वाराणसीः आमतौर पर कैमरे की नजर से जिस बनारस को दिखाया जाता है उसमें खूबसूरत घाट, भव्य मंदिर और श्रद्धालुओं की भीड़ होती है. लेकिन बनारस के अंदर ही एक बनारस और रहता है जो मंदिर और घाट जाता है लेकिन उसको फिक्र अपने क्षेत्र की भी है. उसके अपने मुद्दे हैं जो चुनाव में भी वीवीआईपी सीट की चकाचौंध में दब जाते हैं. ऐसे ही कई अहम मुद्दे हमने यहां की जनता से समझे-
चांदपुर के मूर्तिकारों के हैं अपने मुद्दे
मिर्जापुर से वाराणसी की ओर जाते वक्त शहर में घुसने से पहले चांदपुर गांव पड़ता है जहां तमाम मूर्तिकार रहते हैं. इन मूर्तिकारों को अपना व्यापार करने के लिए जमीन देने की बात कही गई थी लेकिन अभी तक नहीं मिली. पिछले पांच साल से इनकी लड़ाई लड़ रही सुनीता देवी बताती हैं कि वह सिलसिले में जनता दरबार में गईं जहां सीएम योगी से उनकी मुलाकात भी हुई. डिप्टी सीएम केपी मौर्य से भी उनकी मुलाकात हुई लेकिन चांदपुर गांव के स्थिति नहीं सुधरी. इस गांव में पीने का पानी इतना गंदा है कि आए दिन बच्चे बीमार रहते हैं. कई बार प्रशासन को अवगत कराया गया लेकिन कोई हल नहीं निकला.
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बुनकरों को मिले केवल वादे
बजरडीहा, सरैयां, कोनिया अश्फाक नगर और लोहता की बस्तियां बुनकरों के लिए मशहूर हैं. इसकी जीती जागती मिसाल हैं. इन बस्तियों में बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं. बनारस में बुनकरों की तादात तकरीबन चार लाख के पार है. यहां बुनकर उद्योग तकरीबन एक हजार करोड़ से अधिक का है लेकिन इससे होने वाले फायदे में आम बुनकरों का हिस्सा बेहद मामूली है, इतना कि जिससे कि उन्हें अपना घर चलाना भी मुश्किल होता है. बुनकरों की भलाई के लिये काम करने वाले कारोबारी नदीम कहते हैं कि सरकारें बुनकरों की भलाई के लिये कहती हैं और योजनाएं भी बनाती हैं, पर उन पर अमल नहीं हो पाता. पैसे जारी होते हैं लेकिन बुनकरों तक नहीं पहुंच पाता है. इस सरकार ने भी तमाम वादे किए लेकिन पूरे नहीं किए गये.
जाम तो रोजाना ‘झाम’ हो गया है
बनारस के सुंदरपुर के रहने वाले गणेश शंकर बताते हैं कि शहर में जाम तो रोजाना का झाम हो गया है. कई बार ऐसा लगता है कि मानो निकलने का अब कोई रास्ता ही नहीं बचा हो, सड़क और गलियों में जाम से लोग जूझते रहते हैं. सुबह बनारस, शाम बनारस जब देखो तब जाम बनारस की स्थिति एक जैसी नजर आती है. चितईपुर में रोज लगने वाला जाम अब लोगों के लिए बड़ी परेशानी बन गया है. रोजाना ही यहां पर घंटों तक लगे जाम में वाहन रेंगते हैं और ट्रैफिक पुलिस को पता नहीं होता है.
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इन समस्याओं का नहीं निकला हल
सिगरा के रहने वाले संतोष गुप्ता ने बताया कि शहर की सबसे बड़ी समस्या तो जाम है. ये समस्या खत्म होने की बजाए बढ़ती ही जा रही है. आवारा पशुओं ने तो चलना और मुश्किल बना दिया है. रोजाना इस कारण से एक्सिडेंट हो रहे हैं. कुटीर उद्योग पनप नहीं पा रहे हैं तो नई इंडस्ट्री न आने से रोजगार का संकट बरकरार है.