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Wednesday, 8 May, 2024
होमविदेश‘भारत ने 25 साल पहले फ्रांस के साथ रणनीतिक साझेदारी शुरू की थी’, बोले मोदी- संबंध निर्णायक स्तर पर

‘भारत ने 25 साल पहले फ्रांस के साथ रणनीतिक साझेदारी शुरू की थी’, बोले मोदी- संबंध निर्णायक स्तर पर

अपनी दो दिवसीय यात्रा से पहले, मोदी ने फ्रांसीसी फाइनेंसियल डेली 'लेस इको' से कहा कि फ्रांस ने कठिन समय में भारत का समर्थन किया है. पीएम की यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई बड़े रक्षा सौदे होने वाले हैं.

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस की यात्रा के दौरान कहा कि फ्रांस के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी एक ‘निर्णायक बिंदु’ पर है. प्रधानमंत्री ने याद किया कि कैसे रक्षा, अंतरिक्ष और परमाणु सहयोग जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंध उस दौर से चले आ रहे हैं जब पश्चिम नई दिल्ली के प्रति मैत्रीपूर्ण स्वभाव नहीं रखते थे. 

मोदी ने रेखांकित किया कि यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि फ्रांस पहला देश है जिसके साथ भारत ने रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.

मोदी ने फ्रांसीसी फाइनेंसियल डेली ‘लेस इको’ के साथ एक साक्षात्कार के दौरान कहा, “जहां तक ​​रणनीतिक साझेदारी के 25 वर्षों का सवाल है, मुझे लगता है कि हम अब एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं. यदि हम महामारी के बाद की वैश्विक व्यवस्था और इसके आकार को देखें, तो मुझे लगता है कि हमारी रणनीतिक साझेदारी का सकारात्मक अनुभव एक महत्वपूर्ण कदम है. इसलिए, हम रणनीतिक साझेदारी के अगले 25 वर्षों के रोडमैप पर काम करने के लिए उत्सुक हैं, जो मुझे लगता है कि रिश्ते के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.”

13 जुलाई से शुरू हुई फ्रांस की अपनी दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा से पहले, प्रधान मंत्री ने कहा कि फ्रांस ने कठिन समय में भारत का समर्थन किया था.

पीएम मोदी ने कहा, “अंतरिक्ष और रक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में हमारी साझेदारी पांच दशक और उससे भी अधिक पुरानी है. यह वह दौर था जब पश्चिम का भारत के प्रति मैत्रीपूर्ण स्वभाव नहीं था. इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि फ्रांस पहला पश्चिमी देश था जिसके साथ हमने रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की थी. वह भारत सहित दुनिया के लिए एक कठिन समय था. तब से हमारा रिश्ता एक साझेदारी में बदल गया है जो न केवल हमारे दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि महान भू-राजनीतिक परिणाम भी है.”

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फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन के आमंत्रण पर भारतीय प्रधानमंत्री शुक्रवार को पेरिस में बैस्टिल दिवस समारोह में सम्मानित अतिथि होंगे.

प्रधान मंत्री ने कहा कि दोनो देशों के बीच संबंध “तूफानों में स्थिर और लचीले” बने होने के साथ-साथ “अवसरों की तलाश में साहसी और महत्वाकांक्षी” रहे हैं.

उम्मीद है कि मोदी की मौजूदा यात्रा से भारत को अपनी समुद्री सैन्य महत्वाकांक्षाओं के तहत 26 राफेल लड़ाकू जेट और तीन अतिरिक्त स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के नौसैनिक संस्करण हासिल करने का मार्ग प्रशस्त होगा, साथ ही जेट इंजन टेक्नोलॉजी पर संभावित साझेदारी भी होगी.

प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि उन्होंने फ्रांस के साथ भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी पर विशेष जोर दिया. उन्होंने कहा, “पीएम कार्यालय में प्रवेश करने के एक साल के भीतर, मैंने अप्रैल 2015 में फ्रांस की अपनी पहली यात्रा की थी.”


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चीन एंगल और यूएनएससी सीट

सीमा पर चीन के साथ बढ़ते तनाव पर मोदी ने ‘बातचीत और कूटनीति के माध्यम से मतभेदों के शांतिपूर्ण समाधान’ के महत्व को बताते हुए दोनों देशों के बीच मतभेदों को हल करने पर भारत की स्थिति पर चर्चा की. 

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दोनों देश जिस सहयोग की उम्मीद कर रहे हैं, उस पर एक सवाल पर मोदी ने कहा कि भारत और फ्रांस इस क्षेत्र में “दो प्रमुख निवासी शक्तियां” हैं. उन्होंने कहा, “हमारी साझेदारी का उद्देश्य क्षेत्र में हमारे दृष्टिकोण को साझा करने वाले अन्य लोगों के साथ मिलकर काम करते हुए एक स्वतंत्र, खुले, समावेशी, सुरक्षित और स्थिर इंडो पैसिफिक क्षेत्र को आगे बढ़ाना है.”

प्रधान मंत्री ने वैश्विक व्यवस्था में भारत की स्थिति पर अपना रुख दोहराया. प्रधानमंत्री ने यह घोषणा करते हुए कहा कि भारत दुनिया में अपना उचित स्थान हासिल करने के बजाय ‘वापसी’ हासिल कर रहा है.

उन्होंने कहा, “भारत वैश्विक चर्चा में अपना अनूठा और विशिष्ट दृष्टिकोण और आवाज लाता है. और यह हमेशा शांति, एक निष्पक्ष आर्थिक व्यवस्था, कमजोर देशों की चिंताओं और हमारी आम चुनौतियों से निपटने में वैश्विक एकजुटता के पक्ष में खड़ा है.”

मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी पर भी जोर दिया.

पीएम ने जोर देकर कहा, “यह (संयुक्त राष्ट्र) दुनिया के लिए बोलने का दावा कैसे कर सकता है जब इसका सबसे अधिक आबादी वाला देश और इसका सबसे बड़ा लोकतंत्र इसका स्थायी सदस्य नहीं है? और इसकी विषम सदस्यता से निर्णय लेने की प्रक्रिया अपारदर्शी हो जाती है, जो आज की चुनौतियों से निपटने में इसकी असहायता को बढ़ा देती है.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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