नई दिल्ली: पिछले महीने, पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि “ब्लू इकॉनमी” – आर्थिक विकास के लिए महासागर के संसाधनों का उपयोग – भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान ध्यान देने वाले क्षेत्रों में से एक होगा.
मामले पर चर्चा पहले से ही चल रही है. इन्वायर्नमेंट एंड क्लाइमेट सस्टेनबिलिटी वर्किंग ग्रुप (ईसीएसडब्ल्यूजी) ने 9 और 11 फरवरी के बीच बेंगलुरु में अपनी पहली बैठक के दौरान समुद्री कचरे को रोकने के तरीकों, “टिकाऊ और जलवायु-लचीली ब्लू इकॉनमी” के आधार पर सिद्धांतों को कैसे डिजाइन किया जाए, और सुरक्षा व जैव विविधता में वृद्धि जैसे मुद्दों पर चर्चा की.
भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (CAG) की अध्यक्षता में G-20 देशों (SAI-20) के सुप्रीम ऑडिट इंस्टीट्यूशन (SAI) एंगेजमेंट ग्रुप ने भी ब्लू इकॉनमी के क्षेत्र को रोचक बताया, जिसका उद्देश्य ब्लू इकॉनमी से प्राप्त लाभों का आकलन करना और समुद्री अर्थव्यवस्था का संरक्षण करना है.
SAI-20 के अनुसार, ऑडिटर “अपने ऑडिट को बढ़ा सकते हैं, विशेष रूप से उन राष्ट्रों के SAI जो महासागरों और समुद्रों से निकटता रखते हैं, ब्लू इकॉनमी की स्थिति पर स्टडी पेपर विकसित कर सकते हैं, और इस पर सिफारिशें कर सकते हैं कि सरकारें अपने देशों की ब्लू इकॉनमी के विकास के लिए नीतियों को कैसे निर्देशित करें.”
एक ब्लू इकॉनमी का उपयोग करने पर चर्चा ऐसे समय में हो रही है जब वैश्विक तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण महासागरों में अभूतपूर्व स्तर पर वार्मिंग देखी जा रही है, जो पर्यावरणीय गिरावट और आजीविका के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं.
दिप्रिंट आपको बता रहा है कि ब्लू इकॉनमी के बारे में क्यों बात की जा रही है, इसमें शामिल चुनौतियां और भारत की ब्लू इकॉनमी नीति.
‘अगला अवसर’
ब्लू इकॉनमी को “अगली बड़ी आर्थिक अवसर” माना जाता है, लेकिन इसकी कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है.
विश्व बैंक “ब्लू इकॉनमी” को “समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को संरक्षित करते हुए, आर्थिक विकास, बेहतर आजीविका और नौकरियों के लिए समुद्री संसाधनों के सतत उपयोग” के रूप में परिभाषित करता है.
समुद्री खाद्य (सीफूड) हार्वेस्टिंग (मछली पकड़ने और जलीय कृषि), समुद्री निर्जीव संसाधनों (जैसे खनिज और तेल और गैस) का निष्कर्षण और उपयोग, नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन (जैसे अपतटीय पवन), और वाणिज्य और व्यापार ऐसी गतिविधियों के उदाहरण हैं जिनकी गणना ब्लू इकॉनमी के रूप में की जा सकती है.
हाल ही में सीएजी द्वारा 27 फरवरी को आयोजित एक प्रस्तुति में विश्व बैंक के प्रमुख पर्यावरण विशेषज्ञ तापस पॉल ने कहा कि विश्व स्तर पर समुद्री संपत्ति (प्राकृतिक संसाधनों) का कुल मूल्य 24 ट्रिलियन डॉलर था.
ब्लू इकॉनमी का विकास 14वें सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी, संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित और ग्रह की रक्षा करते हुए समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए कार्रवाई की मांग) से भी जुड़ा हुआ है, जो “पानी के अंदर जीवन” के बारे में है, जिसमें विकास के लिए महासागरों के संसाधनों का संरक्षण व धारणीय उपयोग शामिल है.”
कुछ नीति निर्माताओं का तर्क है कि एसडीजी 14 को हासिल करने के लिए एक ब्लू इकॉनमी नीति को आकार देना आवश्यक है.
विश्व आर्थिक मंच के एक श्वेत पत्र के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के 17 एसडीजी में से 14वें को दीर्घावधि वित्त पोषण की सबसे कम राशि मिली है. इसने पाया कि 2030 तक एसडीजी 14 प्राप्त करने के लिए प्रति वर्ष 175 बिलियन डॉलर की आवश्यकता होती है, जबकि वास्तव में 2015 और 2019 के बीच 10 बिलियन डॉलर से थोड़ा कम निवेश किया गया था.
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चुनौतियां
ब्लू इकॉनमी का लाभ बिना चुनौतियों के नहीं उठाया जा सकता है.
संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक के एक दस्तावेज़ के अनुसार, एक चुनौती वर्तमान आर्थिक प्रवृत्तियों से संबंधित है, जो “समुद्री संसाधनों के सतत निष्कर्षण, भौतिक परिवर्तन और समुद्री व तटीय हैबिटेट और लैंडस्केप, जलवायु परिवर्तन और समुद्री प्रदूषण के माध्यम से तेजी से घटते समुद्री संसाधनों से संबंधित हैं.”
“इनोवेटिव ब्लू इकॉनमी क्षेत्रों में निवेश से पैदा होने वाले रोजगार और विकास लाभों का फायदा लेने के लिए आवश्यक मानव पूंजी में निवेश” करने की भी जरूरत है.
कई लोगों ने आर्थिक विकास के लिए समुद्री संसाधनों के दोहन के पक्ष में ब्लू इकॉनमी की अवधारणा की आलोचना की है, जो संरक्षण उद्देश्यों के विपरीत है.
सस्टेनेबिलिटी साइंस जर्नल में ब्लू इकॉनमी पर एक संपादकीय में कहा गया है: “एक सामान्य परिभाषा की कमी विशेष रूप से न केवल इसकी असंगतता के कारण समस्याग्रस्त हो सकती है, बल्कि इसमें विभिन्न भागीदारों द्वारा उनके हितों के आधार पर हेरफेर भी किया जा सकता है.”
इंटरनेशनल रिसर्च एंड एडवोकेसी फर्म ट्रांसनेशनल इंस्टीट्यूट ने कहा कि “दुखद रूप से, छोटे पैमाने के स्माल स्केल मछुआरे लोग, ज्यादातर मामलों में, वे एक्टर्स हैं जिन्हें वास्तव में इन महासागर-स्थानों का उपयोग स्थायी तरीके से करने के लिए कहा जा सकता है” आगे यह भी कहा कि ब्लू इकॉनमी पर चर्चा “समुद्री और तटीय पारिस्थितिक तंत्रों का विनाश करने वाले कई अलग-अलग महासागर उद्योग के बारे में कम है और समुद्री स्थान के विनाशकारी उपयोगों के आधार पर संरक्षण को एक लाभदायक उद्यम में बदलने के बारे में अधिक है.”
भारत की ब्लू इकॉनमी नीति
भारत के पास 7,517 किलोमीटर की तटरेखा है, जो ब्लू इकॉनमी की चर्चा को काफी प्रासंगिक बनाती है.
केंद्र सरकार के थिंकटैंक नीति आयोग ने भारतीय संदर्भ के लिए “ब्लू इकॉनमी” की अपनी परिभाषा गढ़ी है, जिसमें “समुद्री संसाधनों का पूरा सिस्टम और भारत के कानूनी अधिकार क्षेत्र के भीतर समुद्री और ऑनशोर तटीय क्षेत्रों में मानव निर्मित आर्थिक बुनियादी ढांचा शामिल होगा, और जो माल व सेवाओं के उत्पादन, आर्थिक विकास व पर्यावरणीय स्थिरता और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सहायता पहुंचाएगा.
केंद्र देश के तटीय क्षेत्रों के सतत विकास पर जोर देते हुए घरेलू “ब्लू इकॉनमी नीति” लाने की तैयारी में है.
ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के नीलांजन घोष और श्रीनाथ श्रीधरन के मुताबिक G-20 अध्यक्ष के रूप में भारत के पास वैश्विक दक्षिण की वकालत करने का एक अवसर भी है, जहां कई महासागरों पर निर्भर समुदाय असुरक्षित हैं. उन्होंने जनवरी के एक अंक में लिखा, “विकास, हरित अर्थव्यवस्था और सामाजिक इक्विटी के उद्देश्य के लिए ब्लू इकॉनमी को प्राथमिकता देने का अनूठा अवसर है.”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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