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गुरूवार, 19 जून, 2025
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हिंसक उग्रवाद में शामिल सिख अलगाववादी ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा’—कनाडा की खुफिया रिपोर्ट

वार्षिक खुफिया रिपोर्ट में भारत को कनाडा में जासूसी गतिविधियों को अंजाम देने वाले मुख्य देशों में से एक बताया गया है. इस सूची में चीन, रूस और ईरान भी शामिल हैं.

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नई दिल्ली: कनाडाई खुफिया एजेंसी की वार्षिक रिपोर्ट में बुधवार को कहा गया कि कनाडा में मुख्य रूप से राजनीतिक मकसद से प्रेरित हिंसक उग्रवाद (पीएमवीई) का खतरा 1980 के दशक के मध्य से कनाडा-आधारित सिख अलगाववादियों के जरिए सामने आया है. ये सिख अलगाववादी “भारत के पंजाब में एक स्वतंत्र राष्ट्र ‘खालिस्तान’ बनाने के लिए हिंसक तरीकों का इस्तेमाल करने और उसका समर्थन करने की कोशिश कर रहे हैं.”

रिपोर्ट में हिंसक उग्रवाद में शामिल सिख अलगाववादियों को “राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा” बताया गया है.

“राजनीतिक रूप से प्रेरित हिंसक उग्रवाद नए राजनीतिक तंत्र या मौजूदा व्यवस्थाओं के भीतर नए ढांचे या मानदंड स्थापित करने के लिए हिंसा के इस्तेमाल को बढ़ावा देता है. पीएमवीई से जुड़े लोग दुनियाभर में नए राजनीतिक तंत्र या संस्थाएं स्थापित करने के लिए हमलों की योजना बनाने, फंडिंग और उन्हें अंजाम देने का काम करते हैं,” कनाडा सुरक्षा खुफिया सेवा (सीएसआईएस) की सार्वजनिक रिपोर्ट 2024 में कहा गया है.

यह रिपोर्ट मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कनाडाई समकक्ष मार्क कार्नी के बीच अल्बर्टा में जी7 सम्मेलन के मौके पर हुई मुलाकात के एक दिन बाद आई है. दोनों नेताओं ने नई दिल्ली और ओटावा में उच्चायुक्तों की “जल्द वापसी” पर सहमति जताई, जो संबंधों को सामान्य करने की दिशा में एक कदम है.

कनाडा के साथ भारत के कूटनीतिक रिश्तों में ठंडक सितंबर 2023 में उस वक्त आ गई थी जब तत्कालीन कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत सरकार पर भारत द्वारा आतंकवादी घोषित हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा में हत्या से जुड़े होने का आरोप लगाया था. बुधवार को ब्रिटिश कोलंबिया के सरे शहर में एक गुरुद्वारे के बाहर हुई निज्जर की हत्या की दूसरी बरसी थी.

भारत ने इन आरोपों को “बेतुका” बताया था और कहा था कि अब तक नई दिल्ली के साथ ऐसा कोई सबूत साझा नहीं किया गया है जिससे इसके अधिकारियों का इस हत्या से संबंध साबित होता हो. इस हत्या के मामले में चार भारतीय नागरिकों को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन उनका अब तक भारत सरकार से कोई संबंध नहीं बताया गया है.

भारत के लिए, कनाडा में सिख अलगाववादियों और संगठित अपराध को मिली जगह एक बड़ा मुद्दा रहा है. उदाहरण के लिए, 2023 की सार्वजनिक रिपोर्ट में निज्जर की हत्या का जिक्र था, लेकिन उसमें सिख अलगाववादियों द्वारा पीएमवीई गतिविधियों में शामिल होने का कोई जिक्र नहीं था, जबकि उस समय भारत के राजनयिकों को कनाडा में धमकियां मिल रही थीं.

हालांकि, 2024 की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि “कुछ कनाडाई नागरिक खालिस्तान आंदोलन के समर्थन में वैध और शांतिपूर्ण अभियान चलाते हैं.”

रिपोर्ट में कहा गया है, “खालिस्तान के लिए स्वतंत्र राज्य की शांतिपूर्ण वकालत को उग्रवाद नहीं माना जाता. केवल कुछ ही लोग खालिस्तानी उग्रवादी माने जाते हैं क्योंकि वे अब भी कनाडा को भारत में हिंसा को बढ़ावा देने, धन जुटाने या योजनाएं बनाने के लिए आधार के रूप में इस्तेमाल करते हैं.”

रिपोर्ट में कहा गया है, “हालांकि 2024 में कनाडा में CBKE से संबंधित कोई हमला नहीं हुआ, लेकिन CBKE (कनाडा स्थित खालिस्तानी चरमपंथी) द्वारा हिंसक गतिविधियों में शामिल होना कनाडा और कनाडाई हितों के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है. खास तौर पर, कनाडा से उभरने वाला वास्तविक और कथित खालिस्तानी चरमपंथ कनाडा में भारतीय विदेशी हस्तक्षेप गतिविधियों को बढ़ावा देता रहता है.”

भारत—कनाडा में जासूसी का मुख्य अपराधी

रिपोर्ट में भारत को कनाडा में जासूसी गतिविधियों के मुख्य आरोपियों में से एक बताया गया है, जिनमें चीन, रूस और ईरान भी शामिल हैं. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि भारत “कनाडाई समुदायों और राजनेताओं को प्रभावित करने की कोशिश करता है” और जब ये प्रयास “भ्रामक, गुप्त या धमकी भरे” होते हैं, तो इन्हें “विदेशी हस्तक्षेप” माना जाता है.

रिपोर्ट कहती है, “भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोबारा चुने जाने के साथ, भारत की राजनीतिक दिशा 2014 से लागू की जा रही हिंदू-राष्ट्रवादी नीति एजेंडे की निरंतरता होगी.” रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “भारत सरकार और निज्जर की हत्या के बीच संबंध खालिस्तान आंदोलन के खिलाफ भारत की दमनकारी कोशिशों में एक महत्वपूर्ण बढ़ोतरी को दर्शाते हैं और उत्तर अमेरिका में व्यक्तियों को निशाना बनाने की स्पष्ट मंशा को दिखाते हैं.”

हालांकि, निज्जर के मामले में, ओटावा ने अभी तक नई दिल्ली को किसी भी प्रकार का ठोस सबूत नहीं सौंपा है जिससे कथित संबंधों की पुष्टि हो सके. मोदी और कार्नी ने दोनों सरकारों के बीच कानून प्रवर्तन सहयोग को फिर से शुरू करने पर सहमति जताई है, ताकि द्विपक्षीय रिश्तों में मौजूद परेशानियों को बड़े रिश्तों से अलग किया जा सके.

इन संबंधों में दरार तब आई जब कनाडा ने भारत से अपने पांच राजनयिकों की छूट समाप्त करने की मांग की थी, जिनमें ओटावा में उस समय के उच्चायुक्त भी शामिल थे — जिसके जवाब में भारत ने अपने राजनयिकों को वापस बुला लिया और अक्टूबर 2024 में कनाडा के पांच राजनयिकों को, जिनमें वहां का कार्यवाहक उच्चायुक्त भी शामिल था, निष्कासित कर दिया. भारत पहले भी यह इनकार कर चुका है कि वह कनाडा के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है.

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए क्लिक करें)


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