नई दिल्ली: अल क़ायदा लीडर अयमान अल-ज़वाहिरी जिसके मर जाने की अफवाह थी, एक वीडियो में फिर सामने आ गया है, जो पिछले हफ्ते 11 सितंबर 2001 के हमलों की, 20वीं वर्षगांठ पर जारी किया गया.
ग्लोबल आतंकी नेटवर्क्स की ऑनलाइन गतिविधियों पर नज़र रखने वाली, एक अमेरिका स्थित संस्था साइट इंटेलिजेंस ग्रुप के अनुसार, 60 मिनट के वीडियो में, अल-ज़वाहिरी ने कुछ सुबूत पेश किए कि वो मरा नहीं था, कम से कम जनवरी 2021 तक तो नहीं.
साइट इंटेलिजेंस ग्रुप की निदेशक रीटा काट्ज़ ने ट्वीट किया, कि शनिवार को जारी वीडियो में, उग्रवादी नेता ने अलक़ायदा से जुड़े एक ग्रुप द्वारा, एक रूसी सैन्य ठिकाने पर चढ़ाई का ज़िक्र किया, जो 1 जनवरी 2021 को हुई थी, जब अल-ज़वाहिरी के मरने की ख़बर को फैले दो महीने हो चुके थे.
18) Event Zawahiri referenced was a raid on a Russian military base by the al-Qaeda-aligned Hurras al-Deen in Syria, which it claimed on Jan 1 (after rumors/reporting of his death surfaced in Nov). Also introduces Zawahiri with "May Allah Protect Him." https://t.co/Jp2ijuHECU
— Rita Katz (@Rita_Katz) September 11, 2021
लेकिन, काट्ज़ ने ये भी कहा कि वीडियो में उसने अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी का उल्लेख नहीं किया है, इसलिए वो अभी भी मृत हो सकता है, लेकिन ये ‘जनवरी 2021 में किसी समय, या उसके बाद हुआ होगा’.
अल-ज़वाहिरी मर चुका था, ये दावा सबसे पहले 13 नवंबर 2020 को, अमेरिका स्थित सेंटर फॉर ग्लोबल पॉलिसी (सीजीपी) के निदेशक हसन ने किया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि अल-ज़वाहिरी की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई थी. लेकिन अल क़ायदा ने इस ख़बर की कभी पुष्टि नहीं की.
दिप्रिंट एक नज़र डालता है अयमान अल-ज़वाहिरी के जीवन, 9/11 आतंकी हमलों में उसकी भूमिका और उसकी निरंतर प्रासंगिकता पर.
डॉक्टर से बना जिहादी
एक प्रशिक्षित डॉक्टर, 69 वर्षीय अल-ज़वाहिरी मिस्र के इस्लामी जिहाद के संस्थापकों में से एक था. ये एक ऐसा उग्रवादी संगठन था, जिसने 1970 के दशक में मिस्र में सेक्युलर शासन का विरोध किया था.
एक संपन्न मिस्री परिवार में जन्मा अल-ज़वाहिरी केवल 15 साल का था, जब वो सैन्य शासक जमाल अब्दल नासर के शासन के खिलाफ, रेज़िस्टेंस आंदोलन में शामिल हो गया और उसकी इच्छा थी कि मिस्र में एक इस्लामी सरकार स्थापित हो.
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1981 में, उसे कथित रूप से नासर के उत्तराधिकारी, राष्ट्रपति अनवर अल-सादात की हत्या में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उसने तीन साल जेल में बिताए.
1979 में अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले के बाद, बहुत से इस्लामी चरमपंथी उस देश की ओर आकर्षित हुए, जिससे ओसामा बिन लादेन और अल-ज़वाहिरी की मुलाक़ात के लिए, बिल्कुल सही माहौल बन गया.
लेकिन, दोनों कट्टरपंथी नेताओं की पहली मुलाक़ात, 1986 में पाकिस्तान के पेशावर में हुई, जब ज़वाहिरी अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति की इस्लामी इकाई, रेड क्रेसेंट सोसाइटी के लिए काम कर रहा था.
बिन लादेन अल क़ायदा की तक़दीर पलटने के लिए पेशावर आया था, क्योंकि ये शहर हथियारों और नारकोटिक्स का काला बाज़ार बन गया था.
2001 में, अल-ज़वाहिरी और बिन लादेन ने अपनी दो कट्टरपंथी संस्थाओं- मिस्री इस्लामी जिहाद और अल क़ायदा का विलय करके, क़ायदा अल-जिहाद का गठन कर लिया.
अहमियत, तब और अब
बिन लादेन को 9/11 हमलों के मास्टरमाइंड के तौर पर जाना जाता है, लेकिन अमेरिका के सीआईए और एफबीआई अधिकारियों का कहना है, कि ये अल-ज़वाहिरी था, जिसे दि न्यूयॉर्कर ‘बिन लादेन के पीछे का आदमी’ कहता था, जिसने सभी हमलों के आयोजन और निगरानी को अंजाम दिया.
कथित रूप से ये अल-ज़वाहिरी का ही दिमाग़ था, जिसके तहत 1993 में सोमालिया में अमेरिकी सैनिकों पर हमले, 1998 में पूर्वी अफ्रीका में अमेरिकी दूतावासों पर बम्बारी, और 2000 में यमन में यूएसएस कोल पर आत्मघाती हमले को अंजाम दिया गया था.
2004 में दि अटलांटिक के हाथ लगी एक हार्ड डिस्क से साबित हो गया, कि 9/11 हमलों से पहले अल-ज़वाहिरी, संगठन की निर्णय प्रक्रिया के केंद्र में था, जो बिन लादेन और वरिष्ठ लीडरान के बीच, सूचना का आदान प्रदान करता था.
अल-ज़वाहिरी इराक़ और पाकिस्तान के अल क़ायदा लीडरान के बीच, रिश्ते बनाए रखने में भी गहराई के साथ जुड़ा हुआ था.
लेकिन, विशेषज्ञ अब इस बारे में परस्पर विरोधी राय रखते हैं, कि वर्तमान में अल-ज़वाहिरी कितना प्रासंगिक है.
जहां कुछ एक्सपर्ट्स उसके महत्व को कम करके आंकते हैं, और उसे अपनी ‘प्रासंगिकता के लिए लड़ रही हाशिए पर पड़ी शख़्सियत’ बताते हैं, जिसे ‘आईएसआईएस ने पूरी तरह ढक लिया है, और जो अब ईर्ष्या से उन नए इस्लामी संगठनों पर, कटाक्ष करने भर का रह गया है, जिन्होंने दोनों देशों के कुछ हिस्सों पर क़ब्ज़ा कर लिया है’. दूसरे लोग इससे सहमत नहीं हैं और उनका दावा है, कि अमेरिका ख़ुफिया विभाग ने अल क़ायदा के पतन को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया है, और ‘बड़ी संख्या में जिहादी अभी भी उसके प्रति वफादार हैं’.
इस साल जून में जारी यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, अल-ज़वाहिरी समेत अल क़ायदा नेतृत्व की एक ख़ासी बड़ी संख्या, अभी भी अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा से लगे, किसी सुनसान क्षेत्र में अपना ठिकाना बनाए हुए है.
हत्या के प्रयास
9/11 हमलों के बाद के छह महीनों में, अल ज़वाहिरी अमेरिकी की ओर से की गईं, हत्या की कम से कम चार कोशिशों में बचकर निकल गया.
9/11 के बाद अफगानिस्ता पर हमले के दौरान, नवंबर 2001 में साझा बलों द्वारा पूर्वी अफगानिस्तान में तोरा बोरा की घेराबंदी के चलते, अल-ज़वाहिरी की एक पत्नी, और दो बच्चे मारे गए थे.
2006 में वो एक बार फिर मरने से बार बाल बचा, जब सीआईए और पाकिस्तानी सेनाओं ने अफगानिस्तान से 7 किलोमीटर दूर, पाकिस्तान के दामादोला में उसे देख लिया. मिसाइल हमले में 11 जिहादी हलाक हो गए, लेकिन अल-ज़वाहिरी बच गया.
एनबीसी न्यूज़ के एक विश्लेषण के अनुसार, अल क़ायदा काउंसिल के 10 सदस्यों में से, जिसने 9/11 हमलों की मंज़ूरी दी थी, ज़वाहिरी उन चार कमांडरों में से एक है, जिन्हें अमेरिका मार या पकड़ नहीं पाया है.
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