नई दिल्ली: पाकिस्तान ने गुरुवार को घोषणा की कि सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान की ओर पानी के प्रवाह को मोड़ने के किसी भी प्रयास को “युद्ध की कार्रवाई” माना जाएगा और साथ ही कहा कि वह “भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौतों को स्थगित रखने के अधिकार का प्रयोग करेगा, जिसमें शिमला समझौता भी शामिल है, लेकिन उस तक सीमित नहीं है”.
पाकिस्तान ने भारत की कई दंडात्मक कार्रवाइयों के जवाब में जैसे को तैसा कूटनीतिक उपायों की घोषणा की — जिसमें सिंधु जल संधि 1960 को निलंबित करना भी शामिल है — बुधवार शाम को पहलगाम आतंकवादी हमले पर सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (सीसीएस) की बैठक के बाद घोषणा की गई जिसमें 22 अप्रैल को 25 पर्यटक और एक स्थानीय व्यक्ति मारे गए थे.
पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, देश का शीर्ष नागरिक-सैन्य मंच जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ करते हैं, उसने इस मामले पर चर्चा करने के लिए गुरुवार को बैठक की.
बैठक के बाद, प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने एक बयान जारी किया कि पहलगाम हमला क्षेत्र में “व्यवस्थित उत्पीड़न, जनसांख्यिकीय इंजीनियरिंग और अधिकारों के हनन” का परिणाम था. बयान में कहा गया कि किसी भी विश्वसनीय सबूत के अभाव में पाकिस्तान को इस घटना से जोड़ना “तर्कहीन” है.
अपने कूटनीतिक प्रतिशोध में पाकिस्तान ने भारतीय स्वामित्व वाली और संचालित एयरलाइनों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद करने की घोषणा की, इस्लामाबाद में अपने उच्चायोग से भारतीय सैन्य, नौसेना और वायु सलाहकारों को निष्कासित कर दिया, इस्लामाबाद में भारत के राजनयिक कर्मचारियों की संख्या घटाकर 30 कर दी और भारतीय नागरिकों के लिए सभी सार्क वीज़ा छूट योजना (एसवीईएस) वीज़ा रद्द कर दिए.
इसने वाघा सीमा बॉर्डर को भी बंद कर दिया — जो दोनों देशों के बीच आने-जाने का मैन रास्ता है और तीसरे देशों के माध्यम से भारत के साथ सभी व्यापार को निलंबित कर दिया.
भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने पर राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (एनएससी) ने कहा, “सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान से संबंधित जल के प्रवाह को रोकने या मोड़ने का कोई भी प्रयास और निचले तटवर्ती क्षेत्रों के अधिकारों का हनन, युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा.”
इसने कहा कि पाकिस्तान अपने तटवर्ती क्षेत्रों के अधिकारों के किसी भी उल्लंघन का “राष्ट्रीय शक्ति के पूरे स्पेक्ट्रम में पूरी ताकत से” जवाब देगा.
भारत पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति “लापरवाह” अवहेलना करने और “आतंकवाद को बढ़ावा देने” का आरोप लगाते हुए पाकिस्तान ने यह भी कहा कि वह 1972 के शिमला समझौते को तब तक स्थगित कर सकता है, जब तक कि नई दिल्ली अपना रुख नहीं बदल लेता.
शिमला समझौते ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) को दोनों देशों के बीच वास्तविक सैन्य रेखा के रूप में स्थापित किया. 1984 के सियाचिन या 1999 के कारगिल युद्ध जैसे संघर्षों के दौरान भी, दोनों पक्षों द्वारा ऐतिहासिक रूप से इसका सम्मान किया गया है.
एनएससी ने यह भी कहा कि भारत की कार्रवाइयों ने “द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को सही साबित किया है, जो कि पाकिस्तान के निर्माण का वैचारिक आधार है. इसने भारत में मुसलमानों को व्यवस्थित रूप से हाशिए पर धकेलने का भी आरोप लगाया और कश्मीर में भारत सरकार द्वारा उठाए गए “एकतरफा कदमों” की निंदा की, जिसमें कि अनुच्छेद 370 के प्रभावी प्रावधानों को हटाने का स्पष्ट संदर्भ था.
पहलगाम हमले पर भारत की प्रतिक्रिया को “एकतरफा, अन्यायपूर्ण, राजनीति से प्रेरित, बेहद गैरजिम्मेदार और कानूनी योग्यता से रहित” बताते हुए पाकिस्तान ने कश्मीर में पर्यटकों की हत्याओं में सीमा पार की संलिप्तता के किसी भी सुझाव को खारिज कर दिया.
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संधि प्रतिशोध और कूटनीतिक नतीजे
एनएससी ने कहा कि सिंधु जल संधि को रोकने का भारत का कदम एक अंतरराष्ट्रीय समझौते का “लापरवाह और गैरकानूनी” उल्लंघन है जिसे एकतरफा तरीके से रद्द नहीं किया जा सकता. समिति ने कहा कि भारत की कार्रवाई घरेलू राजनीतिक गणनाओं से प्रेरित थी और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए सीधा खतरा है.
पाकिस्तान ने वाघा बॉर्डर को भी बंद करने की घोषणा की. दोनों देशों के बीच आने-जाने के लिए बना मैन रास्ता और तीसरे देशों के माध्यम से भारत के साथ सभी व्यापार को निलंबित कर दिया. ये महत्वपूर्ण कदम द्विपक्षीय संबंधों में लगभग पूर्ण विच्छेद का प्रतीक हैं क्योंकि भारत पहले ही अटारी बॉर्डर को बंद करने की घोषणा कर चुका है.
पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र को भारतीय स्वामित्व वाली और संचालित एयरलाइनों के लिए बंद घोषित कर दिया गया, जिससे गतिरोध और बढ़ गया. एनएससी ने कहा, “ये उपाय पाकिस्तान की संप्रभुता, गरिमा और उसके लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए ज़रूरी हैं.” जवाबी कार्रवाई की सीरीज़ में पाकिस्तान ने इस्लामाबाद में अपने उच्चायोग से भारतीय सैन्य, नौसेना और वायु सलाहकारों को निष्कासित कर दिया और उन्हें 30 अप्रैल तक बाहर निकलने की मौहलत दी है.
भारत के उपायों के समान ही, उसने इस्लामाबाद में भारत के राजनयिक कर्मचारियों की संख्या घटाकर 30 कर दी, सिख धार्मिक तीर्थयात्रियों को छोड़कर भारतीय नागरिकों के लिए सभी सार्क वीज़ा छूट योजना (एसवीईएस) वीज़ा रद्द कर दिए. एसवीईएस वीज़ा धारकों को पाकिस्तान से बाहर निकलने के लिए 48 घंटे का समय दिया गया.
कश्मीर और द्वि-राष्ट्र सिद्धांत
एनएससी के बयान में कश्मीर पर पाकिस्तान की दीर्घकालिक स्थिति पर भी जोर दिया गया और पहलगाम हमले को क्षेत्र में “व्यवस्थित उत्पीड़न, जनसांख्यिकीय इंजीनियरिंग और अधिकारों के हनन” का परिणाम बताया गया.
इसने भारत पर जम्मू-कश्मीर में अपनी “नाकामयाबियों” से ध्यान हटाने और अपनी पूर्वी सीमा पर पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए हमले का “इस्तेमाल” करने का आरोप लगाया.
एनएससी ने कहा, “किसी भी विश्वसनीय सबूत के अभाव में, पहलगाम घटना से पाकिस्तान को जोड़ने का प्रयास तर्कहीन है और एक घिसी-पिटी कहानी को दर्शाता है.”
समिति ने भारत में घरेलू घटनाक्रमों, जिसमें वक्फ (संशोधन) अधिनियम का पारित होना भी शामिल है, को मुसलमानों के “बढ़ते हाशिए पर जाने के संकेत” के रूप में संदर्भित किया.
इसने कहा, “भारत को राजनीतिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए ऐसी त्रासदियों (पहलगाम घटना) का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.”
एनएससी ने 1940 के पाकिस्तान संकल्प का हवाला देते हुए अपने वक्तव्य को समाप्त किया, जिसमें कहा गया कि हाल के घटनाक्रमों ने पाकिस्तान के निर्माण के औचित्य को मजबूत किया है.
इसने कहा, “भारत की आज की कार्रवाई द्वि-राष्ट्र सिद्धांत और कायदे-आज़म मुहम्मद अली जिन्ना के दृष्टिकोण की पुष्टि करती है.”
भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव की गिरफ्तारी जैसे मामलों का हवाला देते हुए, पाकिस्तान ने अपनी सीमाओं के भीतर आतंकवाद को प्रायोजित करने में “भारतीय संलिप्तता” के अपने आरोपों को दोहराया.
शांति के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए, इस्लामाबाद ने कहा कि उसकी संप्रभुता के लिए किसी भी खतरे का कूटनीतिक, सैन्य और कानूनी मोर्चों पर “दृढ़ और पारस्परिक” प्रतिक्रिया के साथ सामना किया जाएगा.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
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