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Thursday, 9 May, 2024
होमविदेशछर्रे के घाव, PTSD पीड़ित- मेडिकल आपूर्ति ठप होने के कारण जान बचाने के लिए गाजा सर्जनों की कठिन लड़ाई

छर्रे के घाव, PTSD पीड़ित- मेडिकल आपूर्ति ठप होने के कारण जान बचाने के लिए गाजा सर्जनों की कठिन लड़ाई

अल-शिफ़ा और नासिर अस्पतालों में चिकित्सा आपूर्ति ठप हो गई है. सर्जनों का कहना है कि डॉक्टर 12 घंटे से अधिक की शिफ्ट में हैं, जबकि वे खुद मनोवैज्ञानिक तनाव और आघात का सामना कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: पिछले दो हफ्तों से गाजा के अल-शिफा अस्पताल में डॉ. अहमद अलमाकदमा जब भी सर्जरी की तैयारी करते हैं तो उन्हें परेशानी होती है. उन्होंने कहा कि चिकित्सा आपूर्ति खत्म हो गई है. सर्जिकल उपकरणों को स्टरलाइज़ करना और घावों का इलाज करना हर गुजरते दिन के साथ और अधिक कठिन होता जा रहा है.

डॉ. अलमाकदमा ने दिप्रिंट को बताया कि बैक्टीरिया के घावों के इलाज के लिए सिरके का उपयोग जैसे अस्थायी तरीके अंतिम उपाय बन गए हैं. उन्होंने कहा, “लेकिन वास्तव में गाजा की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ध्वस्त हो गई है.”

प्लास्टिक और पुनर्निर्माण सर्जन ने कहा कि अस्पताल की अधिकतम 600 बिस्तरों की क्षमता से ज्यादा लोग आ चुके हैं जबकि गलियारों में अतिरिक्त बिस्तर लगाए गए हैं. उन्होंने कहा, इसके बावजूद जगह कम पड़ जाती है क्योंकि 100 और मरीजों को भर्ती करने की सख्त जरूरत है.

और ये सिर्फ अस्पताल में ठूंस-ठूंस कर भरे मरीज़ नहीं हैं. डॉ. अलमाकदमा ने कहा, “30,000 शरणार्थी अस्पताल के प्रांगण और गलियारों में शरण ले रहे हैं, ये वे लोग हैं जिन्होंने बमबारी के कारण अपने घर खो दिए हैं. अब उनका मानना है कि अस्पताल सुरक्षित स्थान हैं और उन्हें निशाना नहीं बनाया जाएगा.”

उन्होंने कहा, दो सप्ताह पहले एक हवाई हमले में उनका घर नष्ट हो गया था.

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गाजा के दूसरे सबसे बड़े अस्पताल, नासिर अस्पताल में भी स्थिति अलग नहीं है. डॉ. अहमद मोगराबी ने दिप्रिंट को बताया कि वह लगातार सदमे में हैं क्योंकि वह सर्जरी करते हैं और हर दो घंटे में मरीजों को छुट्टी दे देते हैं.

उन्होंने कहा, ऑपरेशन थिएटर (ओटी) में लगभग हर मरीज जलने से पीड़ित होता है, भले ही उनकी अन्य चोटों की प्रकृति कुछ भी हो.

उन्होंने कहा कि जगह खत्म हो गई है. घायलों को रखने के लिए मरीजों को डिस्चार्ज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

युद्ध के पहले सप्ताह के दौरान, 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास के हमले के बाद डॉ. मोगराबी ने कहा कि उन्होंने ऐसे कई मरीजों को देखा है जो जले हुए थे, जो इजरायली सरकार द्वारा सफेद फास्फोरस के इस्तेमाल के कारण जले हुए थे.

एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी इज़रायल पर गाजा में सैन्य हमलों में सफेद फास्फोरस का उपयोग करने का आरोप लगाया था.

हालांकि इस तरह के मामले फिलहाल बंद हो गए हैं लेकिन 400 बिस्तरों की क्षमता वाले अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ गई है, जहां आईवी फ्ल्यूड, सर्जिकल दस्ताने, धुंध पट्टियां और अन्य चिकित्सा आवश्यक चीजें खत्म हो रही हैं.

डॉ. मोगराबी ने दिप्रिंट को बताया, “मैं सामान्य महसूस नहीं कर रहा हूं, जो कुछ हो रहा है उससे मैं सदमे में हूं और भ्रम में हूं. मुझे यह भी नहीं पता कि मैंने आपसे बात करने की हिम्मत कैसे जुटाई क्योंकि मैं अभी भी ओटी में हूं और मैं जिस दौर से गुजरा हूं, उससे उबर नहीं पा रहा हूं.”

अल-शिफा अस्पताल में, ब्रिटिश-फिलिस्तीनी सर्जन डॉ घासन अबू-सिट्टा ने मरीजों और डॉक्टरों पर चल रहे युद्ध के मनोवैज्ञानिक प्रभाव के बारे में बताया.

उन्होंने उल्लेख किया कि इस सप्ताह की शुरुआत में, एक 16 वर्षीय लड़के को ऑपरेटिंग रूम में लाया गया था- जब परिवार रात का खाना खा रहा था तो उसके घर पर बमबारी की गई थी.

डॉ अबू-सिट्टा ने कहा, “लड़के का परिवार मर चुका है और उसके ऊपरी और निचले अंग और चेहरा जल गया है. वह बच जाएगा लेकिन जो हुआ उसके बाद वह सदमे में है. इस समय गाजा में लोग नशे में हैं- उनकी स्थिति का वर्णन करने का कोई अन्य तरीका नहीं है.”

उन्होंने कहा, अल-अहली अस्पताल पर बमबारी के परिणामस्वरूप अल-शिफा अस्पताल में और अधिक मरीज आने लगे हैं.

डॉ. अलमाकदमा ने भी अपने साथी सर्जन की तरह ऐसी ही कहानियां साझा कीं. उनके अधिकांश मरीज़ थर्ड डिग्री और फोर्थ डिग्री बर्न के साथ-साथ छर्रे के घावों से पीड़ित हैं. लेकिन उन्होंने कहा, मरीज पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) से भी पीड़ित हैं और “अक्सर बुरे सपने के कारण जाग जाते हैं और अपने बिस्तर पर रोने लगते हैं.”

उन्होंने कहा, “वे कहते हैं कि उनके प्रियजन उनकी आंखों के सामने मर गए. घायलों और मृतकों में बड़ी संख्या में बच्चे और महिलाएं हैं. 2,000 से अधिक बच्चे और 1,000 से अधिक महिलाएं मारे गए हैं.”

उन्होंने कहा, गाजा में डॉक्टरों के लिए मनोवैज्ञानिक तनाव और आघात व्याख्या से परे है. सर्जन ने कहा कि घर, परिवार या सहकर्मियों को खोने के बावजूद, वे प्रतिदिन 16 से 18 घंटे काम में लगे हैं.

दूसरे मरीज का ऑपरेशन करने के लिए वापस जाने से पहले डॉ. अलमाकादमा ने कहा, “गाजा में कोई सुरक्षित जगह नहीं है.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: कृष्ण मुरारी)


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