नई दिल्ली: दुनियाभर में कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों के बीच अमेरिका ने कोविड-19 वैक्सीन का सोमवार को एक व्यक्ति पर प्रयोग किया. दुनियाभर के कई देश टीका विकसित करने के लिए प्रयासरत हैं.
एसोसिएटिड प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार सिएटल स्थित कैसर परमानेंट वाशिंगटन रिसर्च इंस्टिट्यूट में कोविड-19 वैक्सीन पर स्टडी की गई. सिएटल की 43 वर्षीय जेनिफर हैलर जो कि एक टेक कंपनी में ऑपरेशन्स मैनेजर हैं, उनपर इंजेक्शन से टेस्ट किया गया. हैलर ने इसे कुछ कर पाने का एक अच्छा अवसर बताया.
वैक्सीन का कोडनेम एमआरएनए-1273 रखा गया है जिसे नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ और बायोटेक्नोलॉजी कंपनी मॉर्डर्ना इंक ने विकसित किया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने व्हाइट हाउस में कहा, ‘मुझे ऐसा लगता है कि अगर हम इस दिशा में बहुत अच्छे से काम करें तो उम्मीद है कि जुलाई या अगस्त तक हमें इससे छुटकारा मिल जाएगा.’
दूसरी तरफ, जर्मनी कोरोनावायरस से बुरी तरह प्रभावित है. बीबीसी वर्ल्ड के अनुसार अभी तक वहां 7 हज़ार मामले सामने आ चुके हैं वहीं 14 लोगों की मौत भी हो चुकी है. देश में कई तरह के प्रतिबंध भी लगा दिए गए हैं जिसमें ज्यादा लोगों के एक जगह जमा होने की मनाही है.
बीबीसी वर्ल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, जर्मनी के विदेश मंत्री हेइको मास ने उन रिपोर्टों का जवाब दिया, जिनमें कहा गया था कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एक जर्मन बायोटेक फर्म द्वारा विकसित संभावित वैक्सीन के लिए विशेष पहुंच खरीदना चाहते हैं. उन्होंने कहा, ‘हम दूसरों को अनन्य परिणाम प्राप्त करने की अनुमति नहीं दे सकते.’
कोरोनावायरस से पूरी दुनिया में डेढ़ लाख से भी ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं. यह वायरस दिसंबर में चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ था जिसने अब तक 6500 जाने ले ली हैं.
कैसर परमानेंट स्टडी लीडर डॉ. लीजा जैक्सन ने कहा, ‘अब हम टीम कोरोनावायरस हैं. हर कोई इस आपातकाल के समय में जो कुछ भी कर सकता है वो करना चाहता है.’ उन्होंने कहा कि सिर्फ दो महीने में वैक्सिन टेस्ट करना अभूतपूर्व है.
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अमेरिकी सरकार के एक अधिकारी के मुताबिक राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (एनआईएच) इस परीक्षण के लिए धन मुहैया करा रहा है और यह सिएटल में ‘कैसर परमानेंट वाशिंगटन हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में हो रहा है.
जन स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि किसी भी संभावित टीके की पुष्टि में एक साल से 18 महीने तक का वक्त लगेगा.
यह परीक्षण 45 युवा एवं स्वस्थ स्वेच्छाकर्मियों के साथ शुरू होगा जिन्हें एनआईएच और मॉर्डर्ना इंक के संयुक्त प्रयासों से विकसित टीके लगाए जाएंगे हालांकि प्रत्येक प्रतिभागी को अलग-अलग मात्रा में वैक्सीन दी जाएगी.
इस बात की कोई संभावना नहीं है कि कोई भी प्रतिभागी इससे संक्रमित होगा क्योंकि इस टीके में वायरस नहीं है. इस परीक्षण का लक्ष्य सिर्फ यह जांचना है कि टीकों को कोई चिंताजनक दुष्प्रभाव न हो और फिर इस आधार पर बड़े पैमाने पर परीक्षण किया जा सके.
कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बीच विश्व भर के दर्जनों शोध संगठन टीका विकसित करने के प्रयासों में जुटे हुए हैं.
ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने कोरोनावायरस के खिलाफ कारगर दो दवाएं खोजने का दावा किया
ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने सोमवार को दावा किया कि उन्होंने कोरोनावायरस के संक्रमण का इलाज करने में कारगर दो दवाओं- एचआईवी और मलेरिया रोधी- का पता लगा लिया है.
क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के क्लिनिकल शोध केंद्र के निदेशक डेविड पैटर्सन ने बताया कि दो दवाओं को टेस्ट ट्यूब में कोरोनावायरस को रोकने के लिए इस्तेमाल किया गया और यह कारगर है और इंसानों पर परीक्षण के लिए तैयार है.
उन्होंने बताया कि इन दवाओं में एक एचआईवी के इलाज में इस्तेमाल दवा है और दूसरी मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल क्लोरोक्वीन है.
पैटर्सन ने बताया कि इन दोनों दवाओं का इस्तेमाल ऑस्ट्रेलिया में संक्रमित कुछ मरीजों पर किया गया और पाया गया कि उसमें वायरस पूरी तरह से गायब हो गया.
रॉयल ब्रिसबेन एंड वीमेन्स हॉस्पिटल में संचारी बीमारी के डॉक्टर पैटर्सन ने कहा, ‘यह संभावित प्रभावी इलाज है. इलाज के अंत में पाया गया कि मरीज के शरीर में कोरोना वायरस के संक्रमण का कोई संकेत तक नहीं है.’
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उन्होंने कहा, ‘इस वक्त हम पूरे ऑस्ट्रेलिया में 50 अस्पतालों में बड़े पैमाने पर दवा का इंसानों पर परीक्षण करना चाहते हैं ताकि अन्य दवाओं के साथ इन दो दवाओं के समिश्रण की तुलना की जा सके.’
पैटर्सन ने कहा कि कुछ मरीजों पर कोरोना वायरस की इस दवा का बहुत ही सकारात्मक असर हुआ है, हालांकि इसका नियंत्रित परिस्थियों या तुलानात्मक आधार पर परीक्षण नहीं किया गया है. उन्होंने बताया कि यह दवा टैबलेट के रूप में है जिसे मरीज को मुंह के जरिये दिया जाता है.
(समाचार एजेंसी भाषा और एएनआई के इनपुट के साथ)