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Friday, 22 November, 2024
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सफाई कर्मचारी घोषणा पत्र: हमें रोजगार से पहले, सम्मान से जीने का हक चाहिए

हमारे समाज में सदियों से उपेक्षा झेल रहे सफाई कर्मचारी समुदाय ने भी बुधवार को अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया.

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नई दिल्ली: देश में चंद रोज बाद ही 2019 लोकसभा चुनाव के पहले चरण के लिए वोट डाले जाएंगे. चुनावी सरगर्मियों के बढ़ते पारे के बीच इस वक्त विभिन्न राजनीतिक पार्टियां अपना घोषणा पत्र जारी करने में लगी हैं. इसी बीच हमारे समाज में सदियों से उपेक्षा झेल रहे सफाई कर्मचारी समुदाय ने भी बुधवार को अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया. दिल्ली के इंडिया सोशल इंस्टीट्यूट में जारी किए गए सफाई कर्मचारी घोषणा पत्र 2019 का मुख्य मकसद समाज में गरिमा के साथ जिंदा रहने के मौलिक अधिकार को जमीन पर उतारने का दावा ठोंकना है. किस तरह से उसे एक बार फिर से हासिल करने की योजना बनानी है, उसका खाका इस घोषणा पत्र खींचा गया.

सफाई कर्मचारी घोषणा पत्र 2019 की खास बातें

पिछले 72 सालों में किसी भी सरकारे ने सफाई कर्मचारियों की सीवर में हो रही उनकी मौतों को रोकने के लिए किसी भी दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए. ऐसे में सफाईकर्मियों की सबसे प्रमुख मांग है कि सीवर में मौतों को रोकने के लिए और मैला प्रथा से मुक्ति एवं पुनर्वास के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए. इसके अलावा सफाईकर्मियों की मुक्ति एवं पुनर्वास की स्थिति और सीवर में मौतों को रोकने के लिए उठाए गए कदमों पर सरकार श्र्वेतपत्र जारी करे.

manifesto of cleaning workers
सफाई कर्मचारियों का मैनिफेस्टो | ट्विटर

सफाई कर्मचारियों को इस बात का भी इल्म है कि किसी सरकार ने उनके समुदायों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. उनके स्वास्थ और शिक्षा को लेकर किसी भी तरह का कोई योजना को क्रियान्वित नहीं किया. इसलिए उनकी मांग है कि जीवन के अधिकार के तहत, देश के सभी सफाई कर्मचारियों और उनके आश्रितों के लिए ‘आरएल 21 (राइट टू लाइफ)’ कार्ड जारी किया जाए. इसके जरिए संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत निःशुल्क शिक्षा, हेल्थकेयर, गरिमामय रोजगार एवं आजीविका एवं अन्य सुविधाएं और स्कीमों तक पहुंच सुनिश्चित की जाए.

इसके अलावा सेनिटेशन से ठेकेदारी प्रथा को तुरंत खत्म किया जाए और सीवर में होने वाली मौतों का मुआवजा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 1 करोड़ किया जाए.

अपने शिक्षा के अधिकार को लेकर सजग सफाईकर्मियों ने मांग रखी है कि देश में 13, 150 आईटीआई (इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट) हैं. हर एक में सफाई कर्मचारियों के लिए अलग से सेक्शन खोले जाएं, जिसमें वो अपने पसंद के कोर्स में मुफ्त में दाखिला ले सकें. सफाई कर्मचारियों के आवासीय क्षेत्र में स्टैंडर्ड और क्वालिटी कोचिंग सेंटर खोले जाएं, जहां समुदाय के बच्चों का मुफ्त में दाखिला व पढ़ाई हो.

घोषणा पत्र बनाने की जरूरत क्यों पड़ी

अगर सफाई आंदोलनों से जुड़े लोगों की मानें तो मैनुअल स्कैवेंजिंग को प्रतिबंधित कराने के लिए दो कानून पारित किए गए. पहला 1993 में और दूसरा 2013 में जो कि सफाई कर्मचारियों के पुनर्वास के लिए उनके सर्वे की बात करता है. वहीं मैला प्रथा को अनुसूचित जाति/ जनजाति अत्याचार के तहत अत्याचार घोषित किया गया है. लेकिन इन कानूनों एवं कल्याणकारी स्कीमों के बावजूद इस समुदाय के लोगों को शुष्क शौचालय साफ करने और सीवर टैंकों को साफ करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

सफाई कर्मचारी आंदोलन से लंबे समय से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता और इस कार्यक्रम के संयोजनकर्ता बेजवाड़ा विल्सन से जब हमने पूछा कि घोषणा पत्र की जरूरत क्यों पड़ी तो वे बताते हैं, ‘किसी भी सरकार ने सदियों से चली आ रही सफाईकर्मियों की अपेक्षाओं को गंभीरता से नहीं लिया है. चुनाव के समय में जहां लोग अन्य मुद्दों पर बात कर रहे हैं वहीं सफाईकर्मियों के मुद्दों की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा. ऐसे में हम इस घोषणा पत्र के जरिए लोगों का ध्यान लंबे समय से चली आ रही अपने मांगों की तरफ आकर्षित कराना चाहते हैं.’

मोदी के कार्यकाल में क्या स्थिति सुधरी

2014 में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद स्वचछता अभियान चलाया था. उससे देशवासियों के साथ सफाईकर्मियों को भी उम्मीद जगी थी कि उनका कुछ भला होने जा रहा है. लेकिन अब पांच साल बीत जाने के बाद सफाईकर्मियों की स्थिति में कोई सुधार आया.

इस पर बेजवाड़ा कहते हैं, ‘बिल्कुल नहीं. पिछले पांच सालों में तो सफाईकर्मियों की हालत और बदतर हो गई है. आप आंकड़ें देख लीजिए. 2019 में जनवरी से मार्च तक सीवर में 31 मौतें हो चुकी हैं. लेकिन सरकार जरा सा भी गंभीर नहीं दिखाई दे रही है.’

तो किस पार्टी से उम्मीद की जाए

लोकसभा चुनाव कुछ दिनों में शुरू होने वाले हैं और सफाईकर्मियों में भी इस बात को लेकर चर्चा चल रही है कि इस बार किस पार्टी को वोट दिया जाए. इंदौर से आए सफाईकर्मी महेश की मानें तो, जो पार्टी हमें केवल रोजगार देने के वादे करेगी, हम उसको अपना वोट नहीं देंगे. हम उसी पार्टी को अपना मत देंगे जो पहले हमें समाज में सम्मान के साथ जीने के अधिकार देने की बात करे.’

अब यह देखने वाली बात होगी कि सफाई कर्मचारियों द्वारा जारी किए गए घोषणा पत्र को कौन सी पार्टी गंभीरता से लेती है. यही नहीं इस बार के लोकसभा चुनाव में सफाईकर्मी किस पार्टी को अपना वोट देंगे, यह भी 23 मई को पता चलेगा.

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