नई दिल्ली: यूक्रेन युद्ध के एक साल होने के बाद भी पश्चिम देशों और रूस के अपने-अपने रुख पर अडिग होने के बीच तमाम वैश्विक मंचों की इसका कोई समाधान निकालने की क्षमता सवालों के घेरे में आ गई है. यही वजह है कि विदेश मंत्रालय (एमईए) ने आज नई दिल्ली में होने जा रही जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के चर्चा सत्रों के लिए सूचीबद्ध विषयों में ‘बहुपक्षीय संबंधों की मजबूती’ को सबसे ऊपर रखा है.
जी-20 अध्यक्ष के तौर पर भारत के समक्ष यूक्रेन युद्ध पर पश्चिमी देशों और रूस के बीच आम सहमति बनाने की कोशिश करने की एक अहम ज़िम्मेदारी है, साथ ही उसे यह भी सुनिश्चित करना है कि विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन और ऋण संकट जैसे मुद्दों की अनदेखी न हो.
विशेषज्ञों की राय है कि यूक्रेन युद्ध ने संयुक्त राष्ट्र और जी-20, जिसमें 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल है, जैसे बहुपक्षीय मंचों का ‘ध्रुवीकृत’ और ‘निरर्थक’ बना दिया है.
पिछले हफ्ते, संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में यूक्रेन से रूसी सैनिकों की तत्काल वापसी के लिए लाए गए एक प्रस्ताव पर कई देश बंटे नज़र आए, जिसमें 141 वोट पक्ष में पड़े, जबकि सात इसके खिलाफ थे और 32 देश गैर-हाजिर रहे. भारत तीसरी श्रेणी का हिस्सा था.
पिछले साल फरवरी में, जब रूस ने यूक्रेन पर हमला शुरू किया, से लेकर अब तक इस तरह के कई गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव यूएनजीए में पेश किए जा चुके हैं.
इस मामले में देशों की विभाजित राय पिछले साल अप्रैल में सबसे अधिक स्पष्ट दिखी जब 93 देशों ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से रूस की सदस्यता को निलंबित करने संबंधी प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, 24 ने विरोध किया और 58 अनुपस्थित रहे.
जी-20 में भी पिछले साल तब अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई, जब रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव इंडोनेशिया में जी-20 के विदेश मंत्रियों की बैठक छोड़कर चले गए. चूंकि जी-20 सर्वसम्मति के आधार पर काम करता है, इसलिए बैठक के बाद कोई संयुक्त बयान जारी नहीं किया गया.
बेंगलुरू में शनिवार को जी-20 के वित्त मंत्रियों की बैठक के दौरान भी कुछ ऐसा ही हुआ, जिसमें अध्यक्ष भारत की ओर से जारी संक्षिप्त बयान में कहा गया कि आउटकम डॉक्यूमेंट के कुछ हिस्सों से रूस और चीन सहमत नहीं थे.
हालांकि, कुछ राजनयिकों को पूरी उम्मीद है कि भारत दो विरोधी ब्लॉक के बीच एक सेतु बनने में सक्षम होगा क्योंकि रूस के साथ उसके अच्छे संबंध हैं—जो उसके लिए कच्चे तेल और सैन्य आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है—और साथ ही अमेरिका भी इंडो-पैसिफिक रीजन में एक प्रमुख रणनीतिक सहयोगी है.
संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर शॉम्बी शार्प ने गत दिसंबर में दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, ‘‘भारत अपनी साख की वजह विश्व के विभिन्न समूहों के बीच एक सेतु की तरह है.’’
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‘बहुपक्षीय मंचों को कमजोर कर रहा यूक्रेन युद्ध’
यूक्रेन में पिछले एक साल से जारी युद्ध के दौरान पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को सैन्य सहायता बढ़ा दी है, अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी अब उसकी राजधानी कीव में टैंक भेजने की योजना भी बना रहे हैं.
भारत जैसे देश संवाद और कूटनीतिक समाधान पर जोर दे रहे हैं और युद्धग्रस्त देश को केवल मानवीय सहायता भेजने पर अडिग रहे हैं.
इस बीच, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि रूस कूटनीतिक समाधान के लिए तैयार है लेकिन अपनी सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा.
विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि यूक्रेन युद्ध संयुक्त राष्ट्र और जी-20 जैसे मंचों को ‘कमजोर’ कर रहा है.
पूर्व राजनयिक टीसीए राघवन ने दिप्रिंट से कहा, ‘‘पश्चिम देशों और रूस दोनों ने जो रुख अपना रखा है, वो बहुपक्षवाद को मिटा रहा है. यूक्रेन की स्थिति ने जी20, संयुक्त राष्ट्र और अन्य मंचों का ध्रुवीकरण कर दिया है. अमूमन तटस्थ रहने वाले स्वीडन और फिनलैंड जैसे देश अब नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) में शामिल होना चाहते हैं.’’
उन्होंने कहा कि पिछले साल रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता ‘विफल’ हो गई और बाकी दुनिया संघर्ष के आर्थिक परिणामों को झेल रही है.
चीन में भारत के पूर्व राजदूत अशोक कांता ने कहा कि यूक्रेन युद्ध ने अन्य वैश्विक मुद्दों को पीछे छोड़ दिया है. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘‘यूक्रेन मुद्दा विभिन्न बहुपक्षीय मंचों को धीरे-धीरे निरर्थक बनाता जा रहा है.’’
राजनयिक ने कहा, ‘‘सार्वजनिक विमर्श और धारणा यही बन रही है कि यह जी-20 के एजेंडे पर हावी हो रहा है और विकासशील देशों पर युद्ध के प्रतिकूल प्रभाव और उनके ऋण संकट को दूर करने की तात्कालिक जरूरत जैसे अन्य मुद्दे पीछे होते जा रहे हैं.’’
(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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