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Tuesday, 16 April, 2024
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मीम महज मजाक के लिए नहीं, अब ये बन गए हैं राजनीतिक हथियार

मीम कई बार किसी के रंग, भाषा, लिंग और जाति का मजाक बनाते हैं और इनका नेचर अपमानजनक होता है.

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नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों से मीम सबसे बड़े राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किए जा रहे हैं. युवाओं में तो यह बहुत ही लोकप्रिय हैं. इस बार के लोकसभा चुनाव में 1 करोड़ फर्स्ट टाइम वोटर्स थे. इनको लुभाने के लिए राजनीतिक पार्टियों ने शेयरचैट, फेसबुक और इंस्टाग्राम को राजनीतिक मीम्स से पाट दिया. एक तरह से मीम्स ने इन रानीतिक पार्टियों के पक्ष और विपक्ष में काम किया.

मीम शब्द 2015 के आस-पास चर्चा में आ रहा था लेकिन इसके उच्चारण और इसकी मीनिंग को लेकर उलझन बनी हुई थी. एक तरह से मीम एक ऐसी सोशल मीडिया लैंग्वेज है जो पाठकों को आसानी से एक मुद्दा समझा देती है. सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक तीनों ही तरह के मीम सोशल मीडिया पर तैर रहे होते हैं.

देश में मीम के बारे में सबसे ज्यादा 2017 में सर्च किया जा रहा था जब एक हिंदूवादी संगठन राष्ट्र स्वाभिमान दल के एक सदस्य दीपक शर्मा मीम को मेमे कहकर वीडियो बना रहे थे. उस वक्त हिंदीभाषी लोगों में मीम और मेमे के बीच का कन्फ्यूजन क्लियर हुआ.

इस पूरे चुनाव में राहुल गांधी की छवि ‘पप्पू’ की गढ़ने में, प्रधानमंत्री रेस मे लगे नेताओं को बेवकूफ साबित करने में और नरेंद्र मोदी को एक ताकतवर नेता के रूप में उभरने में मीम्स का योगदान महत्वपूर्ण रहा है.


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नरेंद्र मोदी की केदारनाथ यात्रा पर बना एक मीम.

पूरे चुनाव के दौरान किसी ने ठहाके लगाए तो कोई हुआ गिरफ्तार

मीम्स को लेकर लोगों में दो तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती हैं. जब अपने पसंद के किसी नेता पर मीम शेयर किया जाता है तो वो आहत करने वाला होता है. लेकिन नापसंद नेता को लेकर बने मीम्स मजेदार लगते हैं. अभी हाल-फिलहाल में अभिनेता विवेक ओबेरॉय ने चुनावी नतीजों को लेकर एक मीम शेयर किया जो सलमान खान, ऐश्वर्या राय और अभिषेक बच्चन को लेकर बनााया गया था. राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा नोटिस भेजने पर विवेक ओबेरॉय ने वो ट्वीट डिलीट कर दिया मगर वह आखिरी तक पूछते ही रह गए कि उस मीम में गलत क्या था.

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वहीं, पश्चिम बंगाल में भाजपा युवा मोर्चा की संयोजक प्रियंका शर्मा को इस बात के लिए गिरफ्तार करवा दिया कि उन्होंने ममता बनर्जी पर बना एक मीम शेयर कर दिया. इस मीम में प्रियंका चोपड़ा के मेट गाला के लुक को ममता पर फिट करने के लिए प्रियंका शर्मा को गिरफ्तार ही नहीं कराया गया बल्कि आईपीसी की घारा 500 (मानहानि), धारा 66ए (आपत्तिजनक सामग्री) और 67ए (सेक्स संबंधी मुखर चीज़ों का वितरण) की कठोर धाराएं भी लगाई गईं. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने प्रियंका शर्मा को जमानत दे दी.

प्रधानमंत्री पद को लेकर विपक्षी नेताओं पर बना मीम.

क्या कहते हैं मीम्स बनाने और देखने वाले

चंडीगढ़ में एमएससी की पढ़ाई करने वाले राहुल बताते हैं, ‘मीम्स से चीजें समझना आसान हो जाता है. एक आर्टिकल पढ़ने में समय लगता है. राहुल गांधी ने अगर कुछ फनी कहा है और उस पर मीम बन गया है तो मीम से ही सारा माजरा समझ आ जाता है.’

फेसबुक पर कई सारे पेज चलाने वाले घनश्याम मानते हैं, ‘लोग मीम और चुटकुलों के जरिए आसानी से राजनीतिक चीजें समझते हैं. मीम्स पर ऑडियंस ज्यादा आती है और जुड़ी रहती है. जबकि लंबे राजनीतिक पोस्ट्स पर रीडर्स को जोड़ना एक मुश्किल काम होता है.’

नरेंद्र मोदी पर बना एक मीम.

आईआईटी पास आउट पीसी यादव कहते हैं, ‘चुनाव में मीम्स ही सबसे ज्यादा मजेदार रहे हैं. एक मीम से पूरा मुद्दा भी समझा जा सकता है. उतना समय भी नहीं मिलता है कि विश्लेषण पढ़ें.’

राजनीतिक कार्टून से राजनीतिक मीम तक का सफर

राजनीतिक कार्टून और राजनीतिक मीम दो अलग चीजें हैं. मीम तुरंत हंसाने वाले होते हैं. इनमें गंभीरता नहीं होती है. जबकि कई बार कार्टून हजार शब्दों के विश्लेषण से बेहतर तरीके से बात रख देते हैं. कार्टून मजेदार होते हुए भी मुद्दों को लेकर गंभीरता लिए हुए होते हैं. इंदिरा गांधी की लंबी नाक को लेकर बनाए कार्टून गंभीर थे.

मीम कई बार किसी के रंग, भाषा, लिंग और जाति का मजाक बनाते हैं और इनका नेचर अपमानजनक होता है. जितनी जल्दी ये सोशल मीडिया और विभिन्न ऐप्स पर वायरल होते हैं उतनी ही जल्दी ये लोगों के जेहन से भी गायब हो जाते हैं. मीम्स को लेकर ममता बनर्जी और ठाकरे ने लोगों को गिरफ्तार करवाया है तो राजनीतिक कार्टून्स ने राजनेताओं को हंसाया भी है. प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट शंकर द्वारा नेहरू पर कार्टून्स पर खुद नेहरू हंसते थे और कहते थे- डॉन्ट स्पेयर मी, शंकर.

जवाहर लाल नेहरू और नरेंद्र मोदी पर बना एक मीम.

लेकिन अगर मीम्स की बात करें तो कई बार ये बहुत आक्रामक और व्यक्तिगत होते हैं. जो कि कार्टून की गंभीर भाषा से अलग सतही भी नजर आ सकते हैं.

मिलेनियल्स को भा रहे हैं मीम्स

पहली बार वोट करने वाले लोग मीम्स से प्रभावित होते हैं या नहीं. ये जानने के लिए हमने कुछ पहली बार वोट डालने वालों से बात की. उत्तर प्रदेश की रहने वाली शिवानी का कहना है, ‘मैं राजनीति में ज्यादा रुचि नहीं रखती हैं लेकिन राहुल गांधी के पप्पू वाले मीम्स उन्हें मजेदार लगते हैं. राहुल गांधी की लीडरशिप के सवाल पर वो कहती हैं कि पप्पू कभी नेता नहीं बन सकता.’

इस चुनाव में नेहरू, गांधी से लेकर जिन्ना के मीम्स खूब चले. ये मीम्स एक तरह से नए इतिहास को लिख रहे हैं. इसको पढ़ रहे दिल्ली के जय ने दिप्रिंट को बताया, ‘मीम्स आपको कोई नेता कैसा है बता देते हैं. जैसे केजरीवाल के ज्यादा बोलने पर बने मीम्स फनी होते हैं. कहीं भी फिट होते हैं. कोई दोस्त ज्यादा पकाता है तो हम बोलते हैं ज्यादा केजरीवाल मत बन’

भाजपा नेता द्वारा जूतों से पिटाई करने के बाद बना मीम.

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इसका घाटा भी है

मीम्स का आसानी से इस्तेमाल होता है गलत सूचना देने में. मीम्स एक तरीके से छवि गढ़ देते हैं और जनता उस इंसान को उसी छवि में देखने लगती है. हंसी-मजाक में बनाये गये मीम अपने असर में गंभीर भी हो जाते हैं. फेक न्यूज के दौर में मीम्स द्वारा फैलाई गई सूचनाएं भी सही मानी जाने लगी हैं. ये मारक होते हैं और जनता इन्हें जल्दी भूल जाती है. लेकिन इसके द्वारा दी गई सूचना अपने सही/गलत रूप में दिमाग में रह जाती है. चूंकि मीम्स कोई भी बहुत आसानी से बना सकता है, इसलिए इनका हर तरह का इस्तेमाल हो सकता है. कार्टून बनाने के लिए ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है, इसलिए प्रोफेशनल ही बना पाते हैं. इसकी वजह से इसका उतना दुरुपयोग नहीं हो पाता. कार्टून बनाने वाले को क्रेडिट भी मिलती है. उसकी पहचान होती है. मीम की कोई पहचान नहीं होती, कोई भी बना के सोशल मीडिया पर डाल सकता है. पहचान गुप्त रहने से कुछ भी कह देने में आसानी होती है.

असर जो भी हो, युवाओं में मीम बहुत लोकप्रिय हैं. युवा तो सोशल मीडिया पर अपने दोस्तों में मीम्स के जरिए ही बात भी करने लगे हैं. मीम्स को लेकर ग्रुप भी बने हैं.

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