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Friday, 29 March, 2024
होमविदेशUS कॉलेज नहीं जा सकते? भारतीय छात्रों के लिए टर्की भी है विकल्प, जानें क्या मिलेगा, क्या नहीं

US कॉलेज नहीं जा सकते? भारतीय छात्रों के लिए टर्की भी है विकल्प, जानें क्या मिलेगा, क्या नहीं

दिप्रिंट के साथ एक इंटरव्यू में, भारत में टर्की के राजदूत फिरात सुनेल ने कहा, कि उनके देश में अंदाज़न 2,65,000 छात्र हैं, जो मुख्यत: अफ्रीका, मध्यपूर्व, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया से हैं.

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नई दिल्ली: भारतीय छात्रों के लिए यूके और अमेरिका के वीज़ा का इंतज़ार अंतहीन हो गया है. उनके चीन- जहां से उन्हें महामारी के कारण लौटना पड़ा था- और यूक्रेन, जहां से वो युद्ध के चलते भाग आए थे- वापस जाने की संभावनाएं भी अनिश्चित बनी हुई हैं.

इसलिए भारतीयों के विदेशों में पढ़ने के विकल्प काफी कम हो गए हैं. और इसी अनिश्चित समय में टर्की उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक दावेदार के रूप में विकसित होने की कोशिश कर रहा है.

टर्की में, जहां इस साल रिकॉर्ड संख्या में भारतीय पर्यटक देखे गए, 208 विश्वविद्यालय और 50,000 कार्यक्रम हैं. दिप्रिंट के साथ एक इंटरव्यू में, भारत में टर्की के राजदूत फिरात सुनेल ने कहा, कि उनके देश में अंदाज़न 2,65,000 छात्र हैं, जो मुख्यत: अफ्रीका, मध्यपूर्व, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया से हैं.

सुनेल ने दिप्रिंट को बताया, ‘भारतीय छात्रों की संख्या काफी कम- क़रीब 1,000 है’. उन्होंने आगे कहा कि पिछले पांच सालों से ये संख्या ‘धीरे धीरे’ बढ़ रही थी.

सुनेल ने कहा कि भारतीय छात्रों के बीच मेडिसिन और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सबसे लोकप्रिय कार्यक्रम थे, लेकिन बहुत से छात्रों ने पशु चिकित्सा, कृषि इंजीनियरिंग, दंत चिकित्सा, फिज़ियोथिरेपी, और होटल प्रबंधन जैसे विशेष पाठ्यक्रम भी चुने थे.

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शिक्षा सलाहकारों का कहना है कि टर्की में छात्रों के लिए सबसे बड़े फायदे हैं सस्ता ट्यूशन- मुख्य रूप से लीरा के गिरते मूल्य के कारण- यूरोप में नौकरियों के अवसर, और छात्र वीज़ा की त्वरित प्रोसेंसिंग.

लेकिन वहां कुछ कमियां भी हैं- सबसे अहम ये कि टर्की के विश्वविद्यालयों की रैंकिंग बहुत नीची है. 2018 में उच्च शिक्षा विश्लेषक क्वाकरेली सिमण्ड्स (क्यूएस) की उच्च शिक्षा सिस्टम ताक़त रैंकिंग में, इस देश को 43वां स्थान दिया गया है, मिस्र से बस पीछे. भारत की रैंक 26वीं थी.

एक शिक्षा सलाहकार दिपेंद्र चौबे ने कहा, ‘टर्की के विश्वविद्यालय आमतौर से चिकित्या क्षेत्र में विश्वविद्यालयों की शीर्ष क्यूएस यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स में नहीं आते. मिस्र के एमबीबीएस कोर्सेज़ की रैंकिंग बेहतर है’.

ये इसलिए महत्वपूर्ण है चूंकि अनुमानों से पता चलता है, कि हर साल 20,000 से लेकर 25,000 तक भारतीय छात्र मेडिसिन पढ़ने विदेश जाते हैं.

कम ट्यूशन नीची वर्ल्ड रैंकिंग्स

पिछले एक साल से टर्की के लीरा की क़ीमत गिर रही है, जिसका मतलब है कम ट्यूशन फीस.

अंकारा यिल्द्रिम बेयाज़ित यूनिवर्सिटी के 32 वर्षीय पीएचडी छात्र ज़ीशान मलिक ने, जो मूल रूप से उत्तर प्रदेश से हैं, दिप्रिंट को बताया: ‘ट्यूशन फीस बहुत ज़्यादा नहीं है क्योंकि लीरा का मूल्य बहुत कम है. करेंसी बदलने के बाद तो वो और सस्ता हो जाता है. फिलहाल 1 लीरा का मूल्य 4.4 रुपए है’.

दूसरी ओर टर्की के आर्थिक संकट की वजह से, जिसने लीरा को कमज़ोर कर दिया है, महंगाई भी बहुत बढ़ गई है- देश की सालाना महंगाई दर जून में लगभग 80 प्रतिशत पहुंच गई- जो पिछले दो दशकों इसका सबसे ऊंचा स्तर था. लेकिन टर्की के राजदूत ने कहा कि इससे भारतीय छात्रों की जीवन शैली पर असर नहीं पड़ेगा.

फिर एक समस्या टर्की के विश्वविद्यालयों की नीची रैंक की है. अंकारा यिल्द्रिम बेयाज़ित यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के 41 वर्षीय असिस्टेंट प्रोफेसर उमैर अनस ने, जो मूल रूप से नई दिल्ली से हैं, कहा कि ख़ासकर भारतीय मेडिकल छात्रों को टर्की पर तभी विचार करना चाहिए, जब वो अपनी शिक्षा के बाद यूरोप में काम करने का इरादा रखते हों.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि भारत का राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, टर्की के ज़्यादातर एमबीबीएस कोर्सेज़ को मान्यता नहीं देता.

लेकिन, सुनेल की दलील थी कि टर्की की डिग्रियों को पूरे यूरोप में मान्यता हासिल है, क्योंकि टर्की यूरोपीय उच्च शिक्षा क्षेत्र (ईएचईए) का हिस्सा है- जो उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 49 यूरोपीय देशों का एक सहयोग है, जिसका उद्देश्य स्टाफ तथा छात्रों की गतिशीलता को बढ़ाना, और रोज़गार क्षमता को सुगम बनाना है.

‘भाषा की बाधा’

शिक्षा सलाहकारों का कहना है कि भाषा की बाधा एक और समस्या खड़ी कर सकती है. हालांकि अंकारा यूनिवर्सिटी और मिडिल ईस्ट टेक्निकल यूनिवर्सिटी जैसे कुछ संस्थान ‘समानांतर कोर्सेज़’ ऑफर करते हैं- जिन्हें तुर्की और अंग्रेज़ी दोनों में साथ साथ पढ़ाया जाता है- लेकिन अधिकतर कोर्स अभी भी तुर्की भाषा में पढ़ाए जा रहे हैं.

मलिक ने कहा, ‘टर्की के बहुत से विश्वविद्यालय तुर्की और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में कोर्स ऑफर करते हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘तुर्की भाषा सीखना बहुत आसान भी है, क्योंकि ये उर्दू और हिंदी जैसी ही है’. उन्होंने आगे कहा कि मास्टर्स डिग्री के लिए उन्होंने अपनी थीसिस तुर्की में ही लिखी थी.

ये पूछे जाने पर कि क्या अंग्रेज़ी-माध्यम के कोर्सेज़ तुर्की कोर्सेज़ से ज़्यादा महंगे हैं, सुनेल ने कहा: ‘अंग्रेज़ी-माध्यम के कोर्सेज़ अपेक्षाकृत महंगे हैं, लेकिन निश्चित रूप से अमेरिका और यूके से सस्ते हैं. हमारे यहां बहुत सारे सार्वजनिक विश्वविद्यालय भी हैं, जिनमें उच्च-श्रेणी के अंग्रेजी माध्यम कोर्सेज़ पढ़ाए जाते हैं. बहुत से विश्वविद्यालय, जिनमें सरकारी संस्थान भी शामिल हैं, तुर्की भाषा सीखने के लिए एक वर्ष का एक कोर्स भी ऑफर करते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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