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Sunday, 19 October, 2025
होमविदेशलोडेड बंदूक के साथ ज़रदारी 2011 में पाकिस्तान सेना से ‘अंतिम टकराव’ को थे तैयार, सहयोगी का खुलासा

लोडेड बंदूक के साथ ज़रदारी 2011 में पाकिस्तान सेना से ‘अंतिम टकराव’ को थे तैयार, सहयोगी का खुलासा

आसिफ अली ज़रदारी के पूर्व प्रवक्ता फरहतुल्लाह बाबर ने अपनी किताब ‘द ज़रदारी प्रेसिडेंसी (2008-2013)’ में उस दौर के घटनाक्रम उजागर किए हैं, जब पाकिस्तान में सैन्य तख्तापलट की आशंका गहराई हुई थी.

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नई दिल्ली: अपने जनरलों द्वारा तख्तापलट की आशंका से डरे, गंभीर रूप से बीमार पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने मेडिकल इवैक्युएशन फ्लाइट पर सवार होते वक्त खुद को एक लोडेड बंदूक से लैस कर लिया था. यह खुलासा उनके पूर्व प्रवक्ता और वरिष्ठ पाकिस्तानी नेता फरहतुल्लाह बाबर ने अपनी किताब ‘द ज़रदारी प्रेसिडेंसी (2008-2013): नाउ इट मस्ट बी टोल्ड’ में किया है, जो पिछले महीने प्रकाशित हुई.

ज़रदारी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए उस समय के अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत हुसैन हक्कानी को भी साथ ले जाने पर जोर दिया, जबकि कोर्ट ने हक्कानी को देश छोड़ने से रोका हुआ था.

बाबर की किताब में खुलासा हुआ है कि राष्ट्रपति ज़रदारी को अपनी जान का खतरा महसूस हो रहा था. दरअसल, हक्कानी पर आरोप था कि उन्होंने अमेरिका से पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था में बड़े बदलावों के लिए समर्थन मांगा था, ताकि राजनीति में सेना की भूमिका खत्म की जा सके.

यह नाटकीय घटनाक्रम 2011 के आखिर में राष्ट्रपति भवन के हेलीपैड पर हुआ था.

बाबर के मुताबिक, ज़रदारी लगातार शिकायत कर रहे थे कि उन्हें “बदनाम किया गया और उनके साथ अन्याय हुआ.” उन्होंने कहा, “मुझ पर धरती के हर गुनाह का आरोप लगाया गया — यहां तक कि अपने साले की हत्या का भी; मुझ पर किसी की टांग पर बम बांधकर फिरौती मांगने का भी इल्ज़ाम लगा.”

भावनात्मक रूप से टूटे ज़रदारी को इस भाषण के बीच अचानक मेडिकल इमरजेंसी का सामना करना पड़ा. बाबर लिखते हैं, “हर शब्द उनके मुंह से निकलने के लिए जूझ रहा था. फिर अचानक हकलाना बंद हुआ और उनका चेहरा सफेद पड़ गया. उनका सिर दाईं ओर झुक गया और वे सोफे पर गिर पड़े.”

राष्ट्रपति के एक स्टाफ ने उन्हें तुरंत दवाइयां दीं और उनके पसीने से भीगे मोज़े उतारे. ज़रदारी को होश आ गया और उन्हें बेडरूम में ले जाया गया, लेकिन साफ था कि अस्पताल ले जाना ज़रूरी था.

डॉक्टरों ने उन्हें आर्मी के कार्डियोलॉजी इंस्टीट्यूट या मिलिट्री अस्पताल ले जाने की सलाह दी, लेकिन ज़रदारी ने फौरन इंकार कर दिया. रियल एस्टेट कारोबारी और उनके करीबी मलिक रियाज़ भी पहुंचे और सेना के अस्पताल न जाने की सलाह दी.

इसी दौरान आर्मी चीफ जनरल अशफ़ाक परवेज़ कयानी का फोन आया. ज़रदारी के साथियों को आशंका थी कि अगर राष्ट्रपति की बिगड़ी हालत की रिकॉर्डिंग की गई तो बाद में उसे राष्ट्रपति को अयोग्य ठहराने में इस्तेमाल किया जा सकता है. बाबर ने लिखा, “भरोसा टूट चुका था.”

अगली सुबह, 6 दिसंबर 2011 को ज़रदारी के बेटे बिलावल भुट्टो ज़रदारी (जो बाद में विदेश मंत्री बने) और उनकी बुआ अज़रा फ़ज़ल पेचोहो उनसे मिलने पहुंचे. बिलावल ने पिता को हेलिकॉप्टर से कराची के निजी अस्पताल ले जाने और ज़रूरत पड़ने पर दुबई भेजने की मांग की, लेकिन ज़रदारी के करीबी लोग इस बात से चिंतित थे कि अगर वे देश छोड़ते हैं तो क्या होगा. किताब में बाबर ने लिखा, “फुसफुसाहटों में साजिशों की कहानियां तैरने लगीं”, “कहा जा रहा था कि हक्कानी जल्द ही पलटी मार देंगे और सरकारी गवाह बन जाएंगे.”

‘मुझे पता है वो आख़िरी सांस तक लड़ेंगे’

मई 2011 में ओसामा बिन लादेन के एबटाबाद में मारे जाने के बाद, हक्कानी पर आरोप था कि उन्होंने अमेरिकी जनरल माइक मुलन को एक मेमो भेजा था, जिसमें पाकिस्तानी सेना पर नागरिक नियंत्रण स्थापित करने और ISI के सेक्शन S को खत्म करने की बात कही गई थी, जो तालिबान और अल-कायदा से जुड़ा था.

यह मेमो पाकिस्तानी-अमेरिकी कारोबारी मंसूर इजाज़ ने लीक किया था, जिसने दावा किया कि हक्कानी ने अमेरिका में अपने संदेश पहुंचाने के लिए उसे इस्तेमाल किया.

हक्कानी को गवाह बनाए जाने के डर से ज़रदारी ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में ही ठहराया था. अब उन्होंने हक्कानी को अपने साथ कराची और फिर दुबई ले जाने पर जोर दिया.

लेकिन प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी और हक्कानी ने इसका विरोध किया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने हक्कानी के देश छोड़ने पर रोक लगाई थी. गिलानी ने कहा कि उनके जाने की खबर आते ही यह सुर्खियां बनेंगी कि राष्ट्रपति और राजदूत भाग गए.

रियाज़ को सैन्य सूत्रों से पता चला कि हक्कानी को ले जाने वाले किसी भी विमान को पाकिस्तान की सीमा पार करने की इजाज़त नहीं दी जाएगी.

इसके बाद ज़रदारी और हक्कानी राष्ट्रपति भवन के हेलीपैड पर खड़े दो हेलिकॉप्टरों में से एक में सवार हुए. तभी सूचना आई कि रावलपिंडी के नूर खान एयरबेस से एयर एम्बुलेंस को उड़ान की इजाज़त नहीं दी गई है.

इसी बीच राष्ट्रपति के निजी डॉक्टर ने हेलिकॉप्टर में सवार होने से इनकार कर दिया: “मुझे पता है उनके पास बंदूक है. और ये भी पता है कि वो आख़िरी सांस तक लड़ेंगे.”

जैसे ही राष्ट्रपति उड़ान भरने की तैयारी में थे, प्रधानमंत्री लौट आए और बताया कि दुबई से एयर एम्बुलेंस की अनुमति नहीं मिली है. उन्होंने ज़रदारी को घर पर ही रुकने के लिए मना लिया.

अगले दिन एक समझौता हुआ—हक्कानी की पत्नी फरहनाज़ इस्पहानी ज़रदारी के साथ जाएंगी, जबकि हक्कानी प्रधानमंत्री के घर शिफ्ट होंगे. ज़रदारी का मानना था कि इस तरह हक्कानी पर सेना का दबाव कम रहेगा और उनकी पत्नी किसी तख्तापलट की स्थिति में प्रत्यक्ष गवाह बन सकेंगी.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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