काठमांडू: आकृति घिमिरे युवाओं के लिए नेपाल की राजनीति और नीतियों को आसान बनाकर समझाती थीं. अब वे उन्हें दोबारा लिख रही हैं. जनरेशन जी के प्रदर्शनों की कोऑर्डिनेटर में से एक आकृति अब समझौते तैयार कर रही हैं, अंतरिम प्रधानमंत्री से मिल रही हैं और यह सुनिश्चित कर रही हैं कि नए नेपाल में युवाओं की बराबर हिस्सेदारी हो.
“हम सड़कों पर ताकत हासिल करने नहीं आए थे,” 26 वर्षीय आकृति ने दिप्रिंट से कहा. “हम इसलिए आए क्योंकि हमें सक्षम नेतृत्व चाहिए था. हमें ऐसे लोग चाहिए थे जिनमें ईमानदारी और संवेदनशीलता हो. जो हमने नेपाल में कभी नहीं देखा.”
8 सितंबर को हजारों नेपाली युवा काठमांडू की सड़कों पर उतरे. प्रदर्शन संगीत से शुरू हुआ और पानी की बौछारों व गोलियों पर खत्म हुआ.
इस दौरान भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और असमानता को लेकर गुस्सा फूटा, जिसे सरकार के सोशल मीडिया बैन प्रस्ताव ने और भड़का दिया. यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया और नेपाल की राजनीति की नींव हिला दी.
आकृति के मुताबिक असंतोष सिर्फ सरकार से नहीं बल्कि उन राजनीतिक चेहरों से भी है जिन्हें लोग दशकों से देख रहे हैं.
“सालों से वही चेहरे सत्ता में हैं और इस दौरान जनता केंद्रित नीतियों की बेहद कमी रही है. बार-बार जनता सड़कों पर उतरी है लेकिन उनकी मांगों को न तो सुना गया और न ही पूरा किया गया. हमने कभी सरकार को नीति निर्माण की प्रक्रिया में जनता के प्रति सहानुभूति दिखाते नहीं देखा,” उन्होंने कहा.
वह बताती हैं कि यह आंदोलन वैश्विक असंतोष से प्रेरित लगता है लेकिन इसकी जड़ें नेपाल की पुरानी संरचनात्मक असमानताओं में हैं. अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा अभी भी विशेषाधिकार है. जो इसे अफोर्ड कर सकते हैं वे विदेश चले जाते हैं जबकि बाकी, जिनके पास अवसर और साधन नहीं हैं, उन्हें खाड़ी देशों या दूसरे स्थानों पर कम वेतन वाली नौकरियों के लिए जाना पड़ता है.
वे आगे कहती हैं, “जब मौजूदा नेतृत्व में भरोसा नहीं बचता और व्यवस्थाओं पर विश्वास पूरी तरह खत्म हो जाता है तब जनता उठ खड़ी होती है. इसलिए हम सड़क पर आए. और मुझे कहना होगा कि मैंने कभी इतने युवाओं को एक साथ जुटते नहीं देखा. 8 सितंबर को जो हुआ वह अविश्वसनीय था. लोगों की संख्या, ऊर्जा, सब कुछ अद्भुत था,” .
नागरिक शिक्षा से कार्रवाई तक
आकृति के एक्टिविज़्म की शुरूआत सड़क से नहीं बल्कि सोशल मीडिया से हुई. क़ानूनी शोधकर्ता के तौर पर उन्होंने जनवरी में ‘हाउ टू देश विकास’ नाम का इंस्टाग्राम पेज शुरू किया ताकि नीतियों और कानूनों को आसान भाषा में युवाओं तक पहुंचाया जा सके.
“अगर मैंने वे नौकरियां नहीं की होतीं तो मैं कानून और राजनीति की भाषा नहीं समझ पाती. आज भी पूरी तरह नहीं समझती. मैं अभी भी सीख रही हूं,” उन्होंने कहा. “यही वजह थी इस पेज को शुरू करने की. मुझे अहसास हुआ कि अगर मैं उलझी हुई हूं तो लाखों और लोग भी हैं.”
सांसद के चीफ ऑफ स्टाफ और बाद में शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री की पर्सनल अंडरसेक्रेटरी के रूप में उन्होंने नीति निर्माण, विधेयकों के ड्राफ्ट और संसदीय भाषण जैसे काम देखे.
आकृति की पूरी टीम महिलाओं की है. “मैं कहती हूं कि मैं थोड़ी डरपोक हूं,” वह हंसते हुए कहती हैं, “लेकिन मेरी महिलाएं बहुत मजबूत और बेखौफ हैं.”
यह समूह न सिर्फ महिलाओं द्वारा संचालित है बल्कि जानबूझकर समावेशी भी है. इसमें क्वीयर आवाजें, मधेसी प्रतिनिधित्व और अलग-अलग सामाजिक और जातीय पृष्ठभूमि के लोग शामिल हैं. “जितना समावेशी हो सके. और जहां हमारी पृष्ठभूमि नहीं पहुंचती वहां और आवाजें शामिल करने की कोशिश करते हैं.”
8 सितंबर के बाद आकृति और उनकी टीम को एहसास हुआ कि आंदोलन अपनी शुरुआती मांगों जैसे भ्रष्टाचार की जांच से आगे बढ़ चुका है.
“ईमानदारी से कहूं तो मैंने सोचा था यह कई शांतिपूर्ण, रचनात्मक प्रदर्शनों में पहला होगा. मेरे पास दशैं (दशहरा) पर प्रतीकात्मक विरोध का भी विचार था—क्यों न पतंगों पर असहमति के संदेश लिखकर उड़ाएं. यही सोच हममें से कई लोगों की थी,” उन्होंने याद किया.
लेकिन ज़मीन पर हालात बदल गए. काठमांडू में शांतिपूर्ण शुरू हुआ प्रदर्शन हिंसक हो गया. दो दिन के प्रदर्शनों में कम से कम 72 लोगों की मौत हुई और करीब 1,700 घायल हुए.
“दिन खत्म होते-होते हमें समझ आ गया कि यह यहीं नहीं रुकेगा. अब मांगें और कड़ी होंगी. लोग सिर्फ जवाबदेही नहीं बल्कि सरकार से इस्तीफ़ा मांग रहे थे.”
इसके बाद असली काम शुरू हुआ. आकृति और उनकी टीम ने शोध शुरू किया कि राजनीतिक परिवर्तन व्यावहारिक रूप से कैसे हो सकता है. सरकार को भंग करने का मतलब क्या होगा. क्या अंतरिम सरकार बनाई जा सकती है. इंडोनेशिया या बांग्लादेश जैसे देशों ने कौन से मॉडल अपनाए.
उन्हें सबसे ज़्यादा प्रभावित किया आंदोलन की प्रकृति ने. “यह एक नेता-विहीन आंदोलन है,” उन्होंने कहा. “और यही इसकी सबसे खूबसूरत बात है.”
पिछले जन आंदोलनों के विपरीत जो करिश्माई और ज़्यादातर पुरुष नेताओं के इर्द-गिर्द घूमते थे, यह आंदोलन अलग था. “इस बार लोग किसी चेहरे का इंतजार नहीं कर रहे थे. उन्होंने व्यवस्था की सड़न देखी और खुद बाहर निकल आए.”
युवाओं को कैसी लीडरशिप चाहिए
आकृति की टीम ने आंदोलन के रिसर्च और डॉक्युमेंटेशन वाले हिस्से को संभाला. उन्होंने ‘पीपुल्स एग्रीमेंट’ नाम से एक प्रस्तावित फ्रेमवर्क तैयार करना शुरू किया. इसमें बताया गया कि अंतरिम सरकार कैसे काम करे और नेपाल की राजनीतिक भविष्य में युवाओं की आवाज कैसे शामिल हो.
“हमने दुनिया भर की अंतरिम सरकारों को देखा. बांग्लादेश का अध्ययन किया. इंडोनेशिया का अध्ययन किया. हमने 2006 का अपना शांति समझौता पढ़ा. हमें करना ही पड़ा,” वह कहती हैं. “क्योंकि अचानक हमें कहा गया, ‘ओह, तुम्हें बातचीत करने वाले चाहिए. तुम्हें नेता चाहिए.’ और हमें अंदाजा ही नहीं था कि ये कैसे करना है.”
आलोचकों ने जेन-जेड आंदोलन की लीडरशिप पर सवाल उठाए. लेकिन आकृति इस चुनौती को पलट देती हैं. “क्या पुरानी पीढ़ी में वे एक भी नेता दिखा सकते हैं, जिसने सच में सबका भरोसा जीता हो? हमने कभी अच्छी लीडरशिप देखी ही नहीं. हमारे पास कभी ऐसा उदाहरण नहीं रहा जिसमें ईमानदारी और संवेदनशीलता हो. तो हम किस पर आधारित होकर सीखें?”
वह मानती हैं कि पारंपरिक लीडरशिप को लेकर संदेह स्वाभाविक और जरूरी है. “हमारी पीढ़ी को लगातार राजनीतिक बातचीत से बाहर रखा गया है. हमें उन कमरों से बाहर रखा गया है जहां फैसले लिए जाते हैं, जबकि उन्हीं फैसलों के साथ हमें जीना है.”
युवाओं द्वारा तैयार रोडमैप
‘हाउ टू देश विकास’ ने ‘कॉमन ग्राउंड्स’ डॉक्युमेंट बनाया. इसमें अलग-अलग प्रदर्शन समूहों की मांगों को एक साथ रखा गया, समानताएं खोजीं और एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया गया. इसके वर्जन अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की और अन्य कानूनी विशेषज्ञों को समीक्षा के लिए भेजे गए.
उन्होंने अंतरिम सरकार के लिए एक रोडमैप भी तैयार किया. इसमें लीडरशिप की कसौटियां और पात्रता के मापदंड शामिल थे. एक प्रस्ताव में ‘यूथ एडवाइजरी काउंसिल’ बनाने की बात है, जिसमें अलग-अलग जाति, क्षेत्र और समुदायों के युवाओं को शामिल कर अंतरिम सरकार को सलाह देने का अधिकार होगा.
“ये काउंसिल सिर्फ दिखावे के लिए नहीं होनी चाहिए,” आकृति कहती हैं. “इसे असली ताकत मिलनी चाहिए. और हम सिर्फ मांग ही नहीं कर रहे, बल्कि एक निष्पक्ष प्रक्रिया भी बना रहे हैं कि इसके सदस्य कैसे चुने जाएं.”
उनकी टीम ने राजनीतिक दलों के लिए वित्तीय पारदर्शिता के कानून, सत्ता परिवर्तन के बाद दलों का अनिवार्य री-रजिस्ट्रेशन और अगले चुनाव से पहले नेताओं की संपत्ति सार्वजनिक करने का भी प्रस्ताव रखा. “अगर वही भ्रष्ट पार्टियां फिर चुनाव लड़ेंगी तो फायदा क्या होगा? हमें खेल का मैदान निष्पक्ष चाहिए. इसके लिए नए नियम चाहिए.”
एक बदलाव और एक उम्मीद
आकृति इस पल को सिर्फ राजनीतिक बदलाव नहीं, बल्कि सांस्कृतिक बदलाव मानती हैं. खासकर इस मामले में कि नेपाल में लीडरशिप को कैसे परिभाषित किया जाए. “सुशीला कार्की जैसे व्यक्ति को मार्गदर्शक के रूप में चुनना जान-बूझकर किया गया फैसला था,” वह कहती हैं. “हम ऊंची आवाज वाले, दिखावटी नेताओं से तंग आ चुके हैं. हमें ऐसे लोग चाहिए जो सच बोलें. बिना मिठास, बिना राजनीतिक बातें. सिर्फ साफगोई, संवेदनशीलता और विनम्रता.”
इसी सोच के तहत ग्रुप ने लीडरशिप के लिए एक रूपरेखा बनाई. इसमें नेताओं को पारदर्शिता, भावनात्मक समझदारी और टीम में काम करने की क्षमता जैसी कसौटियों पर परखा जाएगा. इसे राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ स्थानीय नेतृत्व चुनने के लिए भी प्रस्तावित किया गया है.
“हमें घमंडी नेता नहीं चाहिए. हमें सहयोगी चाहिए,” वह कहती हैं. “ऐसा व्यक्ति जो कह सके, ‘मुझे ये नहीं पता, लेकिन मैं मदद मांगूंगा.’ यही असली लीडरशिप है.”
हालांकि एक अंतरिम सरकार बनी हुई है, आकृति जानती हैं कि चुनौतियां अभी बाकी हैं. छह महीने में चुनाव होने हैं और बिना संरचनात्मक सुधारों के डर है कि पारंपरिक पार्टियां फिर सत्ता में लौट आएंगी. उनकी टीम के लिए अगला अहम कदम आंदोलन की मांगों को औपचारिक रूप से दर्ज कराना है. एक सार्वजनिक घोषणा या समझौता-पत्र जो राज्य और नागरिकों के बीच नए सामाजिक अनुबंध की नींव रखे.
“अगर हमारे पास वो दस्तावेज नहीं हुआ तो फिर सबका क्या मतलब था? जिन जानों को हमने खोया उनका क्या मतलब था? सरकार के शीर्ष को राख में बदल देने का क्या मतलब था?”
आकृति को उम्मीद है कि ये दस्तावेज न सिर्फ मौजूदा संक्रमणकाल को दिशा देगा बल्कि नेपाल के लोकतंत्र को आने वाली पीढ़ी के लिए नया आकार देगा. “भ्रष्टाचार सिर्फ नेतृत्व की समस्या नहीं है. ये सांस्कृतिक समस्या है,” वह कहती हैं.
वह जोड़ती हैं, “इसे बदलना हम सबकी जिम्मेदारी है. मतदाता और नागरिक दोनों के रूप में. सिर्फ विरोध प्रदर्शन में नहीं, बल्कि मतपेटी में भी. अगर हम सब नेतृत्व से नाराज हैं तो जब गिनती का वक्त आए, तब दिखाइए. मतपेटी में दिखाइए.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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