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Saturday, 21 December, 2024
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आज़म खान बनाम जयाप्रदा, उत्तर प्रदेश में गुरू-चेली की इस चुनावी जंग पर सबकी है नज़र

कभी आज़म खान को जयाप्रदा का गुरू माना जाता था लेकिन 2009 लोकसभा चुनाव से पहले जयाप्रदा के बीच मतभेद पैदा हो गए.

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रामपुर: उत्तर प्रदेश में यूं तो सभी दलों की हर सीट पर निगाह है लेकिन रामपुर की सीट फिलहाल सबसे ज़्यादा चर्चा का विषय है. इसका कारण है कि यहां मुकाबला दो ऐसे धुर विरोधियों में है जो कभी एक दूसरे के करीबी माने जाते थे. यहां तक की आज़म खान को जयाप्रदा का गुरू भी कहा जाता था लेकिन वक्त ऐसा बदला कि आज दोनों एक दूसरे से चुनाव लड़ाई लड़ने जा रहे हैं. समाजवादी पार्टी ने आज़म खान तो वहीं बीजेपी ने जयाप्रदा को टिकट दिया है लेकिन इसी बीच कांग्रेस ने राष्ट्रीय सचिव संजय कपूर को टिकट दे दिया है.

जया को अमर सिंह का समर्थन

सियासी गलियारों में ये किसी से छुपा नहीं कि जयाप्रदा को राज्यसभा सांसद अमर सिंह का बैकअप है. यहां तक की टिकट दिलाने में भी अहम भूमिका रही है. वहीं आज़म खान को चुनाव लड़ाने का फैसला सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने किया है. रामपुर के लोग बताते हैं कि आजम की खान की मदद से पहली बार साल 2004 में रामपुर से जयाप्रदा सांसद बनी थीं. अब मुकाबला आज़म खान से ही है.

आज़म को रामपुर की सियासत का केंद्र माना जाता रहा है. वह यहां से 9 बार के विधायक हैं जबकि जयाप्रदा पिछले 5 वर्षों से सक्रिय राजनीति से दूर हैं. मुस्लिम बहुल इस सीट पर कांग्रेस पार्टी ने जयाप्रदा की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं. कांग्रेस ने यहां पर बेगम नूरबानो जैसी दिग्‍गज नेता की जगह पर संजय कपूर को टिकट दिया है. इससे हिंदू वोटों का बंटवारा हो सकता है. संजय 2014 में पीलीभीत से चुनाव लड़ चुके हैं.

यूं ही नहीं बनाया जया प्रदा को प्रत्याशी

रामपुर में आज़म खान बनाम जयाप्रदा के मुकाबले की चर्चा कई महीनों से थी. पिछले आम चुनाव में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले डॉक्‍टर नेपाल सिंह ने खराब सेहत का हवाला देकर चुनाव लड़ने से मना कर दिया था. वह अपने बेटे सौरभ पाल को टिकट दिलवाना चाहते थे लेकिन बीजेपी को उनकी जीत पर भरोसा नहीं था. बीजेपी को तलाश एक ऐसे प्रत्‍याशी जो आज़म खान जैसे कद्दावर नेता को चुनौती दे सके.आज़म की काट के लिए बीजेपी ने जयाप्रदा को चुना. सूत्रों की मानें तो इससे पहले बीजेपी ने स्‍थानीय स्‍तर पर सर्वे भी कराया जिसमें यह सामने आया कि आज़म के इस किले को केवल जयाप्रदा ही ढहा सकती हैं.

2009 से पहले खराब हुए आज़म – जया के संबंध

कभी आज़म खान को जयाप्रदा का गुरू माना जाता था लेकिन 2009 लोकसभा चुनाव से पहले जयाप्रदा के बीच मतभेद पैदा हो गए. इस बीच जयाप्रदा के समर्थन में उस समय मुलायम सिंह के बेहद करीबी रहे अमर सिंह आ गए. आज़म के विरोध के बाद भी अमर सिंह के कहने पर जयाप्रदा को दोबारा रामपुर से टिकट मिला. आज़म के विरोध के बाद भी जयाप्रदा ने बीजेपी के वरिष्‍ठ नेता मुख्‍तार अब्‍बास नकवी को मात दी. इसके बाद आज़म और अमर सिंह के बीच तल्‍खी बहुत ज़्यादा बढ़ गई जो आजतक बरकरार है. वहीं दूसरी ओर पार्टी व परिवार में मचे बवाल के बाच अखिलेश के भी अमर सिंह से संबंध खराब हो गए. अमर सिंह ने अखिलेश के खिलाफ कई बयान भी दिए.

क्या हैं सियासी समीकरण

रामपुर लोकसभा सीट को मुस्लिम बहुल्य माना जाता है. यहां की कुल आबादी 23,35,819 है. इसमें हिंदू 10,73,890 (45.97%) और मुस्लिम 11,81,337 (50.57%) हैं. हिंदू आबादी में भी 13.18 आबादी अनुसूचित जाति की है. एससी वोटर परंपरागत रूप से मायावती के साथ रहा है. साल 2014 के आंकड़ों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि एसपी-बीएसपी के महागठबंधन और कांग्रेस के हिंदू प्रत्‍याशी उतार देने के बाद जयाप्रदा के लिए आज़म खान की चुनौती से पार पाना आसान नहीं होगा.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेपाल सिंह को 3,58,616 वोट, एसपी के नसीर अहमद को 3,35,181 वोट, कांग्रेस के नवाब काजिम अली खान को 1,56,466 वोट और बीएसपी के अकबर हुसैन को 81,006 वोट मिले थे. इस तरह से अगर एसपी और बीएसपी के वोट मिला दिए जाएं तो आज़म आसानी से जीत सकते हैं लेकिन जयप्रदा भी उलटफेर में माहिर हैं और ‘मोदी फैक्टर’ भी अहम है. हालांकि कांग्रेस ने हिंदू उम्मीदवार उतारकर जयाप्रदा की राह मुश्किल कर दी है.

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