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Tuesday, 23 September, 2025
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पश्चिमी देशों से फिलिस्तीन को मान्यता, ट्रंप दिखाएंगे मुस्लिम देशों को युद्ध के बाद गाज़ा का अमेरिकी प्लान

ट्रंप का मुस्लिम दुनिया के नेताओं के साथ बैठक करने का फैसला अमेरिका नेतृत्व वाले पश्चिमी एकता में दरार के बाद आया है, जो इस महीने की शुरुआत में तेस अवीव के दौहा हमलों के बाद टूट गई थी.

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नई दिल्ली: गाज़ा की स्थिति को लेकर उनके पश्चिमी सहयोगियों में दरार गहरी होने के मद्देनज़र अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप मंगलवार को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के दौरान मुस्लिम दुनिया के नेताओं के साथ एक बहुपक्षीय बैठक करेंगे.

अमेरिका, जिसने लंबे समय तक पश्चिम एशियाई मामलों में प्रमुखता बनाए रखी है, उसने देखा है कि उसके सहयोगी जैसे यूके, फ्रांस और कनाडा ने पिछले 48 घंटों में फिलिस्तीन स्टेट को मान्यता दे दी है. फिलिस्तीन को मान्यता देने से इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू नाराज़ हैं, जिन्होंने ट्रंप से मिलने के बाद जवाब देने की कसम खाई है.

व्हाइट हाउस प्रवक्ता कैरोलिन लिविट ने सोमवार को इस तरह की पहली बैठक की घोषणा की. इसमें ट्रंप कतर, सऊदी अरब, इंडोनेशिया, तुर्की, पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के नेताओं से मुलाकात करेंगे. खबरों के अनुसार, ट्रंप अपने युद्ध-उपरांत गाज़ा के प्लान का खुलासा कर सकते हैं, जिसमें हमास को शामिल नहीं किया जाएगा. योजना में पश्चिम एशियाई देशों की सैन्य ताकत को गाज़ा में शामिल करने का सुझाव भी हो सकता है, जिसे क्षेत्र के कई देशों ने लंबे समय से नकारात्मक दृष्टि से देखा है.

ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) के डिप्टी डायरेक्टर और मिडिल ईस्ट फेलो कबीर तनेजा ने भी कहा कि बैठक का एक मुख्य उद्देश्य यह दिखाना है कि अमेरिका हमास के बिना युद्ध-उपरांत गाज़ा को कैसे देखता है.

तनेजा ने दिप्रिंट से कहा, “इज़रायल की सेना ने गाज़ा में सैन्य कार्रवाई के साथ कोई राजनीतिक रास्ता नहीं अपनाया है. इस पर कोई स्पष्टता नहीं है और क्योंकि इज़रायल के पास पोस्ट-हमास गाज़ा का कोई राजनीतिक ढांचा नहीं है, इसलिए मुझे लगता है कि अमेरिका बैठक के दौरान कुछ विचार पेश करना चाहेगा.”

उन्होंने आगे कहा, “अमेरिका अरब देशों की चिंताओं को शांत करने की कोशिश कर रहा है कि हमास के हटाए जाने के बाद गाज़ा में क्या होगा. मुख्य चिंता यह है कि कोई सक्रिय राजनीतिक मार्ग नहीं है, खासकर अगर हमास को गाज़ा से हटाया जाता है और अमेरिका इस स्थिति का समर्थन करता है.”

टू-स्टेट समाधान की सुरक्षा में कोई विफलता क्षेत्र के सरकारों के लिए घरेलू समस्याएं बढ़ा सकती है और यही इस बैठक की महत्वता को और बढ़ाता है. मुस्लिम दुनिया के नेताओं के साथ यह बैठक कुछ सप्ताह बाद हो रही है, जब तेल अवीव ने कतर के दौहा पर हमला किया था, जिसमें शहर में हमास के वार्ता नेताओं को मारने की कोशिश की गई थी. कतर, जो अमेरिका का मजबूत क्षेत्रीय साझेदार रहा है, उसे ट्रंप ने आश्वस्त किया कि ऐसा हमला दोबारा नहीं होगा.

इज़रायल के पीएम ने रविवार शाम एक वीडियो में कहा, नेतन्याहू 29 सितंबर को ट्रंप से मुलाकात करेंगे, जिसके बाद वह फिलिस्तीन के लिए तेल अवीव की योजनाओं की घोषणा करेंगे. नेतन्याहू ने फिलिस्तीन स्टेट के अस्तित्व को स्पष्ट रूप से अस्वीकार किया है, जबकि वेस्ट बैंक में इज़रायली बस्तियों के विस्तार का संकेत दिया है, जिसे अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अवैध माना जाता है और तेल अवीव द्वारा विवादित है.

तनेजा ने कहा कि अमेरिका के अंदर भी पोस्ट-हमास गाज़ा के लिए उसकी स्थिति को लेकर “काफी भ्रम” है, लेकिन यह स्पष्ट है कि वह इज़रायली सुरक्षा को “कमज़ोर” करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं करेगा, जो पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन की स्थिति के अनुरूप है.

यूरोप ने बढ़ाया कदम

इज़रायल–फिलिस्तीन युद्ध, जो 7 अक्टूबर 2023 को शुरू हुआ था, हमास के हमलों के बाद जिसमें 1,150 इज़रायली मारे गए और कम से कम 250 लोग बंधक बन गए, गाज़ा पट्टी के बड़े हिस्सों को पूरी तरह से तबाह कर दिया गया. क्षेत्रीय स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, तब से अब तक 65,000 से अधिक फिलिस्तीनी अपनी जान गंवा चुके हैं.

हाल के हफ्तों में इज़रायल ने अपनी सेनाओं को गाज़ा सिटी में भेजा है और हमास को समाप्त करने का वादा किया है. कई इज़रायली बंधक अभी भी हमास के कब्ज़े में हैं. हालांकि, जारी संघर्ष और विशेष रूप से गाज़ा में मानवतावादी स्थिति की बढ़ती चिंताओं के कारण अमेरिका और इज़रायल के लंबे समय से सहयोगी नेतन्याहू और हमास पर दबाव डालने के तरीके खोज रहे हैं ताकि संघर्ष को समाप्त किया जा सके.

इस मामले में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस साल की शुरुआत में सऊदी समर्थन के साथ नेतृत्व लिया और कुछ शर्तों के तहत फिलिस्तीन को मान्यता देने का वादा किया. साथ ही उन्होंने रियाद के साथ संयुक्त राष्ट्र में एक सम्मेलन की सह-अध्यक्षता की. इस महीने की शुरुआत में यूएन महासभा ने टू-स्टेट समाधान को फिर से पुष्टि करते हुए हमास की निंदा करने वाला प्रस्ताव अपनाया.

मैक्रों ने सोमवार को यूएनजीए में फिलिस्तीन को फ्रांस की मान्यता की घोषणा की क्योंकि यूरोपीय देश वर्तमान संघर्ष में अमेरिका द्वारा छोड़ी गई “खाली जगह” को भरने की कोशिश कर रहे हैं. तनेजा ने कहा, यह मान्यता ज़मीनी हकीकत नहीं बदल सकती, लेकिन यह फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों को स्थिति में कुछ प्रभाव देने की ताकत देती है.

यूरोप की इस संघर्ष में भागीदारी की कोशिश के बीच सऊदी अरब ने फिलिस्तीनी मसले का समाधान खोजने में अधिक रुचि दिखाई है.

काउंसिल फॉर स्ट्रैटेजिक एंड डिफेंस रिसर्च (सीएसडीआर) के फेलो सिद्धार्थ ने दिप्रिंट से कहा, “डर यह है कि इज़रायल फिलिस्तीनियों की यूरोपीय मान्यता का इस्तेमाल वेस्ट बैंक के और हिस्सों को अपने कब्ज़े में लेने का बहाना बनाने के लिए कर सकता है. मुझे लगता है कि यह मुद्दे का सबसे केंद्रीय पहलू है.”

उन्होंने आगे कहा, “इन देशों पर घरेलू दबाव और आलोचना का नया दौर शुरू हो सकता है क्योंकि वे इज़रायल द्वारा टू-स्टेट समाधान की ज़मीनी हकीकत बदलने को रोकने में असमर्थ रहे. अरब देशों में चिंता है कि दो-राज्य समाधान के लिए ऐतिहासिक बदलाव हो सकते हैं.”

ट्रंप पश्चिम एशियाई सहयोगियों को आश्वस्त करेंगे

हालांकि, इस बैठक का एक बहुत ही साधारण कारण भी है, सिद्धार्थ ने बताया, कि यह बैठक इस क्षेत्र में अमेरिका के सहयोगियों को इज़रायल के कतर पर हमलों के बाद आश्वस्त करने के लिए है. उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि ट्रंप का क्षेत्रीय सहयोगियों पर भविष्य में कोई हमला न होने का आश्वासन और नेतन्याहू के इसी मामले में बयान और रुख में अंतर है.”

अमेरिका लंबे समय से पश्चिम एशिया में अपनी ताकत दिखा रहा है, हथियार बिक्री से लेकर विभिन्न देशों में अपने बेस पर सैनिक तैनात करने तक. वाशिंगटन लंबे समय से इस क्षेत्र में मुख्य वैश्विक खिलाड़ी रहा है.

ट्रंप के सार्वजनिक आश्वासनों के बावजूद कि भविष्य में कोई हमला नहीं होगा, यह सवाल अभी भी है कि क्या उनका वादा भरोसेमंद माना जा सकता है.

यूरोपीय देशों के सामने भी पश्चिम एशियाई देशों जैसी ही दुविधा है, ट्रंप और यूक्रेन युद्ध को लेकर.

सिद्धार्थ ने कहा, “ट्रंप ने दोनों मामलों में इज़रायल और रूस के खिलाफ कड़े कदम उठाने के विचार को आज़माया है. ऐसा लगता है कि यूरोपीय या पश्चिम एशियाई देश उन्हें मजबूत कदम उठाने के लिए मना सकते हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “हालांकि, अमेरिका से कड़े कदम उठाने की उम्मीद जगाई जा रही है, उनके वास्तविक कार्य इसके विपरीत हैं, जैसे कि फिलिस्तीनी प्राधिकरण के राष्ट्रपति महमूद अब्बास को यूएन में शामिल होने से रोकना.”

ट्रंप के लिए गाज़ा युद्ध को समाप्त करने का तरीका एक मुख्य विदेश नीति लक्ष्य है, क्योंकि उन्होंने दुनिया भर के संघर्षों में शांति लाने का वादा किया है. वहीं, इज़रायल ने पिछले साल लेबनान में हिज़बुल्लाह, यमन में हूथियों और ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमले किए और यह सब कतर पर हमलों से पहले हुआ था.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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