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Sunday, 3 November, 2024
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पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा बढ़ी, मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में आया सामने

रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी की और पिछली सरकारें दोनों ने संसद की सर्वोच्चता को सम्मान देने में नाकाम रही हैं, जबकि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच झगड़े ने संस्थागत विश्वसनीयता को कम किया है.

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इस्लामाबाद (पाकिस्तान) : इस सप्ताह के शुरू में जारी स्टेट ऑफ ह्यूमन राइट्स 2022 की सालाना रिपोर्ट में  पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) ने दिखाया है कि पिछले साल देश में राजनीतिक और आर्थिक खलबली ने मानवाधिकार अधिकारों पर गंभीर असर डाला है. आयोग ने इसको लेकर चिंता जाहिर की है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी की और पिछली सरकारें दोनों ने संसद की सर्वोच्चता को सम्मान देने में नाकाम रही हैं, जबकि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच झगड़े ने संस्थागत विश्वसनीयता को कम किया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानूनों का इस्तेमाल असहमति का गला घोंटने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किये जाने के साथ इस साल राजनीतिक अत्याचार लगातार जारी रहा. हिरासत में प्रताड़ना का दावा किया गया है- विडंबना यह है कि उसी वर्ष जब संसद ने प्रताड़ना के अपराधीकरण को लेकर विधेयक पारित किया बावजूद दर्जनों पत्रकार और विपक्षी नेता गिरफ्तार हुए, एचआरसीपी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है.

पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ सफल अविश्वास प्रस्ताव के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में कानून प्रवर्तन कर्मियों को प्रदर्शनकारियों के साथ संघर्ष करते देखा गया, साथ ही सदन की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हुआ और दुरुपयोग किया गया.

इस साल आतंकवादी हमलों में चिंताजनक बढ़ोत्तरी देखी गई, पांच सालों में सबसे ज्यादा जिसमें 533 लोगों ने जान गंवाई, एचआरसीपी रिपोर्ट ने कहा, नागरिकों चेतावनियों के बावजूद ये घटनाएं हुईं, खासकर खैबर पख्तूनख्वा में, यह राज्य लगातार उग्रवाद को संभालने में लड़खड़ाता रहा.

एचआरसीपी ने, विशेष रूप से बलूचिस्तान में जबरन गुमशुदगी में इजाफे का भी जिक्र किया है, तब रिपोर्ट किए गए 2,210 मामलों के अनसुलझे होने के साथ ही नेशनल असेंबली ने अधिनियम को आपराधिक बनाने वाला बिल पेश किया था.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से बाढ़ ने देश के ज्यादातर हिस्सों को तबाह कर दिया है, 33 मिलियन से अधिक प्रभावित व्यक्तियों के लिए राहत और पुनर्वास हुत कम रहा. एचआरसीपी ने रिपोर्ट में कहा है कि इसको लेकर लुंज-पुंज कदम ने हर प्रांत और क्षेत्र में सशक्त, अच्छी तरह से संसाधनों वाली स्थानीय सरकारों की जरूरत को रेखांकित किया.

इसमें कहा गया है कि धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता को लेकर बढ़ते खतरे गंभीर चिंता का विषय बने हुए हैं, यह कहते हुए कि ईशनिंदा को लेकर पुलिस रिपोर्ट करने में गिरावट आई है, मॉब लिंचिंग की घटनाओं में इजाफा हुआ है.

अहमदिया समुदाय खासतौर से खतरे में है, प्रमुखता से पंजाब में कई पूजा स्थलों और 90 से ज्यादा कब्रों को अपवित्र किया गया. एचआरसीपी की रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा बदस्तूर जारी है. कम से कम 4,226 रेप और गैंगेरेप के मामलों में अपराधियों को सजा दर बेहद कम है.

साथ ही, ट्रांस लोगों के साथ हिंसा और भेदभाव बढ़ा है, रिपोर्ट में कहा गया है कि मुश्किल से हासिल किए गए ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2018 के खिलाफ रूढ़िवादी प्रतिक्रिया ने इसे और जटिल बना दिया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साल में देश की आर्थिक हालत बिगड़ने लगी, जिसकी वजह से मजदूरों, किसानों की घोर उपेक्षा की गई.

हालांकि न्यूनतम वेतन बढ़ाया गया लेकिन देश अभी तक यह ध्यान नहीं दे पाया है कि यह मजूदरी जिंदा रहने के लिए कम है, रिपोर्ट में इसका जिक्र किया गया है.

इसके अलावा, लगभग 1200 बंधुआ मजदूरों को सिंध में मुक्त कराया गया, 2022 में गठित जिला सतर्कता समितियां काफी हद तक निष्क्रिय बनी रहीं, एचआरसीपी ने कहा, कि देश के 90 मजदूरों के साथ खदानों में मरने वालों की संख्या भी बहुत अधिक रही.

एचआरसीपी ने इन मुद्दों पर देश द्वारा तत्काल कार्रवाई की मांग की, अगर इसे राजनीति, कानून और शासन के लिए एक जन-समर्थक दृष्टिकोण की ओर बढ़ना है तो.


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