नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र को संबोधित किया उन्होंने अपने संबोधन में पाकिस्तान का नाम लिए बगैर आतंकवाद का जिक्र करते हुए इसे विश्व के लिए एक चुनौती बताया. उन्होंने विश्व को आतंक के खिलाफ एकजुट होने के लिए कहा.
संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री का संबोधन
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र को 130 करोड़ भारतीयों की तरफ से संबोधित करना, मेरे लिए गौरव का अवसर है. ये अवसर, इसलिए भी विशेष है, क्योंकि इस वर्ष पूरा विश्व, महात्मा गांधी की 150वीं जन्म जयंती मना रहा है. सत्य और अहिंसा का उनका संदेश, विश्व की शांति, प्रगति और विकास के लिए आज भी प्रासंगिक है.
इस वर्ष दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव हुआ. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में, दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों ने वोट देकर, मुझे और मेरी सरकार को पहले से ज्यादा मजबूत जनादेश दिया. और इस जनादेश की वजह से ही आज फिर मैं यहां हूं. लेकिन इस जनादेश से निकला संदेश इससे भी ज्यादा बड़ा है, ज्यादा व्यापक है, ज्यादा प्रेरक है.
जब एक विकासशील देश, दुनिया का सबसे बड़ा स्वच्छता अभियान सफलतापूर्वक संपन्न करता है, सिर्फ 5 साल में 11 करोड़ से ज्यादा शौचालय बनाकर अपने देशवासियों को देता है, तो उसके साथ बनी व्यवस्थाएं पूरी दुनिया को एक प्रेरक संदेश देती हैं. जब एक विकासशील देश, दुनिया की सबसे बड़ी हेल्थ इश्योरेंस स्कीम सफलतापूर्वक चलाता है, 50 करोड़ लोगों को हर साल 5 लाख रुपए तक के मुफ्त इलाज की सुविधा देता है, तो उसके साथ बनी संवेदनशील व्यवस्थाएं, पूरी दुनिया को एक नया मार्ग दिखाती हैं.
जब एक विकासशील देश, दुनिया का सबसे बड़ा फाइनेंसियल इन्क्लूजन कार्यक्रम सफलतापूर्वक चलाता है, सिर्फ 5 साल में 37 करोड़ से ज्यादा गरीबों के बैंक खाते खोलता है, तो उसके साथ बनी व्यवस्थाएं, पूरी दुनिया के गरीबों में एक विश्वास पैदा करती हैं.
जब एक विकासशील देश, अपने नागरिकों के लिए दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल Identification प्रोग्राम चलाता है, उनको बायोमीट्रिक पहचान देता है, उनका हक पक्का करता है, भ्रष्टाचार को रोककर करीब 20 बिलियन डॉलर से ज्यादा बचाता है, तो उसके साथ बनी आधुनिक व्यवस्थाएं, पूरी दुनिया के लिए एक नई उम्मीद बनकर आती हैं.
मैंने यहां आते वक्त संयुक्त राष्ट्र की इमारत की दीवार पर पढ़ा- No More Single Use Plastic. मुझे सभा को ये बताते हुए खुशी हो रही है कि आज जब मैं आपको संबोधित कर रहा हूं, तब इस वक्त भी हम पूरे भारत को सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त करने के लिए एक बड़ा अभियान चला रहे हैं.
आने वाले 5 वर्षों में हम जल संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ ही 15 करोड़ घरों को पानी की सप्लाई से जोड़ने वाले हैं.
आने वाले 5 वर्षों में हम अपने दूर-दराज के गांवों में सवा लाख किलोमीटर से ज्यादा नई सड़कें बनाने जा रहे हैं.
वर्ष 2022, जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष का पर्व मनाएगा, तब तक हम गरीबों के लिए 2 करोड़ और घरों का निर्माण करने वाले हैं. विश्व ने भले ही टी.बी. से मुक्ति के लिए वर्ष 2030 तक का समय रखा हो, लेकिन हम 2025 तक भारत को टी.बी. मुक्त करने के लिए काम कर रहे हैं. सवाल ये है कि आखिर ये सब हम कैसे कर पा रहे हैं, आखिर नए भारत में बदलाव तेजी से कैसे आ रहा है?
भारत, हजारों वर्ष पुरानी एक महान संस्कृति है, जिसकी अपनी जीवंत परंपराएं हैं, जो वैश्विक सपनों को अपने में समेटे हुए है. हमारे संस्कार, हमारी संस्कृति, जीव में शिव देखती है. इसीलिए, हमारा प्राणतत्व है कि जन-भागीदारी से जन-कल्याण हो और ये जन-कल्याण भी सिर्फ भारत के लिए नहीं जग-कल्याण के लिए हो. और तभी तो, हमारी प्रेरणा है-
सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास.
और ये सिर्फ भारत की सीमाओं में सीमित नहीं है. हमारा परिश्रम, न तो दया भाव है और न ही दिखावा. ये सिर्फ और सिर्फ कर्तव्य भाव से प्रेरित है. हमारे प्रयास, 130 करोड़ भारतीयों को केंद्र में रखकर हो रहे हैं लेकिन ये प्रयास जिन सपनों के लिए हो रहे हैं, वो सारे विश्व के हैं, हर देश के हैं, हर समाज के हैं. प्रयास हमारे हैं, परिणाम सभी के लिए हैं, सारे संसार के लिए हैं. मेरा ये विश्वास दिनों-दिन तब और भी दृढ़ हो जाता है, जब मैं उन देशों के बारे में सोचता हूं, जो विकास की यात्रा में भारत की तरह ही अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं.
जब मैं उन देशों के सुख-दुख सुनता हूं, उनके सपनों से परिचित होता हूं, तब मेरा ये संकल्प और भी पक्का हो जाता है कि मैं अपने देश का विकास और भी तेज गति से करूं जिससे भारत के अनुभव उन देशों के भी काम आ सकें.
आज से तीन हजार वर्ष पूर्व, भारत के महान कवि, कणियन पूंगुन्ड्रनार ने विश्व की प्राचीनतम भाषा तमिल में कहा था-
‘यादुम् ऊरे, यावरुम् केड़िर’.
यानि
‘हम सभी स्थानों के लिए अपनेपन का भाव रखते हैं और सभी लोग हमारे अपने हैं’.
देश की सीमाओं से परे, अपनत्व की यही भावना, भारत भूमि की विशेषता है. भारत ने बीते पाँच वर्षों में, सदियों से चली आ रही विश्व बंधुत्व और विश्व कल्याण की उस महान परंपरा को मजबूत करने का काम किया है, जो संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का भी ध्येय रही है. भारत जिन विषयों को उठा रहा है, जिन नए वैश्विक मंचों के निर्माण के लिए भारत आगे आया है, उसका आधार वैश्विक चुनौतियां हैं, वैश्विक विषय हैं और गंभीर समस्याओं के समाधान का सामूहिक प्रयास है.
अगर इतिहास और Per Capita Emission के नजरिए से देखें, तो ग्लोबल वॉर्मिंग में भारत का योगदान बहुत ही कम रहा है. लेकिन इसके समाधान के लिए कदम उठाने वालों में भारत एक अग्रणी देश है. एक ओर तो, हम भारत में 450 गीगावॉट रीन्यूएबल एनर्जी के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर हमने इंरटनेशनल सोलर अलायंस स्थापित करने की पहल भी की है.
ग्लोबल वॉर्मिंग का एक प्रभाव ये भी है कि Natural Disasters की संख्या और उनकी तीव्रता तो बढ़ती ही जा रही है, उनका दायरा और उनके नए-नए स्वरूप भी सामने आ रहे हैं. इस स्थिति को देखते हुए ही भारत ने “Coalition For Disaster Resilient Infrastructure (CDRI) बनाने की पहल की है. इससे ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में मदद मिलेगी जिन पर प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव कम से कम होगा.
यू.एन. पीसकीपिंग मिशन्स में सबसे बड़ा बलिदान अगर किसी देश ने दिया है, तो वो भारत है. हम उस देश के वासी हैं जिसने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिए हैं, शांति का संदेश दिया है. और इसलिए हमारी आवाज में आतंक के खिलाफ दुनिया को सतर्क करने की गंभीरता भी है और आक्रोश भी. हम मानते हैं कि ये किसी एक देश की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की और मानवता की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. आतंक के नाम पर बंटी हुई दुनिया, उन सिद्धांतों को ठेस पहुंचाती है, जिनके आधार पर यू.एन. का जन्म हुआ है. औऱ इसलिए मानवता की खातिर, आतंक के खिलाफ पूरे विश्व का एकमत होना, एकजुट होना मैं अनिवार्य समझता हूं.
आज विश्व का स्वरूप बदल रहा है. 21वीं सदी की आधुनिक टेक्नोलॉजी, समाज जीवन, निजी जीवन, अर्थव्यवस्था, सुरक्षा, कनेक्टिविटी और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सामूहिक परिवर्तन ला रही है. इन परिस्थितियों में एक बिखरी हुई दुनिया किसी के हित में नहीं है. ना ही हम सभी के पास अपनी-अपनी सीमाओं के भीतर सिमट जाने का विकल्प है. इस नए दौर में हमें Multi-lateralism और सयुंक्त राष्ट्र को नयी शक्ति, नयी दिशा देनी ही होगी.
सवा सौ साल पहले भारत के महान आध्यात्मिक गुरु, स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में World Parliament of Religions के दौरान विश्व को एक संदेश दिया था. ये संदेश था- “Harmony and Peace and not Dissension .
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का, आज भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यही संदेश है-Harmony and Peace.
(भाषण भारतीय विदेश मंत्रालय से लिया गया है)