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Saturday, 21 December, 2024
होम2019 लोकसभा चुनाववो अमित शाह ही हैं जिन्होंने अपनी 'नीति' से नरेंद्र मोदी को दूसरी बार पीएम की कुर्सी तक पहुंचाया

वो अमित शाह ही हैं जिन्होंने अपनी ‘नीति’ से नरेंद्र मोदी को दूसरी बार पीएम की कुर्सी तक पहुंचाया

56 वर्षीय पहली बार गांधी नगर से लोकसभा पहुंच रहे है. 2014 में महासचिव के रूप में अब राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर पीएम मोदी को जीत दिलवा कर इतिहास रचा है.

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नई दिल्ली: भाजपा की प्रचंड जीत और नरेंद्र मोदी को दुबारा प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाने में सबसे बड़ा श्रेय अमित शाह को जाता है. अमित शाह पांडवों के वो कृष्ण है जो ऐसा चक्रव्यूह रचता है कि उसमें आने वाला निकल नहीं पाता है बस फंसता ही जाता है और इसका सीधा-सीधा नजारा बंगाल में 2 से 18 तक पहुंची सीट और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के सफाए से भी देखा जा सकता है.

पीएम मोदी और शाह का साथ करीब दो दशके से भी अधिक पुराना है. बताते हैं कि दोनों 28 सालों से साथ हैं. शाह जानते हैं कि नरेंद्र दामोदर दास मोदी को क्या चाहिए, और कैसे चाहिए. उनका हर कदम इतना नपा तौला होता है और उनकी चालें ऐसी होती हैं कि राजनीति के शतरंज का बड़ा खिलाड़ी भी इसे समझ नहीं पाता है. और मात खा जाता है.

प्रचंड जीत के पीछे है शाह की तीन साल की मेहनत

पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और नॉर्थ ईस्ट में जिस तरह से भाजपा ने प्रचंड जीत हांसिल की है उसका पूरा श्रेय अमित शाह को जाता है. यही नहीं जिस तरह से राहुल गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कद्दावर नेताओं ने अपनी सीटें गंवाई हैं और बीजेपी के नेताओं ने इस पर जीत हांसिल की है उसमें उन नेताओं की मेहनत के साथ शाह के शातिर दिमाग का जोड़ घटाव गुणा-भाग भी शामिल है.

जीत के लिए शाह ने जिला स्तर पर तैयार किया वार रूम 

अमित शाह ने 2019 की जीत की कहानी 2016 में लिखनी शुरू की थी और वह देश के एक-एक वोटर तक पहुंचने के लिए चार सूत्री कार्यक्रम चलाया. जिसे वो चुनाव के आखिर- आखिर तक चलाते रहे यही नहीं उन्होंने एक 50:20 का एक ​फार्मूला भी तैयार किया. इस फॉर्मूले को अपनाते हुए उन्होंने देश के 20 प्रतिशत राज्य जहां 50 प्रतिशत सीटें हैं का चयन किया और यहां युद्ध स्तर पर एक-एक मतदाता के पास अपने कार्यकर्ता को पहुंचाया. इन राज्यों में सबसे बड़ा उत्तर प्रदेश की 80, गुजरात की 26, बिहार की 40, पश्चिम बंगाल में 42 और तमिलनाडु की 39 सीटों का चयन उन्होंने अपनी लिस्ट में पहले शामिल किया. 2014 में भाजपा ने पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में केवल 2-2 सीटें हासिल की थी.

इस बार भाजपा ने इन दोनों राज्यों के लिए एक नई रणनीति तैयार की. यही वजह थी कि पीएम मोदी और शाह के अलावा भाजपा के सारे स्टार नेता बंगाल में प्रचार करने बार-बार पहुंचे और 2- सीटों के आंकड़ें को 18 सीटों तक पहुंचाया. यूपी जैसे राज्य में पीएम मोदी की 29, पश्चिम बंगाल में 17, बिहार में 11, महाराष्ट्र में 9 रैलियां करवाई. वहीं अमित शाह ने ने 40 प्रतिशत से ज्यादा रैलियां यूपी,बंगाल में की. बंगाल में पूरे एक साल में शाह ने 75 से ज्यादा दिन गुजारे.

वहीं पंचायत स्तर पर भी भाजपा ने अपनी पैठ मजबूत कर ली है.

सहयोगी पार्टियों के साथ कभी नरम-कभी गरम

इस लोकसभा चुनावों में शाह  ने गठबंधन सहयोगियों के साथ नरम रुख अपनाया. महाराष्ट्र और बिहार में उन्होंने गठबंधन में समझौता ​भी किया. महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ सीट बंटवारे में अपनी सीट कम कर ज्यादा सीटें शिवसेना को दे दी. शाह यह बात जानते थे कि अगर गठबंधन नहीं होता है तो पार्टी को नुकसान उठाना पड़ जाएगा. इसके अलावा उन्होंने बिहार में भी अपने सहयोगियों के लिए 5 सीटें छोड़ी. शाह ने ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण राज्यों को पहले पायदान पर रखा.

8.5 करोड़ कार्यकर्ताओं से हासिल की प्रचंड जीत

अमित शाह ने जनवरी 2016 से ही प्रचार अभियान शुरू कर दिया था. पार्टी जो 120 सीटें 2014 में नहीं जीत पाई थी. उन पर अमित शाह ने 3 साल लगातार काम किया. शाह ने 10 लाख 35 हजार बूथ में से 8 लाख 65 हजार बूथ पांच साल में बनाए. सोशल मीडिया करोड़ों रुपए खर्च किए. तीन हजार फुलटाइम कार्यकर्ताओं ने दो साल तक विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों में काम किया.

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23 मई को भाजपा को मिली प्रचंड जीत के पीछे अमित शाह की रणनीति/ फोटो- मनीषा मोंडल-दिप्रिंट

अपना पूरा प्रचार नरेंद्र मोदी पर ही केंद्रित रखा. चौकीदार चोर के सामने मैं भी चौकीदार अभियान शुरू किया. वहीं पूरा ​प्रचार का पूरा केंद्र विकास की ओर मोड़ा. वहीं बूथों पर 90 लाख कार्यकर्ताओं को तैनात कर रणनीति तैयार की. इसके अलावा 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट शेयर पाने के लिए उन्होंने कमजोर स्थिति वाले आंध्र, असम, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों पर फोकस रखा. समय समय पर शाह कमल संदेश यात्रा, बाइक रैली, मेरा बूथ सबसे मजबूत जैसी  योजनाएं भी बनाईं. यही नहीं हर बूथ 10 यूथ कार्यक्रम में अपने हर कार्यकर्ता के हाथ में स्मार्ट फोन पहुंचाया. बाइक रैली का प्रतिनिधित्व खुद किया जबकि मेरा बूथ सबसे मजबूत के तहत पीएम समय समय पर नमो एप के जरिए कार्यकर्ताओं से जिला स्तर पर बात करते रहे.

कई वरिष्ठ नेताओं के टिकट काटे, लेकिन रात- रात भर किया काम 

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने तीन वर्षों तक देशभर में सर्वेक्षण कराकर सांसदों का फीडबैक लिया. इसमें तय किया गया कि 75 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं को पार्टी चुनावी मैदान में नहीं उतारेगी और टिकट नहीं देगी. इसके लिए शाह और मोदी दोनों को पार्टी के भीतर और बाहर काफी आलोचना का भी सामना करना पड़ा, इनमें कई वरिष्ठ नेता जैसे लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुमित्रा महाजन शामिल हैं जिनका टिकट काट दिया गया.

शाह ने इस बार 120 सांसदों के टिकट काटे,उनकी जगह 100 नए सांसदों को शामिल भी किया और उनकी जीत की ईबारत भी लिखी. बता दें कि छत्तीसगढ़ में सभी सांसदों का​ टिकट काट दिया. चुनावों में प्रचंड जीत हासिल करने के लिए शाह ने हर स्तर पर विशेषज्ञों से राय ली. वह प्रतिक्रिया के लिए कॉल सेंटरों से पूछ-ताछ की और हर राज्य में अपना सर्वे तक करवाया.

अमित शाह के ऊपर सार्वजनिक जीवन में बहुत आरोप लगते रहे हैं, लेकिन वे निजी जीवन में बेहद सात्विक है.वे सुबह 5 बजे उठते है और 8 बजे से काम पर जुट जाते है. देर रात वे काम में लगे रहते है. वह किसी राजनीतिक दल के पहले ऐसे अध्यक्ष हैं जो अपने कार्यकाल में पूरे भारत का तीन बार दौरा कर चुके हैं.

वह शाह ही हैं जिन्होंने एक रैली के दौरान कहा था, ‘अगर बीजेपी को मेरे जीवन से निकाल लिया जाए तो सिर्फ़ ज़ीरो ही बचेगा. मैंने जो कुछ भी सीखा और देश को दिया है सब बीजेपी का ही है.’

शाह ने कार्यकर्ताओं और समर्थकों के भारी जमावड़े में जोश भरने के लिए पार्टी को अपने आप से ऊपर भी बताया था.

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