काठमांडू: यहां संसद और परिवहन प्रबंधन विभाग सहित सरकारी इमारतों में आगजनी के एक दिन बाद, बुधवार को स्थानीय लोगों ने सड़कों से बिखरा मलबा साफ किया. वहीं कुछ लोग स्वेच्छा से आए और घायलों, स्वास्थ्यकर्मियों और सफाई करने वाले लोगों को पानी और खाना दिया.
जली हुई संसद भवन के बाहर, हर उम्र के स्थानीय लोग सफेद दस्ताने पहनकर और झाड़ू लेकर सड़कें साफ कर रहे थे. कुछ लोग बड़े काले बैग लेकर आए थे ताकि उसमें मलबा, छोड़ी हुई चीजें, जली हुई लोहे की छड़ें, राख और चप्पलें डाली जा सकें.
“कल (मंगलवार) का प्रदर्शन जेन ज़ी ने शुरू किया था, लेकिन सरकारी संपत्ति जलाना हमारी पहचान नहीं है,” मुंबई में जन्मे नेपाली नागरिक संजय चौधरी ने कहा. उन्होंने बताया कि भीड़ की वजह से प्रदर्शन हिंसक हो गया. “हम आज यहां इसलिए आए हैं ताकि अपनी सिटी को साफ कर सकें और लोगों को असली काठमांडू का चेहरा दिखा सकें,” चौधरी ने जोड़ा.
क्लीन-अप ड्राइव का नेतृत्व किसी संगठन ने नहीं किया. काठमांडू के निवासियों ने अलग-अलग हिस्सों में मिलकर इसे ढीले-ढाले तरीके से समन्वित किया. न्यू बनेश्वर, जहां कई सरकारी इमारतें हैं और सबसे ज्यादा नुकसान हुआ, वहां सफाई करने वालों की सबसे ज्यादा भीड़ जुटी.

जब लोग सफाई में जुटे थे, उसी समय एक हल्के नीले रंग का महिंद्रा ट्रक सड़क पर आया. उसके पिछले हिस्से में एक-एक लीटर की पानी की बोतलों के कार्टन रखे थे. ट्रक में बैठे स्थानीय लोग ये बोतलें सफाई करने वाले, पत्रकारों और सेना के जवानों को बांट रहे थे.
“हमने लगभग सुबह 7 बजे शुरुआत की थी,” ट्रक ड्राइवर ने कहा, जो फोन पर दूसरे ट्रक का रास्ता तय कर रहे थे, जो पानी बांट रहा था. उन्होंने कहा, “हमने बस सोचा कि हमें भी अपना हिस्सा करना चाहिए, क्योंकि पब्लिक ट्रांसपोर्ट बंद है और लोग आज लंबी दूरी पैदल चल रहे हैं.”
काठमांडू प्रदर्शन: ‘पुलिस ने लाठीचार्ज किया’
संसद भवन के ठीक सामने सिविल सर्विस हॉस्पिटल है. यह सरकारी अस्पताल सोमवार रात से लगातार घायलों को देख रहा है, जब दंगारोधी पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई थी. इसमें 19 लोगों की मौत की खबर आई थी.
बुधवार को अस्पताल ने ज्यादातर घायलों को डिस्चार्ज कर दिया, लेकिन डॉक्टर अब भी अलर्ट पर हैं कि कहीं और मरीज न आ जाएं. “पुलिस ने अस्पताल के अंदर तक, इमरजेंसी वार्ड तक, लोगों पर लाठीचार्ज किया,” एक डॉक्टर ने बताया, जिन्होंने खुद कई घायलों का इलाज किया. “और उन्होंने रबर और धातु दोनों तरह की गोलियां इस्तेमाल कीं.”
अस्पताल परिसर में खामोशी है, लेकिन बेचैनी भी बनी हुई है. पिछले दो दिनों की अफरा-तफरी अब भी लोगों के दिमाग में है, भले ही वे अपने रोज़मर्रा के काम कर रहे हों.
परिसर के एक कोने में एक बड़ा सफेद पोस्टर टंगा है, जो प्रदर्शन में घायल मरीजों और उनके साथियों को संबोधित करता है.
पोस्टर पर लाल नेपाली अक्षरों में लिखा है—‘फ्री मील सर्विस.’ इसके नीचे ‘Gen Z’ लिखा है. यह व्यवस्था कई गैर-सरकारी संगठनों ने मिलकर की है, जो शहर के कई अस्पतालों में गर्म खाना बांट रहे हैं.

“यह पूरी तरह हमारी अपनी पहल है. हमारे पास कोई दानदाता नहीं है,” कृष्ण प्रणामी समाज के सदस्य मात्रिका प्याकुरेल ने कहा. “हमने यह दो दिन पहले शुरू किया और अब तक 400 से 500 लोगों को खाना खिलाया.”
प्याकुरेल द्वारा किराए पर ली गई एक एंबुलेंस रसोई से सभी अस्पतालों तक खाना पहुंचा रही है. उसने स्टील की बाल्टियों में गर्म खाना उतारना शुरू किया. डॉक्टर, नर्स और मरीजों के परिजन अस्थायी स्टॉल के पास जमा होकर थालियों में चावल और दाल भरने लगे.
