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Thursday, 21 November, 2024
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कुंडा के भाषण में अखिलेश यादव ने दिखाया खांटी समाजवादी तेवर

उत्तर प्रदेश में सामंतवाद के गढ़ प्रतापगढ़ में अखिलेश यादव ने ‘राजशाही’ को चुनौती दी और तमाम जातियों को अधिकार देने की बात कही. लेकिन क्या उनके बदले तेवर का लाभ समाजवादी पार्टी को होगा?

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जब लोकसभा चुनाव में मतदान के तीन चरण बाकी रह गए थे तब सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कौशांबी लोकसभा क्षेत्र के कुंडा में एक जोरदार भाषण दिया. अखिलेश यादव द्वारा कुंडा रैली में दिए गए भाषण की सोशल मीडिया पर काफी चर्चा है. कई सामाजिक चिंतक और पत्रकार इस भाषण को न सिर्फ इस चुनाव का, बल्कि अखिलेश यादव के सम्पूर्ण राजनैतिक जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाषण मान रहे हैं.

दरअसल, अखिलेश यादव ने कुंडा रैली के दौरान अपने भाषणों में कुंडा से निर्दलीय विधायक और अब जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया पर जमकर निशाना साधा. अखिलेश यादव ने राजा भैया पर निशाना साधते हुए कहा कि लोकतंत्र में कोई राजा नहीं है, लोकतंत्र में यदि कोई राजा है तो जनता राजा है. सामंतवाद के खिलाफ अखिलेश यादव के भाषण को सुनकर गदगद जनता के जोश को देखते हुए अखिलेश आगे कहते हैं कि उन्हें (अखिलेश) जरूरत नहीं थी कि वे उन्हें (राजा भैया को) मंत्री बनाते. उन्होंने राजा भैया को सम्मान दिया, मंत्री बनाया पर बदले में राजा भैया ने उनसे धोखा किया.

राजा भैया पर वादाखिलाफी का आरोप

अखिलेश यादव ने राजा भैया को लक्ष्य करके रामचरितमानस का एक दोहा सुनाया – ‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर बचन न जाई.’ अखिलेश यादव कहते हैं कि राजा भैया का वचन ही चला गया. ठाकुरों के पास एक ही तो चीज है, जिस पर भरोसा किया जा सकता है – वो है उनकी जुबान, उनका वचन और राजा भैया का वचन ही खाली चला गया.

जानिए क्या है वचन का पूरा मामला –

दरअसल, बीते साल यानि 2018 में यूपी से राज्यसभा की सीटों पर चुनाव होना था. सपा-बसपा ये चुनाव मिलकर लड़ रही थीं. बसपा चाहती थी कि उनके नेता भीमराव अंबेडकर को राज्यसभा पहुंचाने में सपा मदद करे. सपा मदद को तैयार थी, पर चुनावी गणित कुछ ऐसा हो गया था कि सपा की मदद के बाद भी बसपा उम्मीदवार की जीत के लिए एक विधायक की कमी पड़ रही थी. अखिलेश यादव ने राजा भैया से बात की. दोनों मिले. राजा भैया ने भी अखिलेश यादव को वचन दिया कि वो उनकी मदद करेंगे. अखिलेश ने ट्वीट करके इसकी घोषणा कर दी पर ऐन मौके पर राजा भैया ने अपना वोट भाजपा उम्मीदवार को दे दिया.


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राजा भैया के इस व्यवहार से अखिलेश यादव मायावती के सामने लज्जित होने पर मजबूर हुए. मायावती ने अखिलेश यादव को राजा भैया जैसे नेताओं से सावधान रहने की सरेआम नसीहत भी दे डाली. जानकारों का कहना है कि उस दिन से अखिलेश यादव ने राजा भैया से अपने सारे संबंध तोड़ लिए. चुनावी जनसभा में अखिलेश यादव राजा भैया को उसी वचन को तोड़ने का उलाहना दे रहे थे.

कुंडा की सभा में कहते-कहते अखिलेश यादव एक बात और कह गए कि ये नए जमाने की सपा है – अब किसी के लिए एकबार दरवाजे बंद हुए तो फिर नहीं खुलेंगे.

क्या ये वाकई नए जमाने की सपा है?

एक जमाना था जब समाजवादी पार्टी में सामंती तत्वों का खासा दबदबा था. खुद अखिलेश यादव की सरकार में सामंती ताकतें काफी मजबूत थीं. चाहे बुंदेलखंड के बुंदेला सामंत हों या गोंडा के बृजभूषण शरण सिंह हों या कीर्ति वर्धन सिंह हों, या विनोद सिंह उर्फ पंडित सिंह हों या कुंडा के राजा भैया हों, या अक्षय प्रताप सिंह हों, या इलाहाबाद के रेवती रमण सिंह हों या सुल्तानपुर के यशभद्र सिंह उर्फ सोनू सिंह हो या अम्बेडकर नगर के शेर बहादुर सिंह हों, या बलिया के नीरज शेखर सिंह हो या गाजीपुर के ओमप्रकाश सिंह हों, पूरे उत्तर प्रदेश में सामंतवाद समाजवादी परचम के तले ही फलफूल रहा था.

हालत ये थी कि जब 2002 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने राजा भैया पर पोटा लगाकर जेल भेज दिया तब समाजवादी पार्टी ही राजा भैया की सबसे बड़ी मददगार बनकर सामने आई. और जब मायावती की सरकार गिरने के बाद मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने तो न सिर्फ राजा भैया पर से पोटा हटाया गया बल्कि उन्हें मुलायम सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया. बाद में अखिलेश की पूर्ण बहुमत वाली सरकार में भी राजा भैया को कैबिनेट मंत्री बनाया गया. अखिलेश यादव के चरित्र में थोड़ा बदलाव उस समय देखा गया जब उनके मुख्यमंत्री रहते समाजवादी पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ पांच सीटों पर सिमट गई.

लेकिन तब अखिलेश यादव को उनके सलाहकारों ने ये कहकर समझा लिया कि 2017 के विधानसभा चुनाव में विकास के बूते पर अखिलेश यादव फिर सरकार बना लेंगे. लेकिन जब 2017 के विधानसभा चुनाव हुए अखिलेश यादव की करारी हार हुई और इस हार ने उन्हें भीतर से झकझोर कर रख दिया. समाजवादी पार्टी को कुल 403 में से 50 सीटें भी नसीब नहीं हुई.


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लेकिन इस हार के बाद अखिलेश यादव ने अपनी जिंदगी में अपमान का वो घूंट पीया, जिसकी उन्होंने अपने जीवन में कभी कल्पना भी नहीं की थी. उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव द्वारा खाली किए गए मुख्यमंत्री आवास को गंगाजल से धुलवाया.

जानकारों की मानें तो अपमान का यही वो कड़वा घूंट था, जिसे पीने के बाद अखिलेश यादव की राजनीतिक सोच में परिवर्तन देखने को मिला.

इसके अलावा 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी में बृजभूषण शरण सिंह जैसे नेता सपा के पाले से उड़कर भाजपा के पाले में जा चुके थे. ऊपर से विधान सभा चुनाव की करारी हार और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से सूबे की अधिकांश सामंती ताकतों को भगवा खेमे में लाकर खड़ा कर दिया. अखिलेश यादव भी इस बदलाव की बयार को पहचान चुके थे. इसलिए अखिलेश यादव ने इलाहाबाद से रेवती रमण और बलिया से नीरज शेखर का टिकट काटकर सामंतवाद के खिलाफ स्पष्ट संदेश दिया. यही नहीं इस बार अखिलेश यादव ने सिर्फ दो ठाकुरों को लोकसभा का टिकट दिया.

इसके अलावा बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी कैसरगंज से भाजपा उम्मीदवार बृजभूषण शरण सिंह को नसीहत देते हुए कहा कि उन्हें राजा भैया के हश्र से नसीहत लेनी चाहिए. गौरतलब है कि बृजभूषण पर कैसरगंज में महागठबंधन के उम्मीदवार चंद्रदेव राम यादव के कार्यालय पर हमला कराने का आरोप है.

मायावती और अखिलेश द्वारा मंच से सामंतियों को नसीहत देने से भी सामंतवाद से पीड़ित जनता को काफी उम्मीदें बंधीं हैं. लोगों को उम्मीद है कि महागठबंधन के सत्ता में आने पर उन्हें सामंती ताकतों से मुक्ति मिलेगी.

सामंतवाद पर करारा प्रहार करने के अलावा अखिलेश यादव ने कुंडा रैली में आबादी के अनुपात में नौकरियों में भागीदारी के मामले को भी उठाया. इस समय बिंद, मल्लाह, निषाद, राजभर, नौनिया चौहान, तेली, तमौली, पाल, बघेल, कुम्हार, कलवार, लुहार, ताम्रकार, लोध, अहीर, गूजर, कुर्मी, कोयरी जैसी तमाम पिछड़ी जातियां आबादी के अनुपात में भागीदारी की मांग कर रही हैं. सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी कुंडा रैली में इन जातियों की मांग को हवा देते हुए जातिगत जनगणना कराकर तमाम पिछड़ी जातियों को भी एससी, एसटी समुदाय के तरह ही आबादी के अनुपात में भागीदारी देने की बात कही है.


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अपने भाषण के दौरान अखिलेश यादव ने कुर्मी, मौर्या, धोबी, गड़रिया, जैसी तमाम जातियों का मंच से नाम भी लिया. इससे पहले अखिलेश यादव मंच से जातियों का नाम लेने से परहेज करते रहे हैं.

लेकिन ऐसा लगता है कि अखिलेश यादव ने ओबीसी जातियों के लिए भागीदारी की बात करने में थोड़ी देर कर दी. अगर अखिलेश यादव चुनाव शुरू होने से पहले ही ओबीसी जातियों को आबादी के अनुपात में भागीदारी देने की बात करते तो चुनाव में अखिलेश यादव और महागठबंधन को ज्यादा फायदा होता. पर अब चूंकि पूर्वांचल में चुनाव होना है, और आबादी के अनुपात में भागीदारी की मांग भी पूर्वांचल में काफी तेज है तो ऐसे में अगर अखिलेश यादव आबादी के अनुपात में भागीदारी देने के अपने मुद्दे पर अड़े रहे तो ओबीसी की तमाम जातियां महागठबंधन के पक्ष में लामबंद हो सकती हैं.

(लेखक भारत जनमत यूट्यूब चैनल के संपादक हैं. और यह लेखक के निजी विचार हैं)

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