदियों के अस्तित्व को धीरे-धीरे खत्म कर रहा है.पर्यावरण को भी भारी क्षति पहुंच रही है. बुंदेलखंड की खनिज संपदा का पूरा लाभ बुंदेलखंड को ही मिलना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता. अवैध खनन की शिकायतें लोग आज भी करते हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती.