चंडीगढ़ : कनाडा के वैंकूवर की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया (यूबीसी) ने, जो कथित रूप से सिख कट्टरपंथी कार्यकर्ताओं के दबाव में इस हफ्ते एक वार्षिक कार्यक्रम रद्द करने के बाद आलोचनाओं के घेरे में थी, कहा है कि वो जांच कराएगी कि इस आयोजन को क्यों रद्द किया गया गया.
सिख नेता उज्जल दोसांझ ने, जो ब्रिटिश कोलंबिया के पूर्व प्रधान हैं, सख़्त शब्दों में एक पत्र लिखा है, जिसमें यूनिवर्सिटी के दबाव में आने पर ऐतराज़ जताया गया है. इसके जवाब में यूबीसी के डीन ऑफ आर्ट्स गेज एवरिल ने कहा है कि उनकी टीम ‘उन बाधाओं के बारे में और जानकारी जुटाएगी, जिसकी वजह से कार्यक्रम आयोजित करना असंभव हो गया था’. लेकिन दोसांझ इससे संतुष्ट नहीं हैं, और वो एक अधिक ‘व्यापक जवाब’ की अपेक्षा कर रहे हैं. इस सारे पत्र-व्यवहार को दिप्रिंट ने देखा है.
ये ऑनलाइन आयोजन– हरजीत कौर सिद्धू मेमोरियल प्रोग्राम- 7 अप्रैल को होना था और कारवां पत्रिका के राजनीतिक संपादक हरतोष सिंह बल को इसमें ‘पर्सपेक्टिव्ज़ ऑन द फारमर्स मूवमेंट इन इंडिया’ पर बोलना था. बल ने आरोप लगाया कि सिख छात्रों की ओर से, उनके बोलने का विरोध करने के बाद यूनिवर्सिटी ने आयोजन को रद्द कर दिया, क्योंकि वो पंजाब पुलिस के पूर्व डीजीपी, केपीएस गिल के भतीजे हैं.
गिल को पंजाब में उग्रवाद को ख़त्म करने का श्रेय दिया जाता है लेकिन कट्टर सिख उन्हें अपने कार्यकाल के दौरान, ग़ैर-न्यायिक हत्याओं के लिए ज़िम्मेदार मानते हैं.
यह भी पढ़ें : पीयूष गोयल के साथ दो घंटे की बैठक के बाद आखिरकार किसानों को सीधे भुगतान पर राजी क्यों हुआ पंजाब
दोसांझ का पत्र
एक पूर्व सांसद और यूबीसी के भूतपूर्व छात्र दोसांझ ने शनिवार को यूनिवर्सिटी के प्रेज़िडेंट सांटा जे ओनो को एक खुला पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि आयोजन के रद्द किए जाने से उन्हें ‘दुख’ पहुंचा है, ये फैसला बिना सोचे-समझे लिया गया है, जो ‘एक विश्वस्तरीय यूनिवर्सिटी को शोभा नहीं देता’.
दोसांझ ने ये भी कहा कि हालांकि उन्होंने, आयोजन को रद्द किए जाने की सूरत में अपनी क़ानून की डिग्री जलाने की धमकी दी थी, लेकिन उन्होंने ‘डिग्री को पीले री-साइकिल बैग में डाल दिया, जिसे शहर वाले उठाते हैं’.
पूर्व ब्रिटिश कोलंबिया प्रीमियर ने, जो सिख कट्टरपंथी तत्वों के निडर आलोचक हैं, लिखा: ‘ऐसा समझा जा रहा है कि आयोजन को रद्द करने का फैसला कुछ सिख कट्टरपंथियों के दबाव में लिया गया, जो सिखों के लिए एक आस्तिकवादी राज्य स्थापित करने की ख़ातिर, भारत के टुकड़े करने के लिए आंदोलन चला रहे हैं…कुछ समय से मुझे लग रहा है कि अकादमिक स्वतंत्रता को लेकर कनाडा की यूनिवर्सिटियों ने जो प्रतिष्ठा कमाई है, वो अब घट रही है. बदक़िस्मती से यूबीसी भी इस रुझान का अपवाद नहीं रही है.
‘भारत में चल रहे ज़बर्दस्त विरोध प्रदर्शनों का शिकार हुए कृषि क़ानूनों पर, उपरोक्त लेक्चर का बिना सोचे-समझे रद्द किया जाना एक विश्वस्तरीय यूनिवर्सिटी को शोभा नहीं देता.
‘मैंने धमकी दी थी कि किसी के दवाब में, अगर यूनिवर्सिटी ने उपरोक्त आयोजन को रद्द किया तो मैं सार्वजनिक रूप से अपनी यूबीसी की क़ानून की डिग्री जला दूंगा. एक दोस्त ने मुझे याद दिलाया कि वैंकूवर में शहर की सीमाओं के अंदर, कचरे को जलाने की इजाज़त नहीं है. शहर के नियमों का पालन करने और प्रदूषण फैलाने से बचने के लिए, मैंने अपनी डिग्री पीले रीसाइकिल बैग में डाल दी है, जिसे शहर में उठाया जाता है’.
यूनिवर्सिटी का जवाब
डीन ऑफ आर्ट्स एवरिल ने उसी शाम दोसांझ को जवाब दिया कि प्रेज़िडेंट ने उनसे अनुरोध किया है कि उनकी ओर से जवाब दे दें.
डीन ने लिखा, ‘इस मुद्दे को हमारे ध्यानार्थ लाने के लिए आपका शुक्रिया. और कृपया मेरा धन्यवाद स्वीकार करें कि आपने अभी यूनिवर्सिटी के अपने चर्मपत्र को जलाया नहीं है- इस यूनिवर्सिटी के एक प्रख्यात पूर्व छात्र होने के नाते, हम आपकी क़द्र करते हैं और मुझे उम्मीद है कि हम आपको कोई कारण नहीं देंगे कि आप ऐसा करना चाहें’.
एवरिल ने ज़ोर देते हुए कहा, ‘आपके लिए ये जानना ज़रूरी है कि यूबीसी अकादमिक स्वतंत्रता को लेकर प्रतिबद्ध है, और हमेशा रहेगी, जो कि यूनिवर्सिटी की सीनेट पॉलिसी में प्रतिष्ठापित है. ऐसा लगता है कि उस कार्यक्रम से जुड़े सभी फैसले- जिनका आपने उल्लेख किया है- जिनमें इसे टालने का फैसला भी शामिल है, प्रोग्राम के आयोजकों की ओर से लिए गए और उनमें यूबीसी की ओर से आयोजन को सेंसर करने की कोई रुचि ज़ाहिर नहीं होती’.
उन्होंने आगे कहा, ‘मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि आने वाले सप्ताह में, मेरी फैकल्टी टीम कार्यक्रम के आयोजकों के साथ संपर्क स्थापित करेगी, ताकि उन बाधाओं के बारे में और जानकारी जुटाई जा सके, जिसकी वजह से कार्यक्रम आयोजित करना असंभव हो गया था.
दोसांझ ने एवरिल के पत्र का जवाब देते हुए लिखा: ‘आपके जवाब में कुछ नहीं है; एक ज़्यादा व्यापक जवाब के इंतज़ार में हूं’.
(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)