चेन्नईः राजनीतिक दलों के अपने घोषणा पत्र में शिक्षा ऋणों को माफ करने के आश्वासन को अवांछनीय करार देते हुए एक शीर्ष बैंकिंग निकाय ने चुनाव आयोग से आग्रह किया है कि वे चुनाव उम्मीदवारों से एक वचन पत्र लें, जिसमें यह कहा गया हो कि वे बैंक के बकाएदार (कर्ज न चुकाने वाले) नहीं हैं. अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) के एक शीर्ष अधिकारी ने चुनाव आयोग से यह सूचना जारी करने को कहा है कि बैंक कर्जदार आगामी चुनाव में लड़ने के लिए अयोग्य हैं.
एआईबीईए ने यह भी कहा कि कर्ज बकाएदारों को कोई भी सरकारी पद रखने के लिए अयोग्य बनाया जाना चाहिए. संघ ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर करने की योजना बनाई है, जिसके तहत यह घोषित किया जाए कि सभी सार्वजनिक क्षेत्र की पदोन्नत कंपनियों के लिए नौकरी में आरक्षण नियम लागू होंगे.
एआईबीईए के महासचिव सीएच वेंकटाचलम ने सोमवार को आईएएनएस को बताया, ‘किसी भी प्रकार की कर्जमाफी अवांछनीय है, क्योंकि यह उधारकर्ताओं को एक गलत संकेत देगी.’ उन्होंने कहा, ‘लेकिन जब अर्थव्यवस्था अच्छा नहीं कर रही हो और कॉर्पोरेट ऋणों को नया रूप दिया गया हो तो शिक्षा ऋणों को भी नया रूप दिया जाना चाहिए. अगर उधारकर्ता नौकरी पाने में सक्षम नहीं है तो.’
सीएच वेंकटाचलम ने कहा, ‘जब कॉर्पोरेट ऋणों को नया रूप दिया जा सकता है तो वैसा ही छात्र उधारकर्ताओं के साथ भी किया जा सकता है.’ अन्नाद्रमुक और द्रमुक जैसे राजनीतिक दलों ने वादा किया है कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो वे शिक्षा ऋणों को माफ कर देंगे.
वेंकटाचलम ने कहा कि 31 मार्च, 2018 तक करीब 895,600 करोड़ रुपये का कर्ज लोग नहीं चुका पाए हैं. उन्होंने कहा कि संघ बैंक ऋण बकाएदारों के नाम प्रकाशित करने और उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग कर रहा है, लेकिन इसका अभी तक कोई फायदा नहीं हुआ है.