scorecardresearch
Saturday, 21 December, 2024
होमविदेशकौन है तालिबान नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई जिसने IMA देहरादून में लिया था प्रशिक्षण

कौन है तालिबान नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई जिसने IMA देहरादून में लिया था प्रशिक्षण

अफगानिस्तान में राजनीति विज्ञान में अध्ययन के बाद स्तानिकजई 1980 के दशक में आईएमए में भगत बटालियन की केरेन कंपनी में शामिल हुए थे. वह अब दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई 1980 के दशक में देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (आईएएम) में ट्रेनिंग लेने वाले एक बेहद शांत, शालीन स्वभाव वाले कैडेट थे. यहां के उनके बैचमेट का कहना है कि इसलिए बाद में उनका तालिबान में शामिल हो जाना किसी सदमे से कम नहीं है.

आईएमए 1948 से ही अफगानिस्तान सहित कई अफ्रीकी और एशियाई देशों के कैडेटों को प्रशिक्षित करता आ रहा है. हालांकि, उस समय किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनका एक कैडेट इस तरह किसी आतंकवादी संगठन का शीर्ष नेता बन जाएगा.

स्तानिकजई के 1982 के एक बैचमेट ब्रिगेडियर संदीप थापर (रिटायर्ड) ने दिप्रिंट को बताया, ‘वह एक अलग कंपनी और बटालियन का हिस्सा था, लेकिन हम एक ही बैच में थे. मुझे याद है कि उनका स्वभाव बेहद साधारण था और आसानी से घुल-मिल जाते थे.’

उन्होंने कहा, ‘आम तौर पर विदेशी कैडेट बहुत खुलकर अपनी राय नहीं जताते हैं. उन्होंने अपने विचारों को ज्यादा स्पष्ट नहीं किया. लेकिन अब हम उन्हें एक नए रंग में ही देख रहे हैं.’

स्तानिकजई ने शनिवार को एक बयान जारी करके कहा कि तालिबान भारत के साथ ‘अच्छे संबंध’ बनाए रखना चाहता है—इसके साथ उन्होंने इस देश के साथ अपने संबंधों को जोड़ने की कोशिश की.

कौन हैं स्तानिकजई?

एक पश्तून स्तानिकजई का जन्म 1963 में अफगानिस्तान के बाराकी बराक जिले में हुआ था और अपने गृह राष्ट्र में राजनीति विज्ञान का अध्ययन करने के बाद वह आईएमए की भगत बटालियन की केरेन कंपनी में शामिल हो गए.

थापर ने कहा, ‘विदेशी कैडेटों के लिए राजनयिक अभ्यास के तौर पर पहली प्राथमिकता अच्छे संबंध बनाए रखना होता है. वे अकादमी में कितनी अच्छी तरह प्रशिक्षण लेते हैं, यह उनके लिए गौण है. वह अपना बुनियादी प्रशिक्षण लेते हैं, और इससे ज्यादा कुछ नहीं—मुझे सब कुछ अच्छी तरह याद है.’

थापर के मुताबिक, 1980 के दशक के मध्य तक स्तानिकजई भारत से चले गए और अफगान सेना में शामिल हो गए, जहां उन्होंने एक दशक से अधिक समय तक अपने देश की सेवा की और अफगानिस्तान पर रूसियों के आक्रमण के समय अफगान सोवियत युद्ध भी लड़ा. न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, यही वो समय था जब वह ‘धुर राजनीतिक’ हो गए.

थापर ने कहा, ‘अगर 14 साल तक अपने देश की सेवा करने के बाद वह तालिबान में गए, तो जरूरत कुछ न कुछ समस्या रही होगी—इस पर कोई कुछ नहीं कह सकता. निश्चित तौर पर यह एक झटका लगने जैसा है.’

1996 में सोवियत संघ के पीछे हटने के बाद स्तानिकजई पाला बदलकर तालिबान के साथ हो गए थे.

न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, पाकिस्तान के बुद्धिजीवियों के साथ घनिष्ठ संबंधों, अंग्रेजी में निपुणता और सैन्य कौशल ने उन्हें तालिबान शासन में विदेश मंत्री वकील अहमद मुत्तवकिल के अधीन विदेश मामलों के उप मंत्री के पद तक पहुंचने सफलता दिलाई और फिर 2001 तक स्वास्थ्य उप मंत्री भी रहे.

2001 से अब तक

2001 में तालिबान के पतन के बाद स्तानिकजई दोहा चले गए, जहां कथित तौर पर एक दशक से अधिक समय तक रहने के दौरान वह समूह का सबसे अहम और अपरिहार्य नेता और मुख्य वार्ताकारों में से एक बन गया.

अल जजीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक वह 2015 में समूह के राजनीतिक कार्यालय का नेता बना, और ‘अफगान सरकार के साथ बातचीत में हिस्सा लिया और कई देशों की राजनयिक यात्रा के दौरान तालिबान का प्रतिनिधित्व किया.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

share & View comments