scorecardresearch
Wednesday, 6 November, 2024
होमदेशकोरोना काल में बस्तर के आदिवासियों को बचा रही है उनकी सोशल डिस्टेंसिंग की संस्कृति

कोरोना काल में बस्तर के आदिवासियों को बचा रही है उनकी सोशल डिस्टेंसिंग की संस्कृति

बस्तर के आदिवासियों की जीवन शैली में है सोशल डिस्टेंसिंग, उनके घरों का बाउंड्रीवाल बहुंत ऊंची होती है, वे हफ्ते में एक ही बार बाजार जाते हैं और वो झुंड बनाकर नहीं लाइन में अलग-अलग चलते हैं.

Text Size:

रायपुर: कोरोनासंक्रमण जहां दुनिया के हर कोने में पहुंचकर लोगों को अपना शिकार बनाने में लगा है वहीं छत्तीसगढ़ में बस्तर के आदिवासियों न खुद को कोविड-19 संक्रमण से बचा रखा है. यह स्थिति ऐसे समय में है जब राज्य में करीब 59 कोरोना पॉजिटिव मरीज मिल चुके हैं. स्थानीय शासकीय अधिकारी और आदिवासी नेताओं की मानें तो करीब 35 लाख जनसंख्या वाले इस क्षेत्र में एक भी कोविड-19 पॉजिटिव केस नहीं मिलने के मुख्यतः दो कारण हैं. एक तो आदिवासियों की परंपरागत जीवन शैली और दूसरा सरकार द्वारा उनको सोशल डिस्टेनसिंग के प्रति संवेदनशील बनाना.

बस्तर और यहां के अदिवासियों के विषय में जानकारी रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि सोशल डिस्टेनसिंग आदिवासियों का एक स्वाभाविक जीवन है. यही कारण है कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में इसके महत्व के विषय में उन्हें ज्यादा समझाने की जरूरत नही पड़ी. यही नहीं बस्तर के ग्रामीण आदिवासियों ने अपने गांव की सीमा को स्वयं ही बाहरी व्यक्तियों ले लिए बंद कर लिया था.


यह भी पढ़ें: कोरोना के 14 नए मामले सामने आने से छत्तीसगढ़ सरकार आशंकित, महानगरों से आने वाले 40 प्रतिशत श्रमिक हो सकते हैं पॉजिटिव


स्थानीय लोगों का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान आदिवासियों ने बाहरी व्यक्तियों को अपने गांव में प्रवेश करने से सिर्फ रोका ही नही है बल्कि जो ग्रामीण बाहर से लौटकर चोरी छुपे घरों के अंदर घुसने का प्रयास कर रहे थे उनको स्थानीय स्वास्थ्य कर्मी और पुलिस के हवाले कर क्वारेंटाइन में जाने ले लिए मजबूर भी किया.

आदिवासियों की जीवनशैली है सोशल डिस्टेंसिंग

आदिवासियों की जीवन शैली कैसे स्वयं में एक सोशल डिस्टेनसिंग का प्रारूप है जगदलपुर के रहने वाले मानव वैज्ञानिक राजेन्द्र सिंह बताते हैं, ‘बस्तर के आदिवासी वैसे तो अपना घर मिट्टी का बनाते हैं लेकिन उनकी बाउंड्री वाल इतनी बड़ी रहती है की पड़ोसियों से दूरी हमेशा के लिए बनी रहती है जो की शहरी क्षेत्रों के विपरीत है.’

वह आगे बताते हैं, ‘इसी तरह ग्रामीण आदिवासी शहरी लोगों की अपेक्षा ग्रुप में बहुत कम चलते हैं लेकिन जो चलते है वे हमेशा दूरी बनाते हैं और सीधी लाइन में एक दूसरे से पीछे चलते हैं. काम के समय भी बस्तर के आदिवसी स्वाभाविक तौर पर समाजिक दूरी बनाये रखते हैं.’

सिंह बताते हैं, ‘बस्तर के आदिवासी बाजार भी हमेशा न जाकर हफ्ते में एक बार जाते हैं. यही कारण है की आदिवासी आम जनता के संपर्क में भी नही आते.’

सरकार ने सिर्फ बीमारी बताई, समझ गए आदिवासी

सिंह जो स्वयं भी आदिवासियों के बीच ही कई वर्षों से काम करते आ रहे हैं. वह कहते हैं, ‘ सोशल डिस्टेनसिंग और लॉकडाउन बस्तर क्षेत्र के मामले में राज्य सरकार और सरकारी कर्मचारियों का सिर्फ इतना काम था कि उन्हें आम आदिवासी को कोविड-19 संक्रमण विरोधी जानकारी उनकी भाषा और बोली में ही समझाना था और बाकी सबकुछ ग्रामीणों ने स्वयं संभाल लिया. कई गांवों में ग्रामीणों ने स्वयं ही अपने गांव के सीमा में बैरियर बनाकर बाहरी व्यक्तियों को अंदर आने से रोक दिया है.’


यह भी पढ़ें: ‘लॉकडाउन में अब घर ना जाते तो भूख से मर जाते’- छत्तीसगढ़ से साइकिल से घर चले प्रवासी मजदूर


प्रदेश में आदिवासियों के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम कहतें है, ‘सामाजिक दूरी आदिवासी जनता के आम जीवन का हिस्सा है. यह अतिशियोक्ति नही होगी कि कोरोना जैसी बीमारियों के खिलाफ लड़ाई आदिवासी जनता की सामाजिक दूरी वाली जीवन शैली से ही लड़ी जा सकती है. दुनिया को आदिवासियों से सीखना चाहिए.’

सिंह की बात पर मुहर लगाते हुए बस्तर के पुलिस महानीरिक्षक सुंदरराज पी कहते हैं, ‘ट्राइबल जनता सामाजिक दूरी का वैज्ञानिक पहलू नही समझती हैं लेकिन उन्हें सामाजिक दूरी पूरी तरह से समझ में आती है. यही कारण है कि वे अपने साथियों से आम जीवन में भी दूरी बनाये रखते हैं.

नक्सली कोई मदद नहीं कर रहे हैं

पुलिस अधिकारियों ने कुछ मीडिया में आ रही रिपोर्टों का खंडन किया कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किए गए लॉकडाउन और कोविड विरोधी उपायों को माओवादियों का समर्थन मिला हुआ है.

अधिकारियों का कहना है कि नक्सली इसलिए शांत हैं क्योंकि उनकी सप्लाई इनदिनों बंद हैं.

आईजी सुंदरराज ने कहा,’ यह कहना गलत है कि सीपीआई-नकसली ने सरकार के प्रयासों का समर्थन किया है ताकि सामाजिक दूरियों के मानदंडों पर सख्ती से पालन हो सके.’ इसके विपरीत, उन्होंने क्षेत्र में कुछ स्थानों पर लॉकडाउन का लाभ उठाने की कोशिश की, और सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया है.’

आईजी आगे कहते हैं, ‘हमें उम्मीद नहीं थी कि नक्सली सुरक्षाबलों पर हमला नहीं करेंगे, लेकिन हमें यह जरूर लगा था कि वे लोगों के प्रति अपना रवैया अच्छा रखेंगे. लेकिन उन्होंने ऐसा भी नहीं किया है.’

share & View comments