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Monday, 1 September, 2025
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SCO ने पहलगाम और जाफर एक्सप्रेस आतंकी हमलों की निंदा की, दोषियों को सज़ा दिलाने की मांग

तियानजिन घोषणा पत्र ने अमेरिका और इज़राइल द्वारा ईरान पर किए गए हवाई हमलों की कड़ी निंदा की, साथ ही गज़ा में बने भयावह हालात की ओर ले जाने वाली घटनाओं की भी निंदा की.

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नई दिल्ली: शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की तियानजिन घोषणा में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले के साथ-साथ पाकिस्तान में हुए खुज़दार और जाफर एक्सप्रेस पर हमलों की कड़ी निंदा की गई है.

यह घोषणा एससीओ के 10 सदस्य देशों के नेताओं द्वारा हस्ताक्षरित और स्वीकृत की गई, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं. हालांकि, पहले की घोषणाओं की तरह इस बार भी भारत ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से जुड़ी धाराओं से खुद को अलग रखा.

घोषणा पत्र में कहा गया, “सदस्य देश आतंकवाद के हर रूप और अभिव्यक्ति की कड़ी निंदा करते हैं और जोर देते हैं कि आतंकवाद से लड़ाई में दोहरे मानक अस्वीकार्य हैं. वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील करते हैं कि संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका के तहत, सुरक्षा परिषद के प्रासंगिक प्रस्तावों और वैश्विक आतंकवाद-रोधी रणनीति को पूरी तरह लागू करके, अंतरराष्ट्रीय कानून और यूएन चार्टर के सिद्धांतों के अनुसार आतंकवाद का मुकाबला किया जाए और सभी आतंकी संगठनों से मिलकर लड़ाई लड़ी जाए.”

घोषणा में आगे कहा गया, “सदस्य देशों ने 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले की कड़ी निंदा की. सदस्य देशों ने 11 मार्च को जाफर एक्सप्रेस और 21 मई 2025 को खुज़दार में हुए आतंकी हमलों की भी कड़ी निंदा की. उन्होंने मृतकों और घायलों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना जताई. साथ ही कहा कि ऐसे हमलों के दोषियों, योजनाकारों और प्रायोजकों को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए.”

जून में एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक आतंकवाद पर भाषा को लेकर सहमति तक नहीं पहुंच पाई थी, खासकर पहलगाम हमले की निंदा के मुद्दे पर.

हालांकि, इस बार सभी 10 सदस्य देशों ने नेताओं की घोषणा पर हस्ताक्षर किए, जिनमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ भी शामिल रहे. एससीओ कुछ गिने-चुने बहुपक्षीय मंचों में से एक है, जहां भारत और पाकिस्तान दोनों सदस्य हैं. अन्य सदस्य देश हैं — बेलारूस, चीन, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, ईरान, उज़्बेकिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान.

भारत के लिए यह घोषणा महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें आतंकवादी हमलों के दोषियों को न्याय के कटघरे में लाने और “सीमा पार से आतंकवादियों की आवाजाही” को स्वीकार करने की बात कही गई है, जो नई दिल्ली की पुरानी मांग रही है. भारत ने यह भी कहा है कि पहलगाम का आतंकी हमला, जिसमें 26 लोगों की जान गई, सीमा पार से आए आतंकवादियों द्वारा किया गया था.

इसके जवाब में भारत ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसमें पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान में स्थित 10 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया, जिनमें बहावलपुर और मुरिदके भी शामिल थे. नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच 87 घंटे तक संघर्ष चला, जो बाद में दोनों सेनाओं द्वारा सीज़फायर पर खत्म हुआ.

प्रधानमंत्री मोदी ने एससीओ बैठक में अपने संबोधन के दौरान आतंकवाद का मुद्दा उठाते हुए कहा कि आतंकवाद से लड़ाई में “दोहरे मानक नहीं होने चाहिए.” रविवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय मुलाकात में भी मोदी ने कहा कि भारत और चीन दोनों आतंकवाद से प्रभावित देश हैं.


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एकतरफा दबाव वाली कार्रवाई का विरोध

एससीओ नेताओं ने किसी भी तरह की “एकतरफा दबाव वाली कार्रवाई, जिनमें आर्थिक प्रकृति की कार्रवाई भी शामिल है” का विरोध किया है. यह इशारा हाल के महीनों में रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों और अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ की ओर माना जा रहा है.

घोषणा पत्र में कहा गया, “सदस्य देश किसी भी एकतरफा दबाव वाली कार्रवाई, जिनमें आर्थिक प्रकृति की कार्रवाई भी शामिल है, का विरोध करते हैं. ये कदम संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून के अन्य नियमों का उल्लंघन करते हैं, विश्व व्यापार संगठन के नियमों और सिद्धांतों के खिलाफ हैं, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को नुकसान पहुंचाते हैं, खासकर खाद्य और ऊर्जा से जुड़े हिस्सों को. ये वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर डालते हैं, निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को कमजोर करते हैं, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में बाधा डालते हैं.”

हालांकि, इसमें यह साफ नहीं किया गया कि आर्थिक प्रकृति के “दबाव वाले कदम” कौन-से माने जाएंगे, लेकिन हाल के महीनों में अमेरिका ने कई एससीओ सदस्य देशों पर बड़े टैरिफ लगाए हैं. 2018 से ही अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध चल रहा है, जब तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ चीनी निर्यात पर भारी टैरिफ लगाए थे. ये टैरिफ आज तक जारी हैं.

अप्रैल से ट्रंप ने कई देशों पर टैरिफ और बढ़ा दिए. 27 अगस्त से भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लागू हो गए, जो अमेरिका के सभी व्यापारिक साझेदारों में सबसे ज्यादा हैं.

वहीं, रूस पर यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से पश्चिमी देशों के नेतृत्व में कई कड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं. इसके चलते रूस को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली से बाहर कर दिया गया और उसके कच्चे तेल की बिक्री पर भी दाम की सीमा तय कर दी गई.

अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) ने ये प्रतिबंध रूस की युद्ध अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए लगाए, लेकिन तियानजिन घोषणा पत्र में यूक्रेन का कहीं ज़िक्र नहीं किया गया.

ईरान और गज़ा पर

एससीओ सदस्य देशों ने जून 2025 में इज़रायल और अमेरिका द्वारा ईरान पर किए गए हमलों की कड़ी निंदा की है. गौर करने वाली बात यह है कि उस समय भारत ने इस पर जारी एससीओ बयान से खुद को अलग रखा था और अपनी अलग प्रतिक्रिया दी थी. भारत के ईरान और इज़रायल दोनों से संबंध हैं.

घोषणा पत्र में कहा गया, “सदस्य देशों ने जून 2025 में इज़रायल और अमेरिका द्वारा ईरान इस्लामिक गणराज्य पर किए गए सैन्य हमलों की कड़ी निंदा की. नागरिक ठिकानों पर ऐसे आक्रामक हमले, जिनमें परमाणु ऊर्जा ढांचा भी शामिल है और जिनसे आम लोगों की मौत हुई, अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों का गंभीर उल्लंघन है. यह ईरान की संप्रभुता पर हमला है. ये कदम क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा को कमजोर करते हैं और विश्व शांति व स्थिरता पर गंभीर असर डालते हैं.”

इज़रायल और अमेरिका के हमलों में ईरान की परमाणु सुविधाओं को निशाना बनाया गया, जिनमें फोर्डो (Fordow) भी शामिल था. इन हमलों में ईरान के कई वरिष्ठ अधिकारी भी मारे गए. अमेरिका ने इसके लिए अपने बी-2 स्टील्थ बमवर्षक का इस्तेमाल किया, ताकि गहरे भूमिगत फोर्डो केंद्र को निशाना बनाया जा सके.

एससीओ ने इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष की बढ़ती स्थिति पर भी गहरी चिंता जताई और गज़ा पट्टी में पैदा हुई “भयावह मानवीय स्थिति” के लिए जिम्मेदार कार्रवाइयों की कड़ी निंदा की.

गज़ा मुद्दे पर भारत लगातार दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन करता रहा है और साथ ही बंधकों की रिहाई व युद्धविराम की मांग करता रहा है, लेकिन एससीओ घोषणा पत्र में हमास द्वारा अब तक पकड़े गए इज़रायली बंधकों की वापसी का कोई उल्लेख नहीं है—जो इस मामले पर नई दिल्ली के रुख में हल्का बदलाव दिखाता है.

घोषणा पत्र में कहा गया, “वह इस बात पर जोर देते हैं कि तुरंत, पूरी तरह और स्थायी युद्धविराम होना चाहिए. मानवीय सहायता की पहुंच सुनिश्चित की जानी चाहिए और क्षेत्र के सभी निवासियों के लिए शांति, स्थिरता और सुरक्षा लाने के प्रयास तेज किए जाने चाहिए. सदस्य देश मानते हैं कि मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता का एकमात्र रास्ता फिलिस्तीनी मुद्दे का व्यापक और न्यायपूर्ण समाधान है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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