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Sunday, 3 November, 2024
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मोदी को मिली क्लीन चिट के ख़िलाफ़ अशोक लवासा, चुनाव आयोग में भारी मतभेद

चुनाव आयोग द्वारा लिए गए चार फैसलों से चुनाव आयुक्त लवासा इत्तेफाक नहीं रखते. इनमें से तीन फैसले पीएम मोदी और एक फैसला भाजपा अध्यक्ष शाह से जुड़ा हुआ है.

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नई दिल्ली: जिस तरह से इस बार का लोकसभा चुनाव कड़वाहट से भरा और फूट डालने वाला हो चला है उसका असर चुनाव आयोग पर भी देखने को मिल रहा है. इसकी वजह से आयोग के तीन कमिश्नरों में फूट पड़ गई है. दिप्रिंट को पता चला है कि तीनों में से चुनाव आयुक्त अशोक लवासा चुनाव आयोग द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ की गई पांच शिकायतों पर दिए गए फैसलों में तीन के ख़िलाफ़ हैं.

1980 बैच के रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर लवासा को मोदी सरकार ने 2018 चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था. उनके बारे में पता चला है कि चुनाव आयोग द्वारा लिए गए चार फैसलों से चुनाव आयुक्त लवासा इत्तेफाक नहीं रखते. इनमें से एक फैसला भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से जुड़ा हुआ है. बाकी के तीन फैसलों में मोदी को आचार संहिता के मामले में दोषमुक्त बताया गया है.

उदाहरण के लिए, पीएम के ख़िलाफ़ एक मामले में शिकायत दर्ज़ करवाई गई थी. मामले उनके एक बयान से जुड़ा था जिसमें उन्होंने पहली बार के वोटरों को अपना वोट बालाकोट एयरस्ट्राइक से जुड़े जवानों के नाम देने की अपील की थी. इसमें चुनाव आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि पीएम ने सीधे तौर पर अपनी पार्टी के लिए वोट नहीं मांगे थे.

हालांकि, इस मामले में लवासा बाकी के दो आयुक्त से अलग राय रखते हैं. बाकी के दो आयुक्तों में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा और चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा का नाम शामिल है. लवासा को लगता है कि असल में प्रधानमंत्री ने चुनाव प्रचार के दौरान सेना के नाम का इस्तेमाल किया जो कि चुनाव आयोग के उन दिशानिर्देशों का उल्लंघन है जिनमें नेताओं से ऐसा नहीं करने के लिए कहा जाता है.

2021 में अरोड़ा के रिटायर होने के बाद लवासा मुख्य चुनाव आयुक्त बनने वाले हैं. जब दिप्रिंट ने उनसे संपर्क साधने की कोशिश की तो उन्होंने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट का दख़्ल

चुनाव आयोग ने जब मोदी और शाह के ख़िलाफ़ की गई शिकायतों पर लगभग एक महीने तक कुछ नहीं किया तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे छह मई के पहले इन शिकायतों का निबटारा करने का आदेश दिया. इसके बाद चुनाव आयोग ने तुरंत कई शिकायतों का निबटारा कर दिया और दोनों नेताओं को हर मामले में क्लीन चिट दे किया.

चुनाव आयोग के मुताबिक पीएम ने तब भी आचार संहिता का उल्लंघन नहीं किया जब उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के वायनाड से लड़ने के फैसले पर निशाना साधा. इस दौरान पीएम ने कहा था, ‘वो (राहुल) माइक्रोस्कोप लेकर एक सुरक्षित सीट खोजने निकले और एक ऐसी सीट चुनी जहां बहुसंख्यक अल्पसंख्यक हैं.’

उन्होंने पहली बार के वोटरों से बालाकोट के बारे में बोलकर भी आचार संहिंता का उल्लंघन नहीं किया और चुनाव आयोग को पीएम के उस बयान से भी कोई आपत्ति नहीं थी जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ देश के परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की बात कही थी. और अंतत: इसे उस बयान में भी कुछ ग़लत नज़र नहीं आया जिसमें कहा गया था ‘नए भारत ने पाकिस्तान को करारा जवाब दिया’- आलोचकों का मानना था कि ये बालाकोट हमले का राजनीतिकरण है.

आयोग ने शाह को भी उस मामले में क्लीनचिट दे दी जिसमें उन्होंने वायनाड लोकसभा सीट को पाकिस्तान से जोड़ दिया था.

‘बकवास बर्दाश्त नहीं करने वाले अधिकारी’

हरियाणा कैडर के अधिकारी लवासा इसके पहले नागरिक उड्डयन और पर्यावरण मंत्रालय में सचिव के तौर पर अपनी सेवा दे चुके हैं. रिन्यूएबल एनर्जी और पावर मंत्रालय में वो अलग-अलग क्षमताओं में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. 2017 में वो वित्त सचिव के तौर पर रिटायर हुए थे.

हरियाणा में लवासा को एक ईमानदार और गैर-विवादित अधिकारी माना जाता है. उन्हें इस बात का भी श्रेय दिया जाता है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा जब सीएम थे तो लवासा भारी निवेश लेकर आए.

एक जूनियर आईएएस साथी ने याद कर कहा, ‘लवासा सिविल सेवा के अधिकारियों की बीते दौर की श्रेणी में है. वो बकवास बर्दाश्त करने वालों में से नहीं है.’

चुनाव आयोग एक्ट 1991 के सेक्शन 10 के मुताबिक (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और काम करने के तरीके) चुनाव आयोग के सारे काम ‘जहां तक हो सके एक मत से किए जाने चाहिए.’

प्रावधान में आगे कहा गया है कि अगर ‘मुख्य चुनाव आयुक्त और बाकी के चुनाव आयुक्तों के बीच किसी मामले पर वैचारिक मतभेद है तो ऐसे मामलों को बहुमत से निष्कर्ष तक पहुंचाया जाना चाहिए.’

राजीव गांधी बनाम चुनाव आयोग

1950 से अपने अस्तित्व में आने के बाद से अक्टूबर 1989 तक चुनाव आयोग एक सदस्यीय संस्था थी. 1989 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसे बहुसदस्यीय संस्था में तब्दील कर दिया. ऐसा करके वो उस समय के मुख्य चुनाव आयुक्त आरवीएस पेरी शास्त्री के पर कतरना चाहते थे.

वीपी सिंह की वापसी के बाद इसे फिर से एक सदस्यीय बना दिया गया. वीपी सिंह, राजीव गांधी के बाद पीएम बने थे. उन्होंने 1990 में दो आयुक्तों को हटा दिया. सिंह के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया. फैसला तब पलटा गया जब हटाए गए आयुक्तों में से एक एसएस धनोआ ने नेशनल फ्रंट की सरकार के इस फैसले को चुनौती दी.

अक्टूबर 1993 से चुनाव आयोग एक तीन सदस्यीय संस्था के तौर पर काम करता आया है. तीनों सदस्यों के पास बराबर की ताकत होती है और मुख्य चुनाव आयुक्त को बाकियों से कोई अलग ताकत नहीं दी गई है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

चंडीगढ़ से चितलीन सिंह द्वारा दी गई जानकारी भी इसमें शामिल है

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